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बीकानेर स्थापना दिवस पर विशेष : इतिहास और संस्कृति की जीवंत जुबान है बीकानेर

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शहर की जीवटता सहजने के संकल्प का दिन है बीकानेर स्थापना दिवस
(कुमार पाल गौैतम, जिला कलक्टर, बीकानेर)
बीकानेर। कोई शहर जमीन का टुकड़ा मात्र नहीं होता, बल्कि किसी इतिहास, संस्कृति और सभ्यता की जीवंत जुबान होती है। शहर की कहानी में युगों का वृत्तांत छुपा होता है और हर गली, मौहल्ले, नुक्कड़ तथा बाजारों से उन क़िस्सों की महक आती है, जो धीरे-धीरे उस शहर की पहचान बन जाती है।
        बीकानेर के संदर्भ में यह बात बिल्कुल सटीक है। करीब 532 सालों का इतिहास समेटे बीकानेर की कहानी यहां की हवेलियों, परकोटे की दीवारों, मंदिरों की घंटियों, मस्जिदों की अजान, पाटों की चहल पहल और यहां रहने वालों की जिदांदिली, प्रेम और सोहार्द से खुद ब खुद जाहिर होती है।  मेहमान नवाजी की शानदार परंपरा, समृद्ध स्थापत्य, रंग बिरंगी लोक संस्कृति के बूते समूचे हिन्दुस्तान में ही नहीं विश्व भर में बीकानेर की एक अलग पहचान है।
  थार के विशाल रेगिस्तान के बीचोबीच स्थित इस शहर ने अपनी स्थापना से लेकर 21वीं सदी के दो दशक पूरे करने तक कई दौर देखे। समृद्ध परंपराओं के साथ-साथ आज आधुनिकता की आहट शहर की आबोहवा में अपनी जगह बनाती स्पष्ट रूप से  नजर आ रही है। राष्ट्रीय स्तरीय अनुसंधान केंद्र, फ्लाईओवर, सड़कों के साथ विस्तार ले रहे इस शहर के परकोटे में सटी और संकरी गलियों में बीकानेर की मूल संस्कृति अब भी अपनी खनक बिखेरती है और यही बात पर्यटकों को इस शहर को नजदीक से देखने के लिए खींच लाती है।

राव बीका ने 532 साल पहले रखी नींव
  ’’पनरे सौ पैतालवे, सुद वैशाख सुमेर। थावर बीज थरपियो, बीके बीकानेर’’

जोधपुर के राव जोधा के पुत्र राव बीका ने विक्रम संवत् 1545 में अक्षया द्वितीया (ईस्वी 13 अप्रेल 1488) के दिन स्वर्णिम रेतीले धोरों के बीच इस नगर की नींव रखी। प्राचीन काल में जांगल प्रदेश के रूप में विख्यात रहे बीकानेर के पश्चिमी क्षेत्र कोलायत में सरस्वती नदी का प्रवाह स्थल भी माना जाता था, जो कालांतर में विलुप्त हो गई।
रियासतकाल में बीकानेर पर अनेक राजाओं ने शासन किया। आजादी के बाद यहां के शासक सार्दुल सिंह के समय बीकानेर का विलय राजस्थान में हो गया।  
समृद्ध विरासत की बानगी है जीवनशैली
यहां के लोगों की ‘बेफिक्र‘ जीवन शैली के चलते ही इसे एक अलमस्त शहर के तौर पर जाना जाता है। बीकानेर की खूबसूरती केवल पत्थरों सेे नहीं झलकती, बल्कि यहाँ की लोक संस्कृति में बिखरे अनगिनत रंग इस शहर को कुछ अलहदा सा अंदाज देते हैं।
समरसता की मिसाल
सांप्रदायिक सौहार्द को समेटे इतना खूबसूरत शहर पूरी दुनिया में शायद ही कोई मिल सके। परकोटे के भीतर हर धर्म ,जाति, मजहब के लोग जिस प्रेम और समरसता के साथ सदियों से रहते आए हैं, ऐसी कोई दूसरी मिसाल मिलना दुर्लभ ही होगा।

