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अन्याय से कमाया धन पाप की फसल पैदा करता है – आचार्य विजयराज

सर जावे तो जावे.. मेरा सत्य धर्म नहीं जावे -1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब

बीकानेर । पाप की जड़ क्या है…?, महापुरुष फरमाते हैं अन्याय से कमाया धन और बुराइयों से भरा यह मन, पाप की जड़ है,बुनियाद है, और मूल है। संसार में जो भी अन्याय से धन कमाते हैं वह हिंसा का, झूठ का और लालच का पाप कमाते हैं। अन्याय से कमाया धन पाप की फसल पैदा करता है। वहीं न्याय से कमाया धन पाप का क्षय करने वाला बन जाता है। यह उद्गार श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए। सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में आचार्य श्री के 50 वें स्वर्णिम दीक्षा वर्ष पर चल रहे चातुर्मास में महाराज साहब ने कहा कि श्रावक जो पाप करते हैं वह मजबूरी में करते हैं। गृहस्थी के लिए, संसार में जीवन-यापन के लिए उन्हें यह कृत्य करना पड़ता है। लेकिन उन्हें पाप को मजबूत नहीं करना चाहिए। गृहस्थ को चाहिए कि वे विवेक रखे की वो जो भी अर्थोपार्जन के लिए करे उसमें न्याय नीति जुड़ी होनी चाहिए और जो भी कार्य करें उत्साह के साथ करना चाहिए।

महाराज साहब ने कहा कि जैसे एक वृक्ष अपनी जड़ों की वजह से हरा-भरा रहता है, ठीक वैसे ही पाप की जड़ हरी हो तो वह वृक्ष की तरह हरा भरा रहता है। इसलिए पाप को बढ़ाओ मत, उसके क्षय करने का प्रयास करो और इसके लिए नीति से धन कमाना चाहिए, रीति से खर्च करना चाहिए, और प्रीति से दान करना चाहिए। जो व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है, वह सब दोषों से मुक्त हो जाता है। महाराज साहब ने कहा कि दुख मुक्त सब होना चाहते हैं लेकिन दोष मुक्त नहीं होना चाहते हैं। हम उम्र में बड़े जरूर हो गए हैं लेकिन पाप मुक्त कैसे हों, यह अब तक समझ नहीं आया है। आचार्य श्री ने कहा कि अन्याय, अनीति और बेइमानी करने वाले दुख मुक्त नहीं हो सकते, फिर आप चाहे जितना जतन कर लो, सब व्यर्थ है। धर्म क्रिया आपकी कोई मायने नहीं रखती अगर हम पाप में लिप्त हैं।

आचार्य श्री विजयराज जी ने कहा कि अगर आप केवल पाप मुक्त होने की इच्छा रखते हो तो इससे कुछ नहीं होगा। लेकिन अगर निर्णय करते हो तो इससे कुछ-कुछ होगा और संकल्प ले लिया तो सब कुछ हो जाएगा। इच्छा तो मृगमरीचिका है। प्रचवन में महाराज साहब ने चेतावनी भजन ‘करना चाहो यदि कल्याण, करें हम अपना ही गुण ध्यान, जो खुद को भूल रहा है पर में ही झूल रहा है, वह करता निज अवमान’ तथा ‘सर जावे तो जावे मेरा जैन धर्म नहीं जावे, धर्म की खातिर गौतम स्वामी घर-घर अलख जगावे, मेरा सत्य धर्म नहीं जावे’ सुनाकर धर्म के प्रति वफादारी और कर्म के प्रति ईमानदारी रखने की बात कही। सौभाग्य उदय में आया जो गुरुवर सभा में पधारे हैं।
श्री शान्त- क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजय कुमार लोढ़ा ने बताया कि प्रवचन के बाद ग्यारह की तप करने वाले मधु जी श्रीश्रीमाल और अंजू जी बाँठिया को एवं अन्य श्रावक-श्राविकाओं के बेला, तेला, आयम्बिल और तपस्या करने वालों को आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने आशीर्वाद दिया। दिल्ली से पधारे संघ के प्रति समर्पित अशोक कुमार एवं सुशील कुमार का संघ की ओर से बहुमान किया गया। सभा के अंत में सामूहिक वंदना की गई।

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