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ऐतिहासिक उपन्यास रातीघाटी युद्ध का लोकार्पण संपन्न

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– रातीघाटी युद्ध में वीरों ने लौह और रक्त से भारत की पश्चिमी सीमा रेखा खींची
– रातीघाटी युद्ध को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाना हमारा कर्तव्य- श्रीमाली
– राष्ट्र के स्वाभिमान की लड़ाई- डॉक्टर चक्रवर्ती

बीकानेर । वेटरनरी ऑडिटोरियम में रविवार को ऐतिहासिक उपन्यास रातीघाटी का लोकार्पण करते हुए प्रमुख अतिथि डॉ गिरीश भाई ठक्कर पालनपुर ने कहा कि आज हम एक ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन रहे हैं। इस उपन्यास में विजय की कहानी है जो देश का भविष्य उज्ज्वल करेगी। इस पुनीत भूमि पर राव जैतसी के नेतृत्व में प्रजा द्वारा लड़ा गया युद्ध है। लाहौर के बादशाह कामरान से राष्ट्र, संस्कृति भूमि और समाज के सम्मान की रक्षा के लिए यह युद्ध लड़ा गया यह कहानी केवल बीकानेर की नहीं, अर्पित ग्रंथ के माध्यम से भावी विजय की रचना होगी। यह युद्ध ज्ञान- संस्कृति और शूरवीरता की कहानी है। ऐसे ही ग्रंथ राष्ट्रीय स्वत्व को जगाते हैं। मैं लेखक श्री जानकी नारायण श्रीमाली का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ।

इससे पूर्व उपन्यास पर पाठकीय टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए डॉ चक्रवर्ती नारायण श्रीमाली ने कहा कि राव ने राष्ट्र के स्वाभिमान की रक्षा हेतु लड़ाई लड़ी राव जैतसी ने 36 राजवंशों और 36 कौम को एक छत्र के नीचे लाकर इतिहास में एक जीवंत आदर्श प्रस्तुत किया है। 26 अक्तूबर 1534 ईस्वी को लाहौर के बादशाह कामरान को पराजित करके जैत सिंह ने खानवा युद्ध का बदला लिया। बाबर द्वारा राम मंदिर का विध्वंस किये जाने के कारण इस युद्ध में भारतीय पक्ष ने राम- राम को अपना जय घोष बनाया। राव जैतसी ने ऐसी रणनीति अपनाई जो क्षत्रिय मूल्यों के कारण आज तक राजपूत योद्धाओं द्वारा नहीं अपनाई गई थी।
उपन्यास की संवाद शैली रोचक और प्रवाहमय है । डॉ चक्रवर्ती ने युद्ध के रोमांचक दृश्यों का वर्णन करते हुए कहा की मरुभूमि के पुत्रों ने अगणित बलिदान दिए। इस उपन्यास में हास्य, मर्यादित शृंगार समाज व संस्कृति के हृदय स्पर्शी चित्र है।

लेखक जानकी नारायण श्रीमाली ने कहा कि आज रातीघाटी युद्ध राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की नवमी एवम दसवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जा चुका है। समिति इसे एनसीईआरटी के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में समावेशित करवाने के लिए प्रयत्नशील है। समिति के प्रयास से रातीघाटी युद्ध को अपार लोकप्रियता प्राप्त हुई है। मरू पुत्रों का कर्तव्य है कि इस युद्ध को इतिहास में इसका उचित स्थान दिलाने के लिए प्रयास करें। रातीघाटी युद्ध से भारतीय युद्ध के इतिहास में एक नवीन गौरवशाली अध्याय की रचना हुई है।

समारोह के प्रारंभ में दीप प्रज्ज्वलन किया गया। श्री राजेन्द्र स्वर्णकार ने मधुर मारवाड़ी में सरस्वती वंदना और स्वागत गीत प्रस्तुत किया। श्री वैभव पारीक ने राष्ट्र वंदना गीत प्रस्तुत किया। स्वागताध्यक्ष डॉक्टर वेद प्रकाश गोयल ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए स्वयं की तथा भारत विकास परिषद की ओर से पूर्ण सहयोग की घोषणा की।

विशेष अतिथि कर्नल हेम सिंह शेखावत ने अपने युद्ध अनुभवों को सुनाते हुए रातीघाटी युद्ध के रणनितिक महत्व पर प्रकाश डाला । मंचस्थ सर्वश्री महादेव प्रसाद आचार्य अध्यक्ष इतिहास संकलन समिति, रामसिंह भाटी अध्यक्ष पूर्व सैनिक सेवा परिषद, लीला धर वर्मा हनुमान गढ़ कार्यकारी अध्यक्ष इतिहास समिति जोधपुर व प्रमुख अतिथि को तथा ग्रंथ की डिजाइन तैयार करने वाले नभआंशु श्रीमाली को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए।। रातीघाटीी समिति के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह बीका ने आभार ज्ञापित किया। स्वस्ति मंत्र के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। समारोह में भारी संख्या में पूर्व सैनिक, शिक्षाविद और समाजसेवियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। नारी शक्ति की उपस्थिति ने सभी को हर्षित किया। कार्यक्रम का सफल संयोजन डॉक्टर राजशेखर , कृष्णा आचार्य और मदन मोहन मोदी ने किया।

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