बीकानेर स्थापना दिवस पर अक्षया द्वितीया व तृतीया का पर्व तो साम्प्रदायिक सौहार्द का सटीक संदेश देता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई व अन्य सभी मजहबों के लोग एक साथ मिलकर पतंगबाजी करते हैं, घरों में इमली का पना (इमलानी) गेहूं, बाजरी, मूंग व मोठ का खीचड़ा, चार फोल्ड के फुल्के (रोटियां) और हरी पत्तियों की चंदलिए की सब्जी बनाकर बड़े चाव से खाते हैं। सर्वधर्म महिलाएं इस मांगलिक अवसर पर प्रचलित पारम्परिक लोक गीतों को गाकर नगर के सौहार्द और यहाँ की समृद्ध परम्पराओं को पुष्ट करती है।
हवेलियों, किलों, मंदिरालयों और देवालयों का शहर
हजार हवेलियों के शहर के रूप में विख्यात इस शहर में सैंकड़ों मंदिर और देवालय है। चिंतामणि जैन मंदिर, भांडाशाह जैन मंदिर, लक्ष्मीनाथ मंदिर, देवी नागणेचीजी मंदिर धार्मिक परम्पराओं के साक्षी हैं, तो रामपुरिया की हवेलियां, जूनागढ़ किला, लालगढ़ पैलेस, गजनेर पैलेस, लक्ष्मी निवास देवीकुण्ड सागर, यहां रियासतकालीन वैभव के प्रतीक है।  वहीं हेरिटैज वाॅक नए पर्यटन इवेंट के रूप में प्रचलित हुआ है।
बेजोड़ चित्रकारी के मुरीद दुनिया भर में
  बीकानेर की लघु चित्रकला व ऊंट की खाल पर सुनहरी चित्रकारी शैली (उस्ता कला)का भी कोई सानी नहीं है। चित्रकला की इन शैलियों को सीखने के लिए जापान, अमेरिका सहित विश्व के अनेक देशों से कला विद्यार्थी आते हैं। मुस्लिम उस्ता कलाकारों द्वारा ऊंट की खाल पर उकेरे जाने वाली सुनहरी कलम की कारीगरी मंदिरों, मस्जिदों, शहर की हवेलियों, जूनागढ़ किले, लालगढ़ व गजनेर पैलेस सहित विभिन्न स्थानों को एक अलग खूबसूरती के साथ प्रस्तुत करती है। मुस्लिम चूनगरों की आलागीला पर चित्रकारी, मथैरण कलाकारों की भित्ति चित्रकारी व गणगौर की प्रतिमाओं पर चित्रांकन देखते ही बनता हैं। बीकानेर की स्वर्णकारी कला भी लोकप्रिय है। यहां के कलात्मक कुंदन मीना, जड़ाई के आभूषण विश्व के अनेक देशों में लोकप्रिय हैं।
साहित्यकारों ने दी अलग पहचान
स्थापत्य, चित्र शैलियों के साथ बीकानेर साहित्यक रूप से भी समृद्ध शहर है।  रियासल काल में पृथ्वीराज राठौड़ द्वारा रचित ’’वेलि कृष्ण रुक्मणी री’’ राजस्थानी साहित्य का सिरमौर ग्रंथ हैं वहीं अनूप विवेक, काम प्रबोध, संगीत अनूपांकुश, अनूप संगीत विलास जैसे ग्रंथ यहां के समृद्ध साहित्यिक परंपरा के द्योतक है। जैन, चारणों व भाटों का भी इस परंपरा को समृद्ध बनाने में विशेष योगदान रहा है। इन्हीं साहित्यिक परम्पराओं के फलस्वरूप आज बीकानेर के अभय जैन ग्रंथालय, बड़ा उपासरा, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, गंगा  गोल्डन म्यूजियम, अनूप लाइब्रेरी आदि में साहित्य का खजाना विद्यमान है। आधुनिक-काल में भी बीकानेर के साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक परम्पराओं को आगे बढ़ाया है और बीकानेर का नाम रोशन किया है।  संगीत के क्षेत्र में भी रियासतकाल से आज तक दमामी व अन्य जाति व समुदाय के कलाकारों ने इस शहर की विशिष्टता को कायम रखा है। पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई ने राजस्थानी मांड गायकी को लंदन के अल्बर्ट हाॅल तक में गूंजायमान कर शहर की शोहरत को बढ़ाया। युवा पीढ़ी के अनेक कलाकार भी संगीत की समृद्ध परम्पराओं को अपनी बेजोड़ गायकी से आगे बढ़ा रहे हैं।
संतों ने दिखाया अहिंसा और त्याग का मार्ग
बीकानेर की धरा पर कपिल मुनि, गुरु जम्भेश्वर, आचार्य तुलसी जैसे संतों ने अहिंसा, त्याग, दया और परोपकार जैसे मानवीय मूल्यों की प्रतिस्थापना की और मानवता की सेवा का संदेश दिया। सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि की तपोभूमि कोलायत, चूहों की देवी के रूप में विश्व विख्यात श्रीकरणी माता मंदिर, बिश्नोई सम्प्रदाय के प्रवर्तक गुरू जम्भेश्वर का समाधि स्थल मुुुुकाम और अणुव्रत के प्रवर्तक जैन मुनि आचार्य तुलसी की बीकानेर स्थित समाधि शक्ति स्थल आज भी लाखों लोगों की श्रद्धा का केन्द्र है।
     नगर सेठ के रूप में विख्यात लक्ष्मीनाथ जी का मंदिर शहर के हृदय स्थल में स्थित है इस मंदिर की आस्था का परवान यह है कि शहरवासी अपने कर्म लक्ष्मीनाथ जी को समर्पित कर गीता के निष्काम कर्म के सिद्धांत को अपने जीवन में साकार करते नजर आते हैं। नगर सेठ की यह परंपरा यहां के लोगों को मोह, माया, क्रोध, लोभ जैसे दुर्गुणों से दूर कर नर सेवा ही नारायण सेवा के मंत्र के करीब लाती है।

