BikanerExclusiveSociety

रंगा का साहित्य हमें सकारात्मक सृजन ऊर्जा देता है-जोशी

0
(0)

बीकानेर। कविता संवेदना संघर्ष और सहानुभूति को एक संयम के साथ प्रस्तुत करने का हुनर है। वर्तमान दौर में जहां कवि और कविता को लेकर तरह-तरह की बातें एवं प्रयोग हो रहे हैं। इसी संदर्भ में तमाम भारतीय भाषाओं में कविता एक नई करवट ले रही है। ऐसे में कविता कर्म सृजन की शब्द उपासना करना है। अतः हमें इस पेटै गंभीर होना चाहिए। यह उद्गार कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि कथाकार कमल रंगा ने व्यक्त किए। अवसर था प्रज्ञालय एवं कमला देवी लक्ष्मीनारायण रंगा ट्रस्ट द्वारा आयोजित देश के ख्यातनाम साहित्यकार, नाटककार, चिंतक एवं शिक्षाविद् कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा की स्मृति में होने वाले कार्यक्रमों की 11वीं कड़ी का जो नत्थूसर गेट के बाहर स्थित, कमला सदन बीकानेर में आयोजित हुए विशेष त्रिभाषा काव्य गोष्ठी जो कि पिता पर केन्द्रित रही। उसमेें अपनी बात रखते हुए रंगा ने आगे कहा कि कविता को गहरी संवेदना एवं ठोस अनुभूति के साथ प्रस्तुत करने के लिए भाषा के ठीक व्यवहार का होना आवश्यक है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने लक्ष्मीनारायण रंगा के रचना संसार पर बोलते हुए कहा कि रंगा मानवीय चेतना के सशक्त पैरोकार थे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि लक्ष्मीनारायण रंगा का साहित्य हमंे सकारात्मक सृजन ऊर्जा देता है।
प्रारंभ में अतिथियों द्वारा लक्ष्मीनारायण रंगा के तेल चित्र पर माला अर्पण की गई साथ ही उपस्थित सभी कवि शायरों ने अपनी श्रद्धा व्यक्त की। सभी का स्वागत करते हुए संस्कृतिकर्मी प्रेमनारायण व्यास ने रंगा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपनी बात रखते हुए आयोजन संस्था द्वारा पूर्व में आयोजित विभिन्न तरह के दस कार्यक्रमों का विवरण रखा।
त्रिभाषा विशेष काव्य गोष्ठी में नियमानुसार रचनाकारों ने अपनी पूर्णतः नई कविता का वाचन किया। इसी क्रम में कार्यक्रम का आगाज करते हुए वरिष्ठ कवयित्री डॉ. कृष्णा आचार्य ने पिता पर केन्द्रित कविता हमारे बाऊजी जीवन भर/बच्चों को छांव देते रहे के माध्यम से पिता के व्यक्तित्व को रेखांकित किया।

वरिष्ठ राजस्थानी कवि कमल रंगा ने अपनी दो नई कविता-ओळूं रै ओळावै/चित चढे थांरी ही समझायस पेश कर पिता के जीवन की स्थितियों-परिस्थितियों को बहुत ही ढंग से मार्मिक रूप से पेश किया।
वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने अपनी ताजा गजल के उम्दा शेर के माध्यम से एक तरफ पिता के समर्पण-संघर्ष को बयां किया। वहीं परिवार का मुखिया होने के नाते पिता की मानवीय पीड़ा को भी स्वर दिया। वरिष्ठ कवि राजेन्द्र जोशी ने अभी भी प्रयासरत हूं/आपकी विरासत को-एवं खुद की जीत को हार में बदलकर…….के माध्मम से पिता के संघर्ष को रेखांकित करते हुए उन्हें नमन स्मरण किया।

वरिष्ठ कवि डॉ गौरीशंकर प्रजापत ने अपनी कविता बूढो बाप ढोवे आपरो बोझा…… पेश कर पिता के जीवन संघर्षों को स्वर दिया। वहीं वरिष्ठ रंगकर्मी एवं गायक बी.एल. नवीन ने परम पिता परमेश्वर को केन्द्र में रखकर एक सस्वर भजन पेश किया।
वरिष्ठ शायर वली मोहम्मद गौरी ने अपनी ताजा रचना तुम्हारा गम भुला देती है मां/एक भी पल गाफिल पेश कर पिता की स्मृतियों को ताजा करते हुए पारिवारिक रिश्तों की सौरम बिखेरी। वरिष्ठ कवि राजाराम स्वर्णकार ने अपनी कविता-पिता एक अनुभवी बुनकर होता है…… के मार्फ्रत पिता के विराट व्यक्तित्व को प्रगट किया। वहीं वरिष्ठ कवि जुगल पुरोहित ने पिता को समर्पित-जीवन दाता का नाम है बाऊजी….. पेश कर पिता के महत्व को रेखांकित किया। वरिष्ठ कवि बाबूलाल छंगाणी ने अपनी कविता जिन्दगी जिणौ है/तो हंस-हंस जिणौ है पेश कर जीवन पिता के जीवन यथार्थ को रखा। कवि कैलाश टाक ने नए युग के पिता की पीडा को रेखांकित करते हुए कहा कि बदला जमाना/क्या हो गया इसी तरह वरिष्ठ कवि शिव दाधीच और अब्दुल शकूर बीकाणवी ने पिता को समर्पित अपनी नई रचना के माध्यम से जीवन और पिता के संबंधों को उकेरा।

इसी कडी में कवि डॉ नृसिंह बिन्नाणी ने पिता पर केन्द्रित अपने ताजा हाइकू पेश कर पिता के संघर्ष को रखा।
युवा कवि गिरीराज पारीक ने अपनी कविता पिता है हमारे आदर्श/मिलता रहा है उनसे श्रेष्ठ परामर्श….. के माध्यम से पिता को सम्मान देते हुए उनकी जीवन यात्रा को रखा। कार्यक्रम में कवि विप्लव व्यास ने अपनी राजस्थानी कविता-थे हा तो ठाठा हा/भायां री भींत नीं……..पेश कर आज की संतानों और पिता के रिश्तों पर बात रखी।

कार्यक्रम में कवि मईनुद्दीन, गंगा बिशन बिश्नोई एवं कोलकाता के हिंगलाज दान रतनू की भेजी पिता पर केन्द्रित रचनाओं का भी वाचन किया गया।
कार्यक्रम में राजेश रंगा, हरिनारायण आचार्य, भवानी सिंह, कार्तिक मोदी, सुनील व्यास, तोलाराम सारण, नवनीत व्यास, आशीष रंगा सहित कई काव्य रसिकों ने अपनी गरिमामय साक्षी दी।
कार्यक्रम का संचालन कवि गिरीराज पारीक ने किया। सभी का आभार इतिहासविद् एवं संस्कृतिकर्मी डॉ. फारूक चौहान ने ज्ञापित किया।

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

As you found this post useful...

Follow us on social media!

Leave a Reply