BikanerExclusiveReligious

संसार में स्नेह डोर से सब बंधे हैं- महंत क्षमाराम महाराज

0
(0)

बीकानेर। गोपेश्वर भूतेश्वर महादेव मंदिर में इन दिनों भक्ति की बहार छाई हुई है। जहां सींथल पीठाधीश्वर श्री श्री 1008 महन्त क्षमाराम महाराज के श्रीमुख से पितृपक्ष के उपलक्ष्य में संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा पाक्षिक ज्ञान यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। सोमवार को कथा के तीसरे दिन महंत ने सोनक जी के प्रश्न के साथ आगे की कथा आरंभ करते हुए अनेक मन को भावमुग्ध करने और आंखों से अश्रुधारा बहा देने वाले प्रसंग सुनाकर भक्तों को भाव विभोर किया। क्षमाराम महाराज ने कथा श्रवण  के साथ मनुष्य को जीवन में किस तरह से जीना चाहिए और किस तरह से रहना चाहिए का सद्ज्ञान भी दिया।

क्षमाराम महाराज ने कहा कि यह संसार दुखालय है। भगवान ने संसार पर बोर्ड लगा रखा है दुखालय। यहां सुख कभी नहीं मिलेगा। महंत ने कहा कि व्यक्ति की मरते वक्त कम से कम बाली जैसी वृति तो होनी ही चाहिए। जिसे भगवान श्री राम ने अंत समय में कहा कि तुम्हें जीवनदान दे देता हूं। पर बाली बोला, नहीं प्रभु आपके समक्ष मेरे प्राण निकले इससे बड़ा सौभाग्य मेरा कोई हो ही नहीं सकता। मैंने तो कोई अच्छे कर्म किए जो मुझे आपके शरणागत होने का पुण्य मिल रहा है। भगवान राम ने देखा कि बाली के मरते वक्त भी मन में अनुराग है। बाली के मन में अपने पुत्र  अंगद के प्रति मोह था। उसने अपने पुत्र को राम जी का साथ देकर अपने प्राण त्यागे।

इसी प्रकार एक अन्य प्रसंग सुनाते हुए बताया कि भागवत कथा में कुंति माता की स्तुति बहुत ऊंचा स्थान रखती है। भगवान श्रीकृष्ण उनके भतीजे थे और वह रोजाना पांडव पुत्रों को उनके बारे में बताती रहती थी। इसी कारण अर्जुन के मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग पैदा हुआ, हालांकि उन्होंने कभी उन्हें देखा नहीं था। लेकिन कुन्ति के द्वारा नित चर्चा के कारण उनमें यह अनुराग पैदा हुआ। यह सब स्नेह के कारण होता है। संसार में स्नेह ऐसी डोर है, जिससे सब बंधे हैं। यह दिखाई नहीं देती लेकिन बांधे सबको रखती है। कोई भाई कहीं रहता है, कहीं पर पिता कहीं और पुत्र कहीं रहता है। रहें कहीं पर भी, लेकिन बंधे रहते हैं ।  युधिष्ठर भी स्नेह की डोर से बंधे थे। उन्हें रह-रहकर युद्ध की विभिषिका को लेकर दुख हुआ और वह आधी रात को भागे-भागे अर्जुन के महल में पहुंचे। जहां अर्जुन शयनकक्ष में गहरी नींद में सोये थे और पास में भगवान श्रीकृष्ण नीचे बैठकर जार-जार रो रहे थे। यह देख युधिष्ठर आश्चर्यचकित होकर बोले आप क्यों रो रहे हैं। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें वृतांत बताया। इसके बाद उनके मन में भीष्म पितामाह का रह-रहकर ख्याल आ रहा था। इसे देख भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठर को लेकर भीष्म पितामाह के पास पहुंचे, जहां तीनों के बीच के शास्त्र चर्चा का वृतांत महंत ने शब्द चित्रण के माध्यम से बताया।

महंत ने कहा कि व्यक्ति को अपने मन में हर वक्त झांकते रहना चाहिए कि मेरा लगाव किसमें है। शरीर के प्रति है कि धन के प्रति, नाम के प्रति है कि प्रतिष्ठा की प्रति, जिसमें जिसके जैसी और जितनी रूची होती है, देखते रहना चाहिए। क्षमाराम जी ने बताया कि पहले ममता मिटती है, फिर कामना मिटती है। उत्पति पहले कामना की होती है फिर ममता की होती है और नाश करने में पहले ममता होती है फिर कामना होती है। महंत जी ने संसार में रहने का सबसे सरल तरीका आवश्यकता नहीं रखना बताया।

How useful was this post?

Click on a star to rate it!

Average rating 0 / 5. Vote count: 0

No votes so far! Be the first to rate this post.

As you found this post useful...

Follow us on social media!

Leave a Reply