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पंच तत्व में विलिन पर्वतारोही बिस्सा की देह

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बीकानेर। बीकानेर के जवाहर नगर निवासी विख्यात पर्वतारोही मगन बिस्सा की देह पंच तत्वों में विलिन हो गई। बिस्सा को बड़े सम्मान के साथ श्मषान स्थल ले जाया गया। उनकी अंतिम यात्रा मेें शहर के हर कोने से आए लोग शामिल हुए। बिस्सा की अंतिम विदाई के अवसर पर हर आंख नम थी। बीकानेर के गौरव, मगन बिस्सा के बिछड़ने का हर किसी को गहरा दुख था। तीन लाख से अधिक लोगों को पैरासेलिंग व ढाई लाख से अधिक लोगों को एडवेंचर एक्टीविटी करा चुके पर्वतारोही मगन बिस्सा अब हमारे बीच नहीं रहे। शुक्रवार सुबह उन्होनें पुणे में अंतिम सांस ली। पर्वतारोहण व एडवेंचर को जीवन का हिस्सा बना चुके मगन बिस्सा नेशनल एडवेंचर फाउंडेशन (नेएएफ) के राजस्थान व गुजरात के डायरेक्टर रहे और भारतीय पर्वतारोहण संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहे। उन्हेांने शादी के कुछ माह बाद पत्नी डॉ. सुषमा बिस्सा को भी इस एडवेंचर का हिस्सा बना लिया। उनकी मानें तो विश्व के प्रथम पर्वतारोही तेंजिंग नोरगे से प्रभावित होकर वे पर्वतारोही बने।
साथी की जान बचाने दिया था खुद का ऑक्सीजन सिलेंडर
मगन ने एवरेस्ट शिखर से 300 मीटर नीचे एक साथी की जान बचाने खुद का ऑक्सीजन सिलेंडर उसे दे दिया और सुरक्षित नीचे ले आए। 1985 में भारतीय सैन्य एवरेस्ट अभियान दल में शामिल होकर एवरेस्ट के सबसे मुश्किल रास्ते दक्षिण-पश्चिम से ऊपर चढ़ चुके मगन का संतुलन बिगड़ गया था, जिससे वे 700 मीटर नीचे गिर गए। हादसे में पैर टूट गया। लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी। 2009 में पत्नी डॉ. सुषमा के साथ नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी का हिस्सा बने। पांच दिन के रेस्ट के लिए नीचे आते समय हिमस्खलन की चपेट में आने से आंतों में गेगरीन हो गया। नाजुक हालत में रेस्क्यू कर काठमांडू लाया गया। जहां उन्हें इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड वाइलरी साइंस अस्पताल में एक साल तक भर्ती रखा गया। जान बचाने के लिए उनकी छोटी आंत तक काटनी पड़ी थी।
यह मिले अवार्ड
– राजस्थान का महाराणा प्रताप खेल अवार्ड
– नेशनल एडवेंचर क्लब का भारत गौरव मेडल
– भारतीय पर्वतारोहण संघ का गोल्ड मेडल
– सेना मेडल वीरता पुरस्कार- पंडित किशनसिंह नैन अवार्ड (यह पुरस्कार देश में पर्वतारोहण करने वाले 7 जुझारू व्यक्तियों को मिल सका है। नैन 19वीं शताब्दी में हिमालय के सर्वे के एक्सप्लोरर रहे हैं।)
रोहतक में राष्ट्रीय युवा महोत्सव में साझा की अपने संघर्ष की कहानी
विश्व के प्रथम पर्वतारोही तेंजिंग नोरगे से प्रभावित होकर पर्वतारोही बना। 1978 में एमकॉम करने के बाद हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग से तेंजिंग नोरगे की ही देखरेख में पर्वतारोहण का बेसिक कोर्स किया। 1984 में पहली बार उस राष्ट्रीय एवरेस्ट अभियान के सदस्य बना, जिसमें बछेंंद्री पाल शामिल थीं। एवरेस्ट शिखर से 300 मीटर नीचे एक साथी की जान बचाने के लिए खुद की भी परवाह नहीं की और अपना ऑक्सीजन सिलेंडर उसे देकर लौट आया। वर्ष 1985 में भारतीय सैन्य एवरेस्ट अभियान दल में शामिल होकर एवरेस्ट के सबसे मुश्किल रास्ते दक्षिण पश्चिम से ऊपर चढ़ते हुए उन्होंने 26,700 फीट तक रास्ता खोला। उसी वक्त एक साथी को गिरकर और 4 साथियों को साउथ कोल तूफान की चपेट में आने पर जान गंवानी पड़ी। फिर भी चढ़ाई जारी रखी। एक पर्वतारोही की गलती से बैलेंस बिगड़ा और 700 मीटर नीचे आ गिरा, टांग टूट गई। वर्ष 1992 में पूना सिविलियन अभियान के साथ एवरेस्ट के मिशन पर निकले, लेकिन दो साथियों की मौत हो जाने के कारण सक्सेस नहीं हो पाए। वर्ष 2009 मेंं पत्नी डॉ. सुषमा बिस्सा के साथ नेहरू पर्वतारोहण संस्थान उत्तरकाशी का हिस्सा बना। 23 हजार फीट की ऊंचाई पर तीसरे कैंप में 15 सदस्यों में मेरे समेत 11 पर्वतारोही फिट पाए गए। 5 दिन के रेस्ट के लिए नीचे आते समय हिम स्खलन (एवलांस) की चपेट में आने से आंतों में गैंग्रीन हो गया। नाजुक हालत में उन्हें रेस्क्यू कर काठमांडू लाया गया। जहां उन्हें इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड वाइलरी साइंस अस्पताल में एक साल तक भर्ती होना पड़ा। पद्म विभूषण डॉ. शिव सरीन ने चार ऑपरेशन किए। जान बचाने के लिए उनकी छोटी आंत काटने के बाद 22 फीट से घटकर पौने पांच फीट और बड़ी आंत की लंबाई आधी रह गई।

Eminent mountaineer Magan Bissa, a resident of Jawahar Nagar in Bikaner, became the body of the five elements. Bissa was taken to the crematorium with great respect. His last visit included people from every corner of the city. Every eye was moist on Bissa’s final farewell. Everyone was deeply saddened by the loss of Bikaner’s pride. Mountaineer Magan Bissa, who has parasailing more than three lakh people and adventure activity to more than two and a half lakh people, is no longer among us. He breathed his last in Pune on Friday morning.

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