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दो घंटे की वार्ता में अपनी ही भाषा संस्कृत का उजागर हुआ दर्द

महासंघ प्रतिनिधि मंडल ने संस्कृत शिक्षा निदेशक से की विस्तृत चर्चा

जयपुर। देव वाणी संस्कृत हमारी अपनी ही भाषा है और हमारे ही देश में इसकी उपेक्षा समझ से परे है। होना तो यह चाहिए कि इस कर्ण प्रिय भाषा के उत्थान और सम्मान के लिए हर संभव संसाधन उपलब्ध करवाए जाने चाहिए। देश में ऐसा माहौल बने कि संस्कृत बोलने, लिखने, सीखने व सीखाने वाले की समाज में अलग ही पहचान हो। इस युगो युगो पुरातन भाषा को लेकर विद्वानों के व्याख्यान और शोध विद्यार्थियों के सामने आने चाहिए। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि नासा के वैज्ञानिक हमारे शास्त्रों में छिपे गुढ़ रहस्यों को जानने के लिए हमारे ही देश के नागरिकों (वैज्ञानिकों) को संस्कृत समझने की ट्रेनिंग देते हैं। यह जानकारी करीब 3 साल पहले जयपुर में आयोजित साइंस मीडिया रिसर्च वर्कशाॅप के दौरान सामने आई। इसलिए पुरातन भारत के ज्ञान विज्ञान, संस्कृति को जानना है तो सबसे पहले संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कदम प्राथमिकता से उठाने होंगे। इसके लिए संस्कृत विद्यालय, महाविद्यालय, शिक्षक, शिक्षार्थी व शोधार्थियों की ऐसे व्यवस्था हो जिनके दम पर हम अन्तरराष्ट्रीय चुनौतियों को स्वीकार कर सके। ऐसा तभी संभव होगा जब हमारे राजनेता, ब्यूरोक्रेट्स और शिक्षक संगठन आगे आए। आज इस दिशा में पहला कदम राजस्थान राज्य संयुक्त कर्मचारी महासंघ (लोकतांत्रिक) ने उठाया। संगठन के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष बनवारी शर्मा के नेतृत्व में संस्कृत शिक्षा विभाग की विभिन्न समस्याओं के समाधान को लेकर महासंघ का प्रतिनिधिमंडल निदेशक संस्कृत शिक्षा से मिला। इस दौरान प्रतिनिधिमंडल ने नवीन विद्यालय खोलने, क्रमोन्नति प्रस्ताव, डीपीसी , संभागीय अधिकारियों को पावर दिए जाने, शारीरिक शिक्षकों के सेकंड ग्रेड पद स्वीकृत करवाने , नई भर्तियां सिस्टमैटिक ढंग से करवाने, मंत्रालय कार्मिकों का सम्मान समारोह आयोजित करवाने सहित विभिन्न मांगों को लेकर करीब 2 घंटे तक विस्तृत चर्चा हुई। इस दौरान जयपुर संभाग अध्यक्ष राजकुमार शर्मा, महामंत्री राजाराम जाट बगरू, प्रदेश संयोजक आईटी विकास तिवाड़ी दौसा, भवानी शंकर बिठ्ठू उपस्थित रहे।

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