Bikaner

बांस की खेती: कार्बन उत्सर्जन रोकने और फर्नीचर-कागज उद्योग के लिए वरदान



Bamboo Cultivation: A Boon for Reducing Carbon Emissions and the Furniture-Paper Industry



बीकानेर। शुष्क क्षेत्रों में बांस की खेती की संभावनाओं को लेकर स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में सोमवार को एक दिवसीय कृषक प्रशिक्षण आयोजित किया गया। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा प्रायोजित परियोजना के तहत किया गया, जिसमें किसानों को बांस की खेती से होने वाले आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों की जानकारी दी गई।



पर्यावरण संरक्षण और उद्योग के लिए फायदेमंद
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि बांस का पौधा न केवल भूजल स्तर बढ़ाने और भूमि संरक्षण में सहायक है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा कि बांस की खेती से फर्नीचर और कागज उद्योग को कच्चा माल उपलब्ध कराया जा सकता है, जिससे इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।



कम पानी में अधिक लाभ
वित्त नियंत्रक पवन कस्वां ने बताया कि बदलते जलवायु परिस्थितियों में खेती में नवाचार समय की जरूरत है। बांस का पौधा कम पानी में पनप सकता है और माइक्रो क्लाइमेट जनरेट करने में भी सहायक है। उन्होंने पोकरण कृषि विज्ञान केंद्र में टनल तकनीक से खजूर की खेती का उदाहरण देते हुए बताया कि इसी तरह बांस की खेती भी किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।



वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रशिक्षण
निदेशक अनुसंधान डॉ. विजय प्रकाश ने बताया कि इस परियोजना के तहत छह ऐसी बांस की किस्मों का चयन किया गया है, जो शुष्क जलवायु में अनुकूलित हो सकती हैं। बांस न केवल पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मददगार है, बल्कि इससे उच्च गुणवत्ता का फर्नीचर और कागज उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं।



राष्ट्रीय बांस मिशन की परियोजना
कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता और परियोजना प्रभारी डॉ. पी.के. यादव ने बताया कि केंद्र सरकार के राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा विश्वविद्यालय को 47 लाख रुपए की परियोजना स्वीकृत की गई है। इसके तहत बांस की विभिन्न किस्मों पर अनुसंधान किया जा रहा है। इस एक दिवसीय प्रशिक्षण में 10 गांवों के 25 किसानों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया।


किसानों की जिज्ञासाएं और समाधान
प्रशिक्षण सत्र के दौरान किसानों ने वैज्ञानिकों से संवाद कर अपनी शंकाओं का समाधान प्राप्त किया। जल प्रबंधन विशेषज्ञ जितेंद्र कुमार गौड़ ने बूंद-बूंद सिंचाई पर विशेष व्याख्यान दिया। कार्यक्रम के अंत में अधिष्ठाता मानव संसाधन विभाग डॉ. दीपाली धवन ने किसानों और उपस्थित अतिथियों का आभार प्रकट किया।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के विभिन्न वैज्ञानिक, निदेशक, अधिष्ठाता और बड़ी संख्या में किसान उपस्थित रहे। बांस की खेती को बढ़ावा देने के इस प्रयास से शुष्क क्षेत्रों में नए आर्थिक और पर्यावरणीय अवसर खुलने की उम्मीद है।

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