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…तो फिर मंडी प्रांगणों को क्यों बनाया जा रहा है कश्मीर

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– मंडी परिसर से बाहर व अंदर उपज के क्रय विक्रय पर टैक्स में भेदभाव 

– परेशान मंडी कारोबारियों ने पीएम व सीएम से लगाई गुहार

बीकानेर। श्री बीकानेर कच्ची आड़त व्यापार संघ ने प्रधानमंत्री एवं राजस्थान के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अनाज मंडियों के अस्तित्व को बचाने तथा सुविधाओं के साथ किसानों की आय बढ़ाने की मांग की है। पत्र में संघ के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद पेड़िवाल, संरक्षक व पूर्व अध्यक्ष मोतीलाल सेठिया एवं उपाध्यक्ष ओमप्रकाश धारणिया ने लिखा है कि भारत सरकार के कृषक उत्पाद व्यापार, वाणिज्य प्रोत्साहन एवं सुविधा अध्यादेश 2020 से देश भर के किसानों की उपज खरीद करने पर मंडी शुल्क, सेंस, उपकर आदि को हटाया गया है। ये किसानों के हित में है और सराहनीय कदम है। इसमें जो मंडी परिधि व उसके बाहर का भेदभाव किया गया है उसकी जगह ये पूरे देश में एक सम्मान किया जाए ताकि मंडी प्रांगणों में प्रतिस्पर्धा के साथ उपज बेचने वाले हमारे ही देश के किसानों को भी इसका लाभ मिल सकें। अन्यथा आप और हम सब की मेहनत से पिछले पच्चीस-पच्चास वर्षो से विकसित हुई मंडियां बर्बाद हो जाएगी। हमारा किसान बिना प्रतिस्पर्धा के ठगा जाएगा उसका शोषण होगा। मंडी प्रांगणों में किसानों को सभी प्रकार की सुविधाएं मिलती है। सभी कार्य  पारदर्शिता के साथ सम्पन्न होते है। सीधी खरीद में तौल मौल भाव में पारदर्शिता नहीं रहेगी। उसकी उपज का भुगतान भी खतरे में रहेगा। क्योंकि करोड़ों पैन कार्ड होल्डर पर कंट्रोल करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा। आज धरातल पर स्थिति यह है कि ज्यादातर पैन कार्ड होल्डर रिर्टन ही नहीं भरते है सिर्फ देखा देखी पैन कार्ड जारी करवा लेते है। हमारा सुझाव है कि इसमे एएमपीसी लाइसेंस की शर्त यथावत रखी जाए ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे। मंडी प्रांगणों में करोड़ों की तादाद में व्यापारियों, दलालों, खरीददारों, मुनिमों, आड़तियों, पल्लेदारों, गाड़ें, टैक्सी, ट्रक वालों, मजदूरों, हमालों, कर्मचारियों आदि को रोजगार मिला हुआ है। सरकारें उद्योगों व पर्यटन को बढ़ावा देती है ताकि देष प्रदेष के नागरिकों को रोजगार मिलें तो फिर मंडी प्रांगणों को कश्मीर क्यों बनाया जा रहा है। धारा 370 क्यों लागू की जा रही है यानि मंडी प्रांगणों में सभी तरह के टैक्स वसूले जाएंगे।

एक व्यापार, टैक्स व्यवस्था के दो व्यवहार

संघ पदाधिकारियों ने पूरजोर मांग है कि एक ही प्रकार के व्यापार में मंडी परिधि में टैक्स लगेगा और परिधि से बाहर टैक्स नहीं लगेगा तो मंडी व्यापारी भी देश प्रदेश के नागरिक है ये सौतेला व्यवहार नहीं किया जाए। मंडी प्रांगणों में किसानों का उपज की सफाई, पीने का पानी, चाय, भोजन, बैठने आराम करने की व्यवस्था, आवश्यकता पड़ने पर रात को रूकने की व्यवस्था, उसी दिन तुरन्त नगदी भुगतान मिलना तथा आवश्यकता पड़ने पर आड़़तिया बीज व खाद्य दवाई भी उपलब्ध करवाने के साथ वक्त जरूरत यथा संभव अति आवश्यक होने पर आर्थिक मदद भी करता है। हमारी पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व. सुषमा स्वराज ने लोकसभा में बहस में कहा था कि आज भी हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था आड़़तियों पर टिकी हुई है। मंडी का आड़़तिया किसानों का पारम्परिक एटीएम तक कहा था किसानों को जब जरूरत पड़ती है वो अपने आड़़तिए के पास जाता है। एक किसान और एक आड़़तिए का चोली दामन का साथ है। इस संस्कृृति को बचाए रखा जाए। एक आड़़तिए का सरकार द्वारा तय आड़़त के रूप में मेहनताना दिया जाता है। महंगाई के इस जमाने में किसी भी प्रकार इस आड़त को कम करने का कुठाराघात न किया जाएं। देश की अर्थव्यवस्था में इन आड़तियों व्यापारियों की अहम भागीदारी है। इस अध्यादेश में एक पहलू छूट गया है जो किसान की उपज पर जीएसटी का वर्तमान में तिलहन, ईसबगोल, जीरा, मैथी आदि अनेकों किसानों की उपज है जिसमें पांच प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता है। वास्तव में हमारी सरकारें सही मायने में ही किसानों की आय बढ़ाना चाहती है तो किसी भी प्रकार की कृषि उपज पूरे देश में कहीं पर भी खरीद की जाती है तो उस खरीददार को किसी प्रकार का टैक्स न भरना पड़े तो उसका सीधा फायदा किसान को होगा। कृषि उपर्जों पर जीएसटी को अविलम्ब हटाकर किसानों को राहत प्रदान की जाए। 

कृषि जिन्सों पर लागू हो बोनस प्रणाली

किसानों की आय बढ़ाने के संबध में हमारा सुझाव है कि न्यूनतम सर्मथन मूल्य से कम में विक्रय होने वाली कृषि जिन्सों पर बोनस प्रणाली लागू हो। जैसे अभी मध्यप्रदेश के पांच जिलों में सरकार ने चना पर 500 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस दिया है। मंडी प्रांगणों में प्रतिस्पर्धा के बावजूद भी किसान की उपज का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम रह जाता है तो उसको निर्धारित प्रोत्साहन राशि देने का विकल्प रखा जाए। वर्तमान की समर्थन मूल्य पर खरीद योजना मेँ मध्यम व कमजोर वर्ग का किसान वंचित रहता है। वर्तमान समर्थन मूल्य में तो 25 प्रतिषत ही आर्थिक रुप से सक्षम किसान ही उपज तुला पाते है शेष 75 प्रतिषत उपज तो तौल माफिया ही तुलवाकर सरकार को अरबों रुपये का चूना लगा रहे है। इस विभाग में नीचे खरीद केन्द्रों से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर है। हमारा सुझाव है कि मंडी प्रांगणों में प्रतिस्पर्धा के बावजूद मूल्य कम रहने वाले किसानों को 25 क्विंटल की निर्धारित मात्रा में गिरदावरी आधार कार्ड भामाशाह जन आधार बैंक विवरण लेते हुए बोनस के रुप में प्रोत्साहन राशि सीधे किसानों के खातों में डाली जाए। जिसका सीधा-सीधा फायदा कमजोर व मध्यम वर्ग के किसानों को मिलेगा।   

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