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सभी सूक्ष्मजीव रोगकारक नहीं होते हैं -कुलपति प्रो आर.पी. सिंह

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कृषि में सूक्ष्मजीवों की भूमिका पर राष्ट्रीय वेबिनार

बीकानेर। विश्व बैंक-आईसीएआर द्वारा वित्त पोषित राष्ट्रीय उच्च शिक्षा परियोजना, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के तत्वावधान में कृषि में सूक्ष्मजीवों की भूमिका पर राष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। वेबीनार के अध्यक्ष कुलपति प्रो आर.पी. सिंह ने बताया की वेबीनार के मुख्य अतिथि डॉ आर. सी. अग्रवाल, राष्ट्रीय निदेशक, एनएएचईपी और डीडीजी (एग्रील एड) आईसीएआर के अलावा देश भर से विख्यात वैज्ञानिक विशेषज्ञ संस्था प्रधान जैसे की डॉ एस के शर्मा, रायपुर, छत्तीसगढ़, डॉ जे. सी. तारफदार-काजरी, जोधपुर,  डॉ. लिवलीन शुक्ला, आईएआरआई, नई दिल्ली, डॉ. टी. वी. राव, निदेशक अनुसंधान हैदराबाद के अलावा अन्य प्रतिभागी कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के वैज्ञानिक, विश्वविद्यालय और सरकारी अधिकारी, कृषि और संबद्ध धाराओं के छात्र,रिसर्च स्कॉलर्स और रिसर्च फेलो,कृषि उद्यमी और नवोन्मेषी किसान वेबीनार मेंं उपस्थित रहे। कुलपति आरपी सिंह ने भारत के माइक्रोबियल धन और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उनकी भूमिका पर संबोधित करते हुए कहा की सूक्ष्मजीव जो कि आकार में इतने छोटे होते है कि इन्हें बिना सूक्ष्मदर्शी के मानव नेत्रों से देखना संभव नहीं है परन्तु हमारे दैनिक जीवन में इनका महत्व इस सीमा तक है कि इनकी अनुपस्थिति में ब्रह्माण्ड में जीवन की कल्पना करना बेमानी है। सूक्ष्मजीव पृथ्वी पर उपस्थित जीवन के अत्यंत अहम् घटक हैं। एक आम धारणा के विपरीत सभी सूक्ष्मजीव रोगकारक नहीं होते हैं। अपितु बहुत से सूक्ष्मजीव मनुष्यों के लिए अत्यधिक लाभप्रद होते हैं। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में सूक्ष्मजीवों का योगदान अतुलनीय हैं। जीवाणु लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया जो की दूध में वृद्धि करते है जिससे वह दही में रूपांतरित हो जाता है। सूक्ष्मजीवों का प्रयोग औद्योगिक उत्पाद जैसे कि लैक्टिक एसिड , एसिटिक एसिड, तथा अल्कोहल उत्पन्न करने में किया जाता है, जिनका प्रयोग उद्योगों में अलग अलग संसाधनों में किया जाता हैं। प्रतिजैविकों जैसे पेनिसिलिन का उत्पादन लाभप्रद सूक्ष्मजीवों द्वारा किया जाता है। पिछले कई वर्षों से सूक्ष्मजीवों का प्रयोग वाहितमल, दूषितजल के उपचार के लिए सक्रियीत आपंक प्रक्रिया द्वारा किया जाता हैं। इससे प्रकृति में जल के पुनः चक्रण में सहायता मिलती है। ग्रामीण क्षेत्रों में सूक्ष्मजीवों द्वारा व्युत्पन्न बायोगैस का उपयोग ऊर्जा के रूप में किया जाता है। हाल ही में, हमारे देश में जैव उर्वरकों का एक बड़ी संख्या में बाजार उपलब्ध है। किसान अपने खेतों में लगातार इनका प्रयोग कर रहे हैं। इससे मृदा पोषक की भरपाई तथा रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता भी कम हो रही है। सूक्ष्मजीवों का प्रयोग जैव नियंत्रण विधि द्वारा हानिप्रद पीडकों को मारने के लिए भी किया जाता है।जैवनियंत्रण कारकों के उपयोग से उन विषैले पीडक नाशियों रसायनों के प्रयोग में भारी कमी आई है जिनका उपयोग पीडक नियंत्रण में किया जाता है। 

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