डायबिटीज में लाभकारी है ऊंटनी का दूध, फायदेमंद है उष्ट्र पालन कारोबार
एनआरसीसी द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर पशु शिविर व कृषक-वैज्ञानिक संवाद का आयोजन
बीकानेर । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने जन-जातीय उपयोजना के अन्तर्गत आबू रोड़ सिरोही, के ग्राम टूका देलदर में पशुपालन विभाग, आबू रोड़ (सिरोही) के संयुक्त तत्वावधान में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भारत सरकार द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में पर्याप्त संसाधनों, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सुविधाओं की सुनिश्चितता हेतु चलाई गई टीएसपी उपयोजना के तहत आयोजित केन्द्र की इस गतिविधि में 250 से अधिक जनजातीय किसान परिवारों ने सक्रिय सहभागिता निभाई।
पशु स्वास्थ्य शिविर में लाए गए विभिन्न पशुओं यथा- 232 गाय/बैल, 397 भैंस सहित कुल 629 पशुओं की स्वास्थ्य जांच में गर्भ एवं प्रजनन, एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित पशुओं की जांच एवं इलाज किया गया एवं पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाई गई तथा केन्द्र द्वारा निर्मित 200 किलोग्राम मिनरल मिक्सर, 250 किलोग्राम लवण की ईंटें एवं 60 क्विंटल पौष्टिक ‘करभ पशु आहार‘ पशु पालकों को वितरित किया गया। विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
जनजातीय पशुपालकों से बातचीत करते हुए केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि राजस्थान प्रदेश में पशुधन आधारित व्यवस्था के रहते भी यह देखा गया है कि जन जातीय क्षेत्रों में पशुधन संख्या अधिक होते हुए भी इनसे अपेक्षित उत्पादन प्राप्त नहीं हो रहा है, इसके पीछे उत्तम गुणवत्तायुक्त पशुधन तथा पशुधन व्यवस्था हेतु नूतन एवं उचित पशु पोषण प्रबंधन के ज्ञान का अभाव होना है। उन्होंने कहा कि सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में जन जातीय लोगों को देश की मुख्य धारा से जोड़ा जाना अब समय की मांग है। जरूरतमंद लोगों तक पशुपालन व्यवसाय सुनियोजित व सुव्यवस्थित रूप में पहुंचे तथा इसे अपनाकर पशुधन उत्पादन वृद्धि के लक्ष्य को पाना संपूर्ण देश के पशुधन विकास हेतु निहायत जरूरी है।
डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध की औषधीय गुणवत्ता पर भी बात करते हुए कहा कि यह दूध मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि में लाभप्रद पाया गया है, ऐसे में क्षेत्र के लोगों में टी.बी.एवं मधुमेह रोगियों की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए उष्ट्र पालन व्यवसाय को अपनाया जाना चाहिए ताकि जरूरतमंदों को इसका लाभ मिल सकेगा वहीं पशु पालकों की आर्थिक स्थिति में सुधार भी होगा।
केन्द्र के जन-जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के.सावल ने कहा कि इस उपयोजना के तहत जन जातीय क्षेत्रों में केन्द्र में फील्ड स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी एवं नूतन शोध संबंधी संगोष्ठियों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों आदि के माध्यम से अद्यतन व प्रमाणिक जानकारी प्रदान की जाती है ताकि इन क्षेत्रों के किसानों को जागरूक एवं समक्ष बनाया जा सकें।
नोडल अधिकारी ने बताया कि इस अवसर पर स्वच्छ दूध उत्पादन के संबंध में महिलाओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया तथा इस हेतु प्रयुक्त संसाधन के रूप में छलनी व मलमली कपड़ा उपलब्ध कराया गया।
केन्द्र की इस गतिविधि में पशुपालन विभाग सिरोही के डॉ. शैलेष प्रजापति ने पशुधन के स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में आ समस्याओं एवं चुनौतियों पर प्रकाश डाला। केन्द्र के डॉ. शान्तनु रक्षित एवं डॉ. श्याम सुंदर चौधरी ने केन्द्र की प्रसार गतिविधियों, पशुधन प्रबंधन संबंधी जरूरी पहलुओं के बारे में जानकारी दीं वहीं डॉ. काशी नाथ, प.चि.अधिकारी ने पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सावधानी बरतने की सलाह दीं। केन्द्र के मनजीत सिंह ने शिविर से जुड़ी विविध गतिविधियों में सहयोग प्रदान किया। सेवाराम, सदस्य, पशुधन विकास कमेटी, सिरोही ने पशुधन को लेकर अपनी बात रखीं तथा इस गतिविधि के आयोजन हेतु केन्द्र के प्रति आभार व्यक्त किया।