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सुनो, सरकार ‘ऊंट महोत्सव’ नहीं ‘चारा महोत्सव’ की दरकार

बीकानेर । इन दिनों भीषण गर्मी से इंसान ही नहीं बल्कि पशु पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं। पानी की त्राहि-त्राहि है। इसके साथ दूसरी बड़ी समस्या चारे की आ रही है। इस साल ऊंटों के लिए चारे की भारी कमी है। सूखा चारा भी नहीं मिल रहा।जोधपुर जिले के घंटियाली ब्लॉक में, दासूडी गांव (कोलायत) से लगता हुआ है।इस पूरे इलाके में जो बीकानेर जोधपुर दोनों में पड़ते हैं, लगभग एक जैसी ही मुश्किलें उंटपालकों को झेलनी पड़ रही हैं। सारनपुरा गांव के सावण खां ने बताया कि चारा इस साल बहुत ज्यादा महंगा है। यदि सरकार चारा डिपो नहीं खोलेगी तो ऊंट की जान को खतरा है भूखे मरेंगे। सही मायने में आज ‘ऊंट महोत्सव’ नहीं ‘चारा महोत्सव’ की जरूरत पड़ रही है। वरना ऊंट महोत्सव पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि ऊंट महोत्सवों से ऊंट को क्या मिला? सरकारें ऊंट को राज्य पशु घोषित कर उसके संरक्षण के गंभीर नजर नहीं आ रही है। बजट मिलता है। योजनाएं बनती हैं, लेकिन धरातल पर कुछ नजर नहीं आता। योजनाओं को धरातल पर लाते तो ऊंटों के सामने आज चारे का संकट नहीं आता। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सालाना बजट 2022-23 में राज्य में ‘ऊंट संरक्षण व विकास नीति लागू’ करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने कहा कि राज्य पशु ऊंट के पालन, संरक्षण तथा समग्र विकास के लिए इस नीति के तहत अगले साल 10 करोड़ रुपये का प्रावधान किया जाएगा। मुख्यमंत्री जी, अब ये करोड़ों रुपये देने में कहीं देर न हो जाए। ऊंट को बचाना है तो पहले चारे का प्रावधान करों। बता दें कि देश के लगभग 85 प्रतिशत ऊंट राजस्थान में पाए जाते हैं। इसके बाद गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश का नंबर आता है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार राजस्थान में 2012 में ऊंटों की संख्या 3,25,713 थी जो 2019 में 1,12,974 घटकर 2,12,739 रह गई। राज्य में ऊंट संरक्षण की मांग लंबे समय से उठ रही है, लेकिन मांग पूरी कब होगी? ऊंट को बचाना है तो जिम्मेदारों को ऊंट पालकों की तरह चिंतित होना पड़ेगा। उसकी पीड़ा के लेवल को समझना होगा।

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