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तनाव है तो ज़िन्दगी है – डॉ बिस्सा

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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली की हिंदी कार्यशाला

बीकानेर। हिंदी मात्र एक भाषा नहीं अपितु मातृभाषा है. शोध के अनुसार मातृभाषा में पढ़ाई गई बात की स्वीकृति अधिक होती है तथा व्यक्ति भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता है. यह विचार मैनेजमेंट ट्रेनर डॉ. गौरव बिस्सा ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के अनुभाग अधिकारियों हेतु आयोजित ऑनलाइन कार्यशाला में बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये. तनाव प्रबन्धनऔर क्षमता संवर्धन विषय पर आयोजित इस कार्यशाला में डॉ बिस्सा ने बताया कि तनाव का सबसे बड़ा कारण है परिवर्तन को अस्वीकार करना. तनाव और जीवन समानार्थक हैं क्योंकि तनावहीन व्यक्ति तो मृत होता है. तनाव से बचने हेतु डॉ बिस्सा ने कहा कि नियमित व्यायाम, प्राणायाम, खेलकूद करना, संतुलित आहार लेना, जर्दा, सिगरेट, शराब आदि का त्याग, प्रेमीजनों और मित्रों से मिलते रहना और उनसे बातचीत करते रहना अहम है क्योंकि इससे वेंटिलेशन हो जाता है और व्यक्ति रिलैक्स्ड महसूस करता है.
डॉ. बिस्सा ने बताया कि शोध के अनुसार मातृभाषा में सीखने और समझने की गति दूसरी भाषाओँ के मुकाबले सोलह फीसदी अधिक होती है. कर्मचारियों में कार्यनिष्ठा की व्याख्या करते हुए डॉ. बिस्सा ने कहा कि कार्य की सर्वाधिक प्रेरणा अंतर्मन के विश्वास से आती है. उन्होंने कहा कि यदि कर्मचारी के अंतर्मन में विश्वास हो तो वह संसाधनों के अभाव में भी सर्वोत्कृष्ट परिणाम प्राप्त कर लेता है.
कार्यशाला की प्रभारी अधिकारी डॉ. सीमा चोपड़ा ने बताया कि भाषा की उन्नति में राष्ट्र का कल्याण छिपा है. उन्होंने कहा कि निष्ठा के साथ अपने कार्य को करना ही समाज की सबसे बड़ी सेवा है. डॉ चोपड़ा ने डॉ गौरव बिस्सा का परिचय दिया और आभार ज्ञापित किया.

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