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एनआरसीसी में उष्‍ट्र अनुसंधान के विविध आयामों को लेकर परिचर्चा आयोजित

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बीकानेर । भाकृअनुप-राष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्‍द्र (एनआरसीसी) में परिचर्चा आयोजित की गई । ‘उष्‍ट्र अनुसंधान के विविध आयाम’ विषयक देर रात तक चली इस परिचर्चा कार्यक्रम में एनआरसीसी स्‍टाफ सहित परिषद के बीकानेर स्थित वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भी इसमें सक्रिय सहभागिता निभाई ।

डॉ. राघवेन्‍द्र भट्टा, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्‍ली ने इस अवसर पर कहा कि अनुसंधान की दिशा में टॉप 5 संस्‍थानों में एनआरसीसी द्वारा पहचाना बनाना निश्चित रूप से सराहनीय है परंतु बदलते परिवेश में उष्‍ट्र प्रजाति की घटती संख्‍या एवं सीमित होते उपयोग को वैज्ञानिक एक चुनौती के रूप में लें ।

उन्‍होंने अनूठी प्रजाति ‘ऊँट’ पर कार्य करने को गौरव का विषय बताते हुए अनुसंधान कार्यों में ठोस व त्‍वरित परिणाम हेतु अपने कार्यों में नवाचार लाते हुए समन्‍वयात्‍मक के रूप में आगे बढ्ने हेतु प्रोत्‍साहित किया । उप महानिदेशक ने कहा कि जिस किसी संस्‍थान में आप कार्यरत है, वहां समर्पित व सकारात्‍मक प्रवृत्ति से कार्य करेंगे तो न केवल उपयुक्‍त वातावरण का सृजन करने में सहायक बनेंगे बल्कि संस्‍थान के अनुसंधान कार्य भी अधिक तीव्र गति की ओर अग्रसर होते हुए लक्ष्‍य प्राप्ति की जा सकेगी।

परिचर्चा में डॉ. शिव प्रसाद किमोथी, सदस्‍य,कृषि वैज्ञानिक चंयन मंडल, नई दिल्‍ली ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के माध्‍यम से देश के किसानों की खुशहाली हेतु योगदान देने को एक सुअवसर बताते हुए कहा कि अनुसंधान के विविध क्षेत्र में श्रेष्‍ठ वैज्ञानिकों के आगे आने तथा विकसित प्रौद्योगिकी से अंतिम छोर तक इसका लाभ पहुंचाने के ध्‍येय से मिलकर काम करना चाहिए ताकि देश और अधिक प्रगति कर सकें। उन्‍होंने ऊँटों की सीमित संख्‍या पर विवेचना व सतत कार्य की आवश्‍यकता जताई ।

केन्‍द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्‍धु साहू ने एनआरसीसी के कार्यक्षेत्र एवं अनुसंधान उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संस्‍थान ‘ऊँट’ को ‘डेजर्ट टू मेडिसिन अप्रोच’ की नीति पर कार्य कर रहा है ताकि इस प्रजाति के औषधीय दूध को विविध माध्‍यम से मानव स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हेतु पहुंचाया जा सकें । डॉ.साहू ने डेंगू, डायबिटीज, टीबी आदि सामयिक बीमारियों में ऊँटनी के दूध से लाभ पहुंचाने जैसे कई अनुसंधान कार्यों की भी जानकारी दीं ।

डॉ. ए.के. तोमर, निदेशक, केन्‍द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्‍थान, अविकानर ने वैज्ञानिक को प्रोत्‍साहित करते हुए संस्‍थान की कार्य प्रणाली, नई तकनीकी एवं इनसे जुड़े प्रशिक्षण आदि पर अपने विचार रखें । इस परिचर्चा की रूपरेखा प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन ने तैयार की तथा धन्‍यवाद प्रस्‍ताव डॉ.आर.के.सावल ने ज्ञापित किया।

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