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आदर्शों के अनुरूप आचरण ही व्यक्ति को महान बनाते हैं- आचार्य श्री विजयराज म.सा.

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*श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ*
*सर्वधर्म, सर्व जाति सत्संग एवं लघु नाटक ‘जीवन एक चुनौती’ का हुआ मंचन*
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बीकानेर। आदर्श और आचरण दोनों में जब समानता होती है तो व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता है। आदर्श बड़े हों और आचरण में समानता ना हो तो  विशेष महत्व नहीं रखते। आदर्शों के अनुरूप आचरण ही व्यक्ति को महान बनाते हैं। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह सद्ज्ञान श्रावक-श्राविकाओं को दिया। आचार्य श्री सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे चातुर्मास के नित्य प्रवचन में साता वेदनीय कर्म के पन्द्रहवें और अंतिम बोल सेवा निष्ठ होने वाला जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन करता है, विषय पर यह व्याख्यान दिया।

आचार्य श्री ने फरमाया कि सेवा धर्म है, सेवा कर्तव्य है और यूं कह दिया जाए कि सेवा ही पूजा है तो कोई बड़ी बात नहीं होती। सेवा कब होती है! जब सेवी के प्रति बड़े आदर भाव होते हैं। प्रभु कहते हैं सेवा करता जीव सेवा की 42 वीं  प्रकृति  में सबसे बड़ी  तीर्थंकर नाम गति को प्राप्त करता है।

*हम साधकों के कर्तव्य क्या हैं…?*
आचार्य श्री ने बताया कि साधक का पहला कर्तव्य सेवा होना चाहिए, सेवा करते समय मिले तो स्वाध्याय करना चाहिए, और यदि समय ना मिले तो  मैने सेवा करते जीवन को धन्य बनाया यह भाव रखना चाहिए।

*दो बातों का रखो ध्यान*
आचार्य श्री ने कहा कि सेवा करते समय दो बातों का ध्यान रखना चाहिए, पहला क्रोध की कडक़ाई ना हो और दूसरा मान की मरोड़ ना हो, जो सेवा करते हुए कडक़ाई रखता है, वह सेवा करते हुए भी सेवा का लाभ नहीं ले पाता है। ऐसी सेवा सेवा नहीं होती, क्रोध की कडक़ाई सेवा का उच्चतम आदर्श नहीं होता। सेवा करने वाले को क्रोध नहीं आना चाहिए। अगर क्रोध करते हुए सेवा की जाती है तो वह सच्ची सेवा नहीं रहती। जो क्षमाशील होता है वही सच्ची सेवा कर सकता है और पुण्य का उपार्जन करता है।

मान की मरोड़ का अर्थ यह कि सेवा करते हुए सामने वाले से अपेक्षा करना कि जैसा मैं चाहता हूं, वैसा काम हो या मन मुताबिक ना हो तो गुस्से का प्रदर्शन करना, ऐसी सेवा का भाव लेकर जो काम करता है, वह सेवक नहीं सौदेबाज होता है। सेवा साधना है, सौदा नहीं, सेवा साधना तभी बन सकती है जब नाम का लोभ ना हो और मन का मरोड़ ना हो।

*आचार्य श्री नानेश का पुण्य स्मरण किया*
महाराज साहब ने बताया कि सेवा के संदर्भ में आचार्य श्री नानेश कहा करते थे कि मुझे रुग्ण की सेवा से सुख मिलता है, आनन्द की प्राप्ति होती है। महाराज साहब ने अजमेर का स्वयं के साथ घटित एक प्रसंग सुनाया, जब उन्हें तेज बुखार हुआ। डॉ. ने 103 डिग्री बुखार बताया, डॉ. साहब आए थे तो उनसे कहा कि आप भी चैक करवा लो, पहले तो गुरुदेव ने ना कहा, लेकिन बाद में जब जांच की तो पता चला उनको भी तेज बुखार था। पूछने पर कहा कि मुनि विजयराज को बुखार है तो सोचा थोड़ी देखभाल करुं, हालांकि सुबह से उन्हें लग जरूर रहा था, लेकिन वो इसकी परवाह नहीं करते थे। आचार्य श्री नानेश ने पूज्य गणेशाचार्य की बहुत सेवा की, लेकिन फिर भी कहा करते थे कि मैं उनकी  इतनी सेवा नहीं कर पाया।