विस्तार लेती नगर की सीमाएं
प्राचीन शहर परकोटे के अंदर बसा है, रियासत के राजाओं ने शहर की रक्षा के लिए परकोटा बनवाया था। परकोटे में पांच दरवाजे व आठ बारियां हैं। शहर की बढ़ती आबादी के मद्देनजर आने जाने के लिए स्वरूप में बदलाव करते हुए कुछ दरवाजों के दोनों और दो-दो दरवाजे और बना दिए गए। शहर के हृदय स्थल पर लाल पत्थर से निर्मित कोटगेट के तीन दरवाजों का स्वरूप ज्यों का त्यों है। समय के साथ-साथ शहर की आबादी बढ़ी और इसके चलते बाहरी इलाकों में नई काॅलोनियां बस गई। इन काॅलोनियों में शहर के लोगों की बसावट से शहर की समृद्ध परम्पराएं बाहरी इलाकों में भी प्रतिष्ठित हुई हैं। शहर के आस पास के उप नगरों गंगाशहर, भीनासर, करमीसर को नगर निगम के क्षेत्र में मिलाने से शहर का क्षेत्रफल चैगुना हो गया।

शिक्षा और स्वास्थ्य हब के रूप में आकार लेता बीकानेर
  वर्तमान में बीकानेर शहर तेजी से शिक्षा व स्वास्थ्य के हब के रूप में विकसित हो रहा है। संभाग के सबसे बड़े पीबीएम अस्पताल में विभिन्न चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के बाद अब यहां सुपर स्पेशिलिटी ब्लाॅक बनाया गया है। आधुनिकतम तकनीकी सेवाओं की उपलब्धता व अनुसंधान केन्द्रों के रूप में भी बीकानेर ने अपनी अलग पहचान बनाई है। कृषि, चिकित्सा, पशु चिकित्सा, तकनीकी और मानविकी विषयों में उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान के नए केन्द्र के रूप में उभरा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, केन्द्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र तथा केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान ने रिसर्च में कई उपलब्धियां हासिल की है तथा शोधार्थियों के लिए नए द्वार खोले हैं।
       छोटी काशी के नाम से विख्यात बीकानेर में वर्तमान में चार राजकीय और एक निजी विश्वविद्यालय सहित पांच विश्विविद्यालय विद्याथिर्यों को शैक्षणिक सुविधाएं उपलब्ध करवा रहे हैं। कृषि, पशुपालन, तकनीकी के स्पेशलाइजेशन के साथ साथ मानविकी विषयों में नये शोध हो रहे हैं और पूरे संभाग के साथ साथ प्रदेश भर के विद्यार्थियों को इन शैक्षणिक संस्थाओं का लाभ मिल रहा है।
सामरिक दृष्टि से भी बीकानेर देश की अंतराष्ट्रीय सीमा पर स्थित एक अहम जिला है। पाकिस्तान के साथ 168  किलोमीटर की सीमा साझा होने के मद्देनजर यहां बीएसएफ, वायुसेना स्टेशन है। समय समय पर यहां होने वाले युद्धाभ्यास के कारण भी यह अन्तर्राष्ट्रीय सुर्खियों में बना रहता है।
       लोक संस्कृति, एतिहासिक वैभव, भौगोलिक परिदृश्य और धार्मिक आस्थाओं के केन्द्र के कारण बीकानेर वैश्विक पटल पर पर्यटन के अहम बिंदु के तौर पर उभरा है पिछले कुछ वर्षों से यहां आयोजित हो रहे ऊंट उत्सव ने बीकानेर को दुनिया भर के पर्यटकों  के बीच एक नए तीर्थ के रूप में स्थापित किया है।

