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‘पुरातात्त्विक एवं अभिलेखीय संपदा: युगयुगीन’ विषयक राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित

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बीकानेर । आर्कियोलॉजी एंड एपिग्राफी सोसाइटी एवं गुजरात विद्यापीठ अहमदाबाद द्वारा संयुक्त तत्वावधान में 15 सितंबर को राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन गुजरात विद्यापीठ (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) परिसर, अहमदाबाद में किया गया। इस राष्ट्रीय सेमिनार में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश तथा उत्तराखंड के प्रतिभागियों ने भाग लिया। सेमिनार का विषय “पुरातात्त्विक एवं अभिलेखीय संपदा: युगयुगीन” था। सेमिनार के मुख्य वक्ता के रूप में गुजरात पुरातत्व विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं भारत के ख्यातनाम पुरातत्त्ववेत्ता वाई. एस. रावत थे, जिन्होंने “पुरातात्त्विक साक्ष्यों में वड़नगर का 2500 वर्षों का अखंडित इतिहास एवं बौद्ध अवशेष” विषय पर अपना बीज वक्तव्य दिया।

सेमिनार में विशिष्ट अतिथि के रूप में आर्कियोलॉजी एंड एपिग्राफी सोसाइटी के अध्यक्ष प्रो. बी.एल. भादानी ने पुरातत्त्व विषय का अन्य विषयों के साथ गहरा संबंध बताया साथ ही गुजरात एवं राजस्थान की पुरातत्व सम्पदा पर संयुक्त रूप से अध्ययन करने पर भी जोर दिया। सेमिनार के उद्घाटन समारोह में गुजरात विद्यापीठ के कुलपति प्रो. भरत जोशी ने इतिहास को संस्कृति का संवाहक बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी स्थान का पुरातात्त्विक अध्ययन उस स्थान के प्रति व्यक्ति की दृष्टि को बदल देता है।

आर्कियोलॉजी एंड एपिग्राफी सोसाइटी के सचिव डॉ. राजेंद्र कुमार ने सोसाइटी का परिचय एवं कार्य क्षेत्र पर अपनी बात रखी तथा भविष्य में दोनों संस्थाओं के द्वारा संयुक्त रूप से शोध गतिविधियाँ व शैक्षणिक आयोजनों के सम्पादित किए जाने की योजना रखी है। उद्घाटन समारोह में सोसाइटी के सदस्य एवं राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, बीकानेर के वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी डॉ. नितिन गोयल ने अपने उद्बोधन में मुनि जिन विजय सूरि द्वारा गुजरात विद्यापीठ एवं राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, दोनों संस्थाओं की स्थापना में दिए गए योगदान को याद कर दोनों के मध्य गहरे संबंध की महता को उजागर किया। कार्यक्रम में सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो. कन्हैयालाल नायक ने सेमीनार में आमंत्रित सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया।

इस सेमिनार में गुजरात एवं भारत के अन्य राज्यों से 90 से अधिक प्रतिभागियों ने रजिस्ट्रेशन करवाया तथा गुजरात, राजस्थान एवं उत्तराखंड के किलों, जलाशयों, ऐतिहासिक स्मारकों की स्थापत्य कला, शिलालेखों एवं पुरास्थलों से जुड़ी नवीन खोजों पर आधारित 60 से अधिक शोध-पत्रों का वाचन किया गया। सेमिनार के समन्वयक डॉ. विक्रम सिंह अमरावत ने बताया कि पुरातात्त्विक अवशेष इतिहास के एक महत्वपूर्ण आयाम है, जिनके अध्ययन से इतिहास को नए दृष्टिकोण से लिखा जा सकता है, डॉ. अमरावत ने कार्यक्रम का संचालन भी किया। सेमिनार का प्रसारण ऑनलाइन माध्यम से भी किया गया।

सेमिनार के समापन समारोह में विद्यापीठ के रजिस्ट्रार प्रो. निखिल भट्ट एवं इतिहासविद सुभाष ब्रह्मभट्ट ने गुजरात के इतिहास में द्वारका नगरी एवं प्राचीन नगरों के पुरातात्विक संबंधों पर प्रकाश डाला। समापन कार्यक्रम का संचालन डॉ. मोतीभाई देवु ने किया तथा सभी अतिथियों का आभार इतिहास विभाग की सहायक आचार्य जेमाबीबी कादरी ने किया।

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