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इस वर्कशाप के माध्यम से हो सकेगी विद्यार्थियों की पढ़ाई के नुकसान की भरपाई

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– डूंगर कॉलेज में इंटरनेशनल डिस्प्लनरी बेसिक साइंस शिक्षण वर्कशाप का शुभारम्भ

बीकानेर । राजकीय डूँगर महाविद्यालय में सन् 2005 में स्थापित बीकानेर इंटर डिस्प्लनर रिसर्च कन्जोरटियम (बीआईआरसी) द्वारा आज से दो सप्ताह तक चलने वाली इंटर डिस्प्लनरी बेसिक साइंस वर्कशाप की शुरूआत आज डूंगर महाविद्यालय प्राचार्य डाॅ. जी.पी.सिह, सहायक निदेशक कालेज शिक्षा डाॅ. राकेश हर्ष, उपप्राचार्य डाॅ. ए.के. यादव एवं बीआईआरसी फांउडर डा. नरेन्द्र भोजक द्वारा डूँगर महाविद्यालय में आनलाइन माध्यम से की गई।
स्वागत उदबोधन में प्राचार्य डाॅ. जी.पी. सिह ने बताया कि कोरोना काल में विशेषकर स्नातकोतर पूर्वाद्ध के विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान हुआ है उसकी कुछ हद तक भरपाई इस वर्कशाप के माध्यम से हो सकेगी। साथ ही यहां एक नवाचार भी हो रहा है जिसके तहत एम.एस.सी के विद्यार्थी अपने विषय के अतिरिक्त अन्य विषय विशेषज्ञ का मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे जिससे मूल विषय पर मजबूत पकड़ होने के साथ-साथ प्रायोगिक कौशल विकास भी संभव हो सकेगा। मुख्य अतिथि के रूप में डाॅ. राकेश हर्ष ने ने कहा कि इन्टर डिस्प्लनरी शिक्षण की शुरूआत कर डूंगर महाविद्यालय ने शिक्षा में नवाचार का एक और मील का पत्थर स्थापित किया हैं। उपाचार्य डाॅ. ए.के. यादव ने अभिभाषण प्रस्तुत करते हुए जियोलोजी विषय की महत्ता इन्टर डिस्प्लनरी शोध में बताई। उन्होंने विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए बेसिक जियोलोजी सिद्धान्तों का रसायनशास्त्र, सूक्ष्म जीव विज्ञान, प्राणिशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र आदि में उपयोग समझाते हुए नैनो जियोलॉजी, बायो जियोलॉजी आदि के उपयोग के बारे में चर्चा की।
फाउंडर डाॅ. नरेन्द्र भोजक ने बी.आई.आर.सी की स्थापना एवं कार्य प्रणाली के बारे चर्चा करते हुए कहा कि डाॅ. रवीन्द्र मंगल, डाॅ. जी.पी. सिंह व स्व. डाॅ. सुमन शर्मा के प्रयासों से 2005 से स्थापित बीज आज वटवृक्ष के रूप में सामने है। यह कार्य न केवल नैक जैसी संस्था द्वारा सराहा गया हैं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर शोध नवाचार के रूप में पहचान बना चुका है। डूंगर महाविद्यालय में स्थापित बीआईआरसी द्वारा वेस्ट पदार्थो द्वारा उपयोगी पदार्थ बनाने के नवाचार शुरू किये गये हैं। इसमें लेबोरेट्री वेस्ट वाटर का उपयोग, प्लास्टिक के विभिन्न वेस्ट उत्पादों विशेषकर प्लास्टिक की खाली बोतलें, डिब्बे आदि द्वारा उपयोगी पदार्थ बनाना, ग्रीन प्लास्टिक निर्माण आदि शामिल है। उन्होंने कहा कि आज सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग ही लिया जा रहा है क्योंकि इसकी रीसाइक्लिंग संभव नहीं है। यह नैनो कणो में शीघ्रता से परिवर्तित होकर अधिक नुकसानदायक है। हमें इसके उत्पादन को रोकने के साथ-साथ इसके उपयोग के लिए भी शोध करना होगा एवं बीआईआरसी का वेस्ट से वेल्थ रिसर्च प्रोग्राम इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
संयोजन सचिव डाॅ. एस.के. वर्मा ने दो सप्ताह के संपूर्ण कार्यक्रम का ब्यौरा देते हुए बताया कि प्रतिदिन दो सत्रों मे व्याख्यान होंगे जिन्हे यूट्यूब पर लाइव देखा जा सकता है। व्याख्यान भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, प्राणि शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, भूगर्भ शास्त्र, गणित विषय के आचार्यो द्वारा दिये जा रहे हैं। डा. एम डी शर्मा ने दूसरे सत्र का स्वागत अभिभाषण प्रस्तुत करते हुए बीआईआरसी के नैक व इन्टर डिस्प्लनरी शोध में योगदान की महत्ता बताई।
दूसरे सत्र में डाॅ. जी.पी. सिंह ने रसायनशास्त्र व जीवविज्ञान विषय में सेमीकंडक्टर विषय को बायोफोटोनिक्स, चिप, मोबाईल आदि से संबंधित करते हुए टी.वी., पेनटेब, आईसी आदि के निर्माण को समझाया। डाॅ. सिंह ने बताया कि सेमीकंडक्टर निर्माण में कणों के आकार में कमी आने का प्रभाव दैनिक जीवन व व्यवहार में काम आने वाली वस्तुओं पर पड़ा। जैसे पुराने रेडियो टेलीविजन आदि का आकार बड़ा होता था एवं चैनल कम आते थे, किन्तु नये प्रकार के पी.एन. जंक्शन आदि द्वारा बनाए गए सेमीकंडक्टर के वृहद् उपयोग से ना केवल रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर आदि का आकार छोटा हुआ वरन् चैनल की संख्या व स्पीड में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। समन्वयक डाॅ. एच.एस. भंडारी ने धन्यवाद प्रस्तुत करते हुए बताया कि आज की इस वर्कशाप में 400 से अधिक विद्यार्थी जुडे हैं एवं यह कार्यक्रम अगले 15 दिनों तक जारी रहेगा।
कार्यक्रम में डा. राजेन्द्र पुरोहित, डा. एम डी शर्मा, ए.के. नागर, डा. देवेश खंडेलवाल, डाॅ. सुषमा जैन, डाॅ. मृदुला भटनागर, डाॅ. सुरूचि गुप्ता, डाॅ. संगीता शर्मा, डा. उमा राठौड, डा. एस. एन जाटोलिया, डा. राजा राम, डा. एस के. यादव व सहित अनेक संकाय सदस्यों ने इस कार्यक्रम में सक्रिय सहयोग दिया।

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