मणिपुर मुद्दे पर केन्द्र सरकार की लेटलतीफी भाजपा के लिए होगा आत्मघाती कदम- दुबे
मणिपुर विवाद का क्या हो सकता है समाधान और गहलोत सरकार को योजनाओं का लाभ मिलेगा या नहीं जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

बीकानेर। ‘मणिपुर मुद्दे पर केन्द्र सरकार की लेटलतीफी भाजपा के लिए आत्मघाती कदम होगी’ यह बात आज सोमवार को प्रौढ़ शिक्षण समिति सभागार में आयोजित पत्रकार वार्ता में विचारक व पूर्व पत्रकार अभय कुमार दुबे ने कही। दुबे ने कहा कि विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस का भाजपा में विलय होना दुर्भाग्यपूर्ण रहा। इससे यह गंभीर मुद्दा देश के सामने है कि भाजपा से कही न कही चूक हुई है। लेकिन उसके बाद भी भाजपा ने वहां प्रभावशाली निर्णय नहीं लिया। न ही गृहमंत्री ने सदन के अंदर या बाहर इस विषय पर सरकार का कोई पक्ष रखा।
दुबे ने कहा कि सबसे पहले मणिपुर की समस्या को समझना होगा। वहां मैतेई हिंदू है और वे अपने को वैष्णव मानते हैं। काफी पढ़ें लिखे लोग है। मैतेई नेतृत्व ने सवाल उठाया कि उन्हें एससी का दर्जा मिले। इधर कोर्ट ने एससी का दर्जा देने का विचार करने को कहा तो कूकी समुदाय को लगा कि मैतेई को एससी का दर्जा मिल गया तो हमारी पहाड़ियों पर उनका कब्जा हो जाएगा। यहीं से विवाद उत्पन हुआ। मैतेई नर्म है वे उग्र हो गए। इस मामले में न राज्य सरकार ने रोका और न ही केंद्र ने। दुबे ने कहा कि यदि बीजेपी बिरेन सिंह को हटा देती तो विवाद इतना नहीं बढ़ता मगर भाजपा का पक्ष ही नहीं आया। मेरा मानना है कि वहां सबसे पहले नेतृत्व बदला जाए। इससे माहौल में नरमी आएगी। आरक्षण से जातीय असंतुलन उत्पन्न हो जाएगा। यहां बीजेपी कांग्रेस द्वारा मिलकर मैतेई को समझाया जाए।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन्हें विधानसभा चुनाव में मिलना चाहिए। ऐसा मेरा आंकलन है, मुझे लगता है मंहगाई राहत शिविर के जरिए गहलोत ने मतदाताओं को साधने का एक प्रयास किया है,जो उन्हें चुनाव में कहीं न कहीं फायदा पहुंचा सकता है। उन्होंने कहा कि राजनीति में मतभेद होना आम बात है। लेकिन सीएम गहलोत ने जिस तरह राजस्थान में काम किया। उससे प्रभावित होकर ही केन्द्रीय नेतृत्व ने उन पर भरोसा जताया है। लगता है कि अगला चुनाव भी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ा जा सकता है।
मीडिया हाउस पर एक तरफा खबरों की टीआरपी बटोरने की बात कहते हुए दुबे ने कहा कि सरकार जो पहलू मीडिया को थमाती है वह उसे आंख बंद कर मान लेता है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि जिन चैनलों ने अंधविश्वासों को टीआरपी की खातिर दिखाया,उनकी टीआरपी कम हुई। आज 84 प्रतिशत पत्रकार इस बात से पीड़ित भी है।
संस्थान के कार्यक्रम अधिकारी उमाशंकर आचार्य ने बताया कि दुबे दो दिवसीय बीकानेर यात्रा पर आए हुए थे जिसमें पहले दिन डाॅ. छगन मोहता की स्मृति में व्याख्यानमाला आयोजित की गई और दूसरे दिन बीकानेर के सुधि पत्रकारों के साथ उनकी वार्ता करवाई गई।