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हिन्दी मातृभाषा ही नहीं बल्कि संस्कृति की भी प्रतीक है: शिवराज छंगाणी

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बेसिक पी.जी. कॉलेज में हिन्दी दिवस समारोह पर विशिष्ट अतिथि के रूप में दुर्गेश बिस्सा एवं रामजी व्यास भी रहे उपस्थित

बीकानेर । ‘‘हिन्दी पखवाड़ा’’ कार्यक्रम के अन्तर्गत बेसिक पी.जी. महाविद्यालय में ‘‘हिन्दी दिवस समारोह’’ का आयोजन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि हिन्दी एवं राजस्थानी साहित्यकार शिवराज छंगाणी, अध्यक्ष राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर, विशिष्ट अतिथि दुर्गेश बिस्सा, राजस्थान प्रशासनिक अधिकारी एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष रामजी व्यास ने की।

माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना के साथ समारोह का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम के प्रारम्भ में महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. सुरेश पुरोहित ने पधारे हुए अतिथियों का स्वागत उद्बोधन प्रस्तुत करते हुए विद्यार्थियों को हिन्दी दिवस की महत्ता के बारे में बताया। वर्तमान में हिंदी की वैश्विक रूप से मजबूत होती स्थिति पर खुशी दर्शाते हुए डॉ. पुरोहित ने बताया कि आज हिंदी बाजार की आवश्यकता बन चुकी है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि प्रशासनिक सेवा अधिकारी दुर्गेश बिस्सा ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए ताकि उच्च शिक्षा अपनी भाषा में मिलने में आसानी हो सके। उनका कहना था कि हिंदी के बिना हिंदुस्तान में आगे बढना संभव नहीं है लेकिन हिंदी ज्ञान परस्पर सहभागिता से सभंव किया जाना चाहिए। श्री बिस्सा ने बताया कि भारत की सभी भाषाएं समृद्ध हैं। उनका अपना साहित्य, शब्दावली तथा अभिव्यक्तियां एवं मुहावरे हैं। भले ही हमारी भाषाएं अलग-अलग हों, इन्हें बोलने वाले लोग देश के अलग-अलग भागों में रहते हों, पर ये सभी भाषाएँ भावनात्मक रूप से हमारी साझी धरोहर हैं। इससे हमारी राष्ट्रीय एकता और मजबूत होगी तथा भारत की विविध संस्कृति को बेहतर रूप में अभिव्यक्त किया जा सकेगा। हिंदी को केवल बोलचाल के स्तर पर ही संपर्क भाषा नहीं बनना है, बल्कि कला और साहित्य के स्तर पर भी यह दायित्व निभाना है।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शिवराज छंगाणी ने कहा कि हिन्दी भाषा अनंत काल से मानवीय अस्मिता का महत्वपूर्ण अंग रही है और यह अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम भी है। हिंदी दिवस की उपयोगिता पर शिवराज छंगाणी का कहना था कि आज का दिन इस बात का मूल्यांकन करने का है कि देश-विदेश में हिंदी भाषा, सहित्य ने कौन सी मंजिलें तय की हैं और आज का दिन यह विमर्श करने का अवसर प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूँ कि प्रादेशिक भाषाएं रानी बनकर प्रान्तों में विराजमान रहें एवं इनके बीच हिंदी मध्यमणि बन कर विराजती रहे।

छंगाणी जी का कहना था कि सरकार और जनता के बीच वही भाषा प्रभावी एवं लोकप्रिय हो सकती है जो आसानी से सभी को समझ में आ जाए और बेझिझक जिसका प्रयोग देश के सभी वर्गों द्वारा आसानी से किया जा सके। हिंदी मातृभाषा ही नहीं बल्कि संस्कृति की भी प्रतीक है। हमारा लोकतंत्र तभी फल-फूल सकता है जब हम जन-जन तक उनकी ही भाषा में उनके हित की बात पहुंचाएं क्योंकि हमारे लोकतन्त्र का मूलमंत्र ‘सर्वजन हिताय’ है।
कार्यक्रम के अन्त में महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष रामजी व्यास ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी व उससे संबंधित संसाधनों के विकास, प्रयोग तथा प्रचार-प्रसार की दिशा में विभिन्न स्तरों पर प्रयास निरंतर जारी है। हिंदी और अन्य अभी भारतीय भाषाओं के संवर्धन के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। व्यास ने बताया कि विगत कुछ समय से हिंदी के अनेक ई-टूल्स विकसित किए गए हैं, जिनसे कम्प्यूटर और प्रौद्योगिकी में हिंदी का प्रयोग सरल और व्यापक हुआ है, अब यह हम सभी लोगों का उत्तरदायित्व है कि हम इन सुविधाओं के प्रति जागरूक बनें और अपने सरकारी और गैर-सरकारी कामकाज में हिंदी का प्रयोग करें। आज जरूरत इस बात की है कि व्यावहारिक व प्रचलित सरल हिंदी का सरकारी कामकाज में ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाए।

कार्यक्रम के दौरान ‘‘हिन्दी पखवाड़ा’’ के अन्तर्गत निबन्ध प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी छात्र-छात्राओं को अतिथियों की ओर से प्रमाण-पत्र एवं प्रतीक चिह्न भेंट करते हुए पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम के अन्त में महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष एवं महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. सुरेश पुरोहित द्वारा अतिथियों को शॉल एवं प्रतीक चिह्न भेंट कर सम्मानित करते हुए आभार प्रकट किया गया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में महाविद्यालय स्टाफ सदस्य डॉ. मुकेश ओझा, डॉ. रमेश पुरोहित, डॉ. रोशनी शर्मा, वासुदेव पंवार, डॉ. नमामिशंकर आचार्य, माधुरी पुरोहित, प्रभा बिस्सा, सौरभ महात्मा, संध्या व्यास, प्रियंका देवड़ा, गणेश दास व्यास, जयप्रकाश, अर्चना व्यास, हिमांशु, शिवशंकर उपाध्याय, महेन्द्र आचार्य आदि का उल्लेखनीय योगदान रहा।

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