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रेसा का प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति नियमों में प्रस्तावित संशोधन का विरोध

बीकानेर। राजस्थान शिक्षा सेवा संघ (रेसा) ने प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति नियमों में प्रस्तावित संशोधन का विरोध का विरोध करते हुए मुख्यमंत्री को जिला कलक्टर के माध्यम से एवं शिक्षा राज्य मंत्री को निदेशक, माध्यमिक शिक्षा के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित किया है। संगठन के जिला महामंत्री कमल कान्त स्वामी एवं जिला अध्यक्ष संदीप जैन ने बताया कि माध्यमिक शिक्षा में प्रधानाचार्य व समकक्ष पदों पर पदोन्नति से विद्यमान प्रावधानों में व्याख्याता एवं प्रधानाध्यापकों की 67ः33 के अनुपात को एक वर्ग विशेष के दवाब में बदलने का प्रयास किया जा रहा हैं। सरकार विभिन्न समितियों एव सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को दरकिनार कर कोविड-19 महामारी के इस विकट समय में भारी वित्तीय भार प्रदेश की जनता पर डालने जा रही है। ज्ञात रहे वर्ष 1990 से पूर्व व्याख्याता (पूर्व पदनाम वरिष्ठ अध्यापक) के पद से प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति की जाती थी। राज्य सरकार की अधिसूचना दिनांक 06.09.1990 द्वारा व्याख्याता पदों को अधीनस्थ सेवा से हटाकर शिक्षा राज्य सेवा में सम्मिलित किया गया तथा इनकी पदोन्नति प्रधानाध्यापक पद के बजाय प्रधानाध्यापक के साथ 50ः50 अनुपात में वरिष्ठ उप जिला शिक्षा अधिकारी पद पर किये जाने का प्रावधान किया गया। उक्त प्रावधान व्याख्याता संगठन की मांग पर उनसे राज्य सरकार द्वारा किए गए समझौते के अनुरूप किया गया। तत्समय भी व्याख्याता संख्यात्मक रूप से अधिक थे। अर्थात प्रधानाध्यापक के अनुभव को महत्व दिया गया। व्याख्याता पद पर सीधी भर्ती से नियुक्ति से पूर्व शिक्षण अनुभव आवश्यक नहीं है, जबकि प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्ति के लिये कम से कम 5 वर्ष का अध्यापन अनुभव अनिवार्य है अर्थात व्याख्याता पद पर नियुक्त व्यक्ति विद्यमान नियमों के अनुसार मात्र 3 वर्ष की सेवा पूर्ण एवं मात्र शिक्षण अनुभव के आधार पर प्रशासनिक प्रकृति के प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति हेतु पात्र हो जाता है, जबकि प्रधानाध्यापक पद से प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति हेतु उसे कम से कम 5 वर्ष का शिक्षण अनुभव और 3 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव प्राप्त करना होता है। एक संगठन के दबाव में व्याख्याता संगठन के साथ पूर्व में हुवे समझौते के इतर तथा प्रधानाध्यापक के प्रशासनिक अनुभव की उपेक्षा कर वर्ष 2015 में पदोन्नति अनुपात को 50ः50 से व्याख्याताओं के पक्ष में 67ः33 कर दिया गया। व्याख्याता पद 7 वें वेतनमान नियमों के अनुसार एल-12 स्तर का पद है, जबकि प्रधानाध्यापक पद एल- 14 स्तर का पद हैै। व्याख्याता पदों से सीधे प्रधानाचार्य पदों पर पदोन्नति से न केवल प्रशासकीय अनुभव से वंचित अधिकारियों का चयन होता है, अपितु राज्य सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय भार भी कारित होता है। ज्ञात जानकारी के अनुसार राज्य सरकार द्वारा पुनः इस अनुपात को व्याख्याताओं के पक्ष में इन पदों के स्वीकृत कैडर स्ट्रेंथ के अनुसार किया जाना प्रस्तावित किया गया है। संगठन ने चेतावनी दी है कि विभागीय हितों के विरूद्ध और केवल प्रधानाध्यापकों की पदोन्नति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किये जाने के उद्देश्य से, मात्र हठधर्मिता से संख्या के आधार पर किसी संगठन की मांग पर प्रधानाचार्य पदों पर पदोन्नति के अनुपात को संशोधित किया गया तो संगठन एक बार पुनः कोर्ट में चुनौती देगा।

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