आर्थिक संभावनाओं में नये द्वार
ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ बीकानेर के आर्थिक परिदृश्य ने भी देशभर में अलग पहचान बनाई है। यहां बने पापड़ व भुजिया, रसगुल्ला का स्वाद सुदूर देशों तक पहुंचता है। सौर ऊर्जा, होलसेल व्यावसायिक गतिविधियां, एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट्स और पर्यटन उद्योग आर्थिक संभावनाओं के नए क्षेत्र है। यहां की जमीन में लिग्नाइट कोयला, जिप्सम के भंडार समाए हैं, तो कोलायत क्षेत्र सिलिका सेंड, बाॅल क्ले, बजरी, और चूना पत्थर पोटाश, दुलमेरा पत्थर, सेंड स्टोन के मुख्य एक्पोर्ट सेंटर के रूप में विकसित हो रहा है। रानी बाजार, बीछवाल, करणी, खारा मुख्य औद्योगिक केन्द्रों के रूप में विकसित हो रहे हैं। सफेद मिट्टी, चाइना क्ले की मांग देश भर के कल-कारखानों में है। बीकानेर में बने ऊनी गलीचे, कंबल, शाॅल, सूती कपड़े और रंगाई भी देश भर में प्रसिद्ध है। बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ बीकानेर का आर्थिक ढांचा भी मजबूत हो रहा है। यहां उपलब्ध लैंड बैंक ने कई नए उद्योगों के विकास की संभावनाओं को मजबूत किया है। जिला प्रशासन विभिन्न योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के जरिए स्थानीय युवा उद्यमियों के सपनों को पंख देने और स्वरोजगार के अवसर पैदा करने के लिए सतत प्रयासरत है। बीकानेर रेल, बस और हवाई मार्ग से देश दुनिया से जुड़ चुका है। राष्ट्रीय राजमार्ग 15, 11 और 89 यहां से होकर निकलते हैं। विकास की यह डगर बीकानेर को एक नई पहचान दिलाने के लिए आतुर है। आमजन के विकास में आमजन की भागीदारी के मंत्र के साथ जिला प्रशासन एक समन्वय इकाई के रूप में तत्परता से जुटा है।
आधुनिकता और परम्पराओं के समागम केंद्र के रूप में शहर प्रगति के नए सोपान तय कर रहा है। यहां की जलवायु भले ही विषम है पर यहां के जीवन में समताएं है । बदलाव की बयार के साथ आज शहर के हर निवासी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी परंपराओं को सहेजे और शहर की जीवटता को बचाने में अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाए।

 पूरा विश्व आज जब कोरोना संकट से जूझ रहा है तब बीकानेर वासियों ने एकजुटता दिखता हुए लाॅकडाउन के नियमों की अनुपालना की और प्रशासन का पूरा सहयोग किया। संकट की घड़ी में यह एकजुटता प्रशंसनीय है। संकटकाल में जरुरत मंद की मदद  यहां के भाााममशाह से लेकर  आमजन की प्रकृति रही है।
      नगर सेठ लक्ष्मी नाथजी परम्परा का निर्वाह करते नगरवासी समाज की जरूरत के समय अपना तन मन और धन अर्पण करने में कभी पीछे नहीं रहे हैं। आज भी यह संकल्प दोहराना है और एक भी व्यक्ति भूखा ना सोए इसके लिए हर संभव मदद को आगे आना है। यही स्थापना दिवस का सही अर्थों में सेलिब्रेशन होगा। इस वर्ष स्थापना दिवस पर आत्मविश्वास के साथ एक दूसरे के भरोसे को और मजबूत बनाए और विश्वास की इस डोर से संकट की पतंग काट दें।

   नगर स्थापना दिवस प्रत्येक शहरवासी के लिए बीकानेर के विकास में योगदान के संकल्प का दिन है। बीकानेर वासियों को स्थापना दिवस की बधाई व हार्दिक शुभकामनाएं।

कुमार पाल गौतम,36, सिविल लाईन्स, बीकानेर

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