महाराज साहब ने बताया कि पूज्य गुरुदेव को लगता कि वह उतनी सेवा नहीं कर पाए जितनी सेवा करनी चाहिए। महाराज साहब ने कहा कि सेवा से हम स्व का भी कल्याण करते हैं और पर का भी, इसलिए कभी सेवा का अवसर मिले तो चूकना मत। सेवा करते काया घिसे तो इसे घिसा ना समझना, काया तो राग की ढ़ेरी है। महाराज साहब ने भजन ‘कौन सुनेगा आज यहां पर पीर को, भूल चुका है आज मनुष्य श्रीराम-कृष्ण महावीर को,  कभी जटायु की सेवा में, राम सेवी बन जाते थे, घायल पक्षी के लिए गोदी में आसूं टपकाते थे, कभी सुदामा के चावल खा, नटवर हर्षित होते थे, दीन-हीन ब्राह्मण के पैर नीर से धोते थे। कौन सुनेगा आज यहां…..।’

*सर्वधर्म , सर्व जाति सत्संग एवं लघु नाटक जीवन एक चुनौती ’ का हुआ मंचन*
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि रविवार को सेठ धनराज जी ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. के सानिध्य आत्महत्या ना करने और हालात से लडऩे की सीख देते लघु नाटक *जीवन एक चुनौती* का मंचन किया गया । संयोजक बच्छराज लूणावत, संजय सांड ,गौतम तातेड़ के नेतृत्व में किये गए इस नाटक में डिप्रेशन के शिकार अक्षत, परिवार पर आए संकट के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानने वाली वैशाली और लाड-प्यार से पालकर बड़े किए पुत्र का व्यस्क होने पर मां को भूल अपनी पत्नी का ख्याल रखने वाले पुत्र के तिरस्कार पूर्ण रवैये से खिन्न मां की जीवन व्यथा को बताया गया।

वंशिका बरडिय़ा के लिखे नाटक के अंत में सभी का गुरुदेव के समक्ष जाने और उन्हें आत्महत्या ना करने के लिए प्रेरित करने के प्रसंग ने सभी को प्रेरित किया । अंत में नाटक में भाग लेने वाले सभी कलाकारों का बीकानेर श्रीसंघ की ओर से सम्मान किया गया। नाटक में के सफलता में निम्न कलाकारों की भूमिका रही : प्रेम सोनावत, गौरव दस्साणी विभोर सेठिया, मोनीश श्रीश्रीमाल, टीना झाबक, सुमित गुलगुलिया, प्रिया झाबक,पूजा दस्साणी, प्रेम जी बांठिया, जयश्री जी बांठिया, ललिता जी सेठिया, रोहित सोनावत, स्नेहा सोनावत, मुकुल जी दस्साणी, वंशिका बरड़िया, बच्छराज जी लुणावत । नाटिका करने वाली टीम को स्थानीय संघ व बाहर से पधारे श्रावको ने मुक्त कंठ से सराहा व प्रोत्साहन राशि प्रदान की ।

दोपहर में आचार्य प्रवर के सानिध्य में सर्वधर्म , सर्व जाति सत्संग का आयोजन किया गया। इसमें दिल्ली से वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक  अशोक वानखेड़े, पूर्व आइपीएस एवं राज्य मंत्री मदनलाल मेघवाल, पूर्व आर पी एस तुलसीदास जी पुरोहित, श्री कृष्ण माहेश्वरी मंडल के अध्यक्ष श्री नारायण जी बिहाणी, शिवपुरी, मध्यप्रदेश से समाजसेवी श्रीमती मंजुला जैन, नोखा विधायक बिहारीलाल बिश्नोई, भगवताचार्य प्रभु प्रेमी, डॉ. नीलम गोयल, पूर्व महापौर एवं न्यास अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद, एडवोकेट बजरंग छींपा, भाजपा युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष वेद व्यास ने अपने विचार रखे व आत्महत्या नहीं करने का और अन्य किसी को भी आत्महत्या नहीं करने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया ।

वक्ताओं ने आत्महत्या को आज की सबसे बड़ी समस्या बताते हुए इसे रोकने के लिए आचार्य श्री के प्रयासों को आगे बढ़ाने की बात कही । आचार्य प्रवर ने कहा कि किसी भी जीव की हत्या और आत्महत्या मानवता पर कलंक है, इससे निजात पाने के लिए यह अभियान शुरू किया गया है । कार्यक्रम का संचालन संजय सांड ने किया, स्वागत वंशिका बरड़िया ने किया, परिचय मोहन जी झाबक ने दिया । कार्यक्रम के अंत में संघ की ओर से अतिथियों का सम्मान किया गया।  
*आधार स्तंभ*
प्रेमप्रकाश बांठिया के संघ के आधार स्तम्भ बनने पर उनका बहुमान किया गया।

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