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टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे: संजय सांखला

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*टैस्सीटोरी राजस्थानी पुरोधा थे-कासिम बीकानेरी*

*स्वर्गीय एल.पी.टैस्सीटोरी की 104वीं पुण्यतिथि पर सृजनधर्मियों ने शब्दांजलि-श्रद्धांजलि कार्यक्रम से उनको नमन किया।*

बीकानेर। राजस्थानी भाषा के इटली मूल के महान विद्वान एवं भाषाविद स्वर्गीय एल.पी.टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा के लिए संघर्ष करने वाले महान सपूत थे। आप एक सांस्कृतिक पुरोधा एवं महान भारतीय आत्मा थे, आप एक ऐसे बहुभाषाविद् थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन हमारी मायड़ भाषा राजस्थानी को मान-सम्मान दिलवाने के लिए समर्पित कर दिया था। प्रज्ञालय संस्थान और राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा पिछले साढे चार दशकों से भी अधिक समय से उनकी पुण्यतिथि और जयंति पर उन्हें श्रद्धांजलि आयोजित करके उनके द्वारा किए गए कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने का पुनीत कार्य किया जा रहा है।

कार्यक्रम के संयोजक संस्कृतिकर्मी हरिनारायण आचार्य ने बताया कि इसी क्रम में आज डॉ. टैस्सीटोरी की 104वीं पुण्यतिथि पर आयोजित दो दिवसीय ‘ओळू समारोह’ के दूसरे दिन प्रातः 10ः30 बजे डॉ. टैस्सीटोरी की समाधि स्थल पर पुष्पांजलि एवं शब्दांजलि का आयोजन रखा गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं कवि संजय सांखला ने कहा कि टैस्सीटोरी सांस्कृतिक पुरोधा एवं भारतीय आत्मा थे। उन्होने राजस्थानी मान्यता का बीजारोपण 1914 में ही कर दिया था, परन्तु दुखद पहलू यह है कि आज भी इतनी समृद्ध एवं प्राचीन भाषा को संवैधानिक मान्यता न मिलना साथ ही प्रदेश की दूसरी राजभाषा न बनना करोड़ो लोगों कि जनभावना को आहत करना है। ऐसे में राजस्थानी को दोनों तरह की मान्यताएं शीघ्र मिलनी चाहिए। जिन्होने तीन महत्वपूर्ण किताबें लिख कर राजस्थानी साहित्य को समृद्ध किया आपने उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों को विस्तार से सामने रखा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी राजस्थानी भाषा साहित्य-संस्कृति कला आदि को सच्चे अर्थों में जीते थे। वे अपनी मातृभाषा इटालियन से अधिक प्यार राजस्थानी को देते थे। उनके द्वारा राजस्थानी मान्यता का देखा गया सपना अब सच होना चाहिए। तभी उन्हें सच्ची श्रृंद्धाजलि होगी। आपने अपना छोटा सा जीवन हमारी मातृभाषा राजस्थानी के लिए समर्पित कर दिया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कवि गिरिराज पारीक ने अपनी शाब्दिक श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि स्वर्गीय एल.पी. टैस्सीटोरी जनमानस में राजस्थानी भाषा की अलख जगाने वाले महान साहित्यिक सेनानी थे, जिन्होंने साहित्य, शिक्षा, शोध एवं पुरातत्व के क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण कार्य करके हमारी संस्कृति एवं विरासत को पूरे विश्व में मशहूर कर दिया। परन्तु हमारी भाषा को मान्यता न मिलना दुखद पहलू है। अब इस पर शीघ्र निर्णय होना चाहिए।

संस्कृतिकर्मी डॉ. फारुक चौहान ने उनके द्वारा किए गए कार्यों पर रोशनी डालते हुए कहा कि ये हमारी भाषा के लिए गौरव की बात है कि इटली से आकर एक विद्वान साहित्यकार ने हमारी भाषा के लिए महत्वपूर्ण काम किया।
वरिष्ठ शायर वली मोहम्मद गौरी ने कहा कि टैस्सीटोरी राजस्थानी मान्यता के प्रबल समर्थक थे हम सबको सामुहिक प्रयास कर मान्यता हेतू सरकार पर दबाव डालना होगा। इसी क्रम में वरिष्ठ कवि जुगल पुरोहित ने कहा कि राजस्थानी के महान् विद्वान के साथ-साथ बहुत बडे भाषा वैज्ञानिक भी थे तो कवयत्री कृष्णा वर्मा ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी राजस्थानी आत्मा थे और उनके रोम-रोम में राजस्थानी भाषा समाई हुई थी। शायर शमीम अहमद ‘शमीम’ एवं मोहम्मद मुईनुद्दीन मुईन ने भी राजस्थानी मान्यता शीघ्र मिलने की बात कही। इसी के साथ सभी ने टैस्सीटोरी समाधि स्थल कि दूद्रशा पर रोष प्रकट किया।

इस अवसर पर युवा रचनाकार आशीष रंगा ने अपनी शब्दांजलि देते हुए कहा कि टैस्सीटोरी समाधि स्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।
दो दिवसीय ओळू समारोह के तहत आयोजन का केन्द्रीय भाव राजस्थानी भाषा की संवेधानिक मान्यता एवं प्रदेश की दूसरी राजभाषा बने उसी पर केन्द्रित रहा। दोनो दिन आयोजनों में सहभागी रहने वाले सैकड़ों राजस्थानी समर्थकों ने इस बात का पुरजोर शब्दों में समर्थन किया।
कार्यक्रम में अशोक शर्मा, भवानी सिंह, कार्तिक मोदी, सुनील व्यास, तोलाराम सारण, हरि नारायण आचार्य, घनश्याम ओझा, सय्यद अनवर अली, सैय्यद हसन अली, मोहम्मद जरीफ, मईनुद्दीन मईन, सहित अनेक प्रबुद्ध-जन उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन हरिनारायण आचार्य ने किया एवं अंत में सभी का आभार भवानीसिंह ने जताया।

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