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संपर्क से संस्कार, संस्कार से विचार, विचार से व्यवहार बनता है- आचार्य विजयराज महाराज

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बीकानेर। संपर्क से संस्कार बनते हैं। संस्कार से विचार बनते हैं। विचार से व्यवहार बनता है और फिर व्यवहार से संस्कार बनते हैं। इसलिए संपर्क बहुत महत्वपूर्ण है। संपर्क से ही हमारे व्यवहार, विचार में परिवर्तन आता है। ह्रदय का परिवर्तन विषय पर प्रवचन देते हुए श्री शान्त-क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज महाराज ने यह बात कही।  आचार्य श्री ने शनिवार को सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे स्वर्णिम दीक्षा पर्व के पचासवें वर्ष के चातुर्मास मे नित्य प्रवचन में कहा कि  आर्य (श्रेष्ठ)वह जो धर्म में प्रवृत हो और अनार्य वह जो (धर्म और नीति-नियम विरुद्ध)कार्य करे।

महाराज ने कहा कुछ लोग धर्म से आर्य होते हैं और कुल से अनार्य होते हैं। वहीं कुछ कुल से आर्य होते हैं, लेकिन धर्म से अनार्य होते हैं और कई कुल से भी आर्य होते हैं और धर्म से भी आर्य होते हैं तथा चौथा प्रकार वह है जो कुल से अनार्य है और धर्म से भी अनार्य होते हैं। भगवान महावीर के  राजगृही नगरी में हुए चातुर्मास का एक प्रसंग बताते हुए कहा कि राजगृही नगरी में भगवान महावीर ने सर्वाधिक 14 चातुर्मास किए थे। वहां के महाराजा का नाम श्रेणिक था और अभय कुमार महामंत्री थे। उसी नगर में एक अनार्य कर्म करने वाला कालू कसाई था, उसके कार्य को राजा श्रेणिक भी बंद ना करवा सके लेकिन भगवान महावीर के प्रवचन को सुन महामंत्री अभय कुमार के ह्रदय में यह बात आई और उसने चिंतन कर यह निर्णय लिया कि उसे इस कार्य को रोकना है। इसके लिए उसने कालू कसाई के पुत्र सुलस को अपना मित्र बनाया। उसके साथ संगती की और धीरे-धीरे उसमें अहिंसा के भाव आ गए और वह संगत से यह कार्य बंद करवा सका। कहने का अभिप्राय यह कि जो काम सत्ता ना कर सकी वह संपर्क ने कर दिखाया।  

इस तरह से महाराज ने फरमाया कि अनार्य कुल में पैदा होकर भी व्यक्ति आर्य कर्म कर सकता है। महाराज ने कहा कि  परिवर्तन कहने  को एक छोटा सा शब्द है, लेकिन इसके साथ जीवन की बड़ी प्रक्रिया जुड़ी है। अगर ह्रदय में परिवर्तन आ गया तो  वह स्थाई परिवर्तन होता है। इसलिए ऐसा परिवर्तन अपने जीवन में लाएं ह्रदय का परिवर्तन सबसे बड़ा परिवर्तन है। जब तक ह्रदय में परिवर्तन नहीं होना ना जीवन में परिवर्तन होता है और ना ही व्यवहार में आ सकता है। कठोरता और कोमलता हमारे ह्रदय के भाव हैं। कठोरता से निर्दयता, क्रूरता रहती है उससे हम उतनी ही असाता का आह्वान करते हैं। अगर कोमलता, शीलता आ जाए तो हम साता के वंदनीय कर्म में आ जाते हैं। मैं बीकानेर के श्रावकों के घरों में  जा रहा हूं। अठारह साल बाद जब चातुर्मास के लिए आया हूं तो देखता हूं कि बहुत से पुराने मकान अब नए घरों में परिवर्तित हो गए हैं। स्थान वही है, मकान में परिवर्तन आ गए हैं।

लोगों की वेशभुषा में भी परिवर्तन आ गया है लेकिन देख रहा हूं कि ह्रदय वही का वही है। ह्रदय में परिवर्तन नहीं आ रहा है। जबकि आवश्यकता ह्रदय में परिवर्तन लाने की है। ह्रदय में परिवर्तन नहीं है तो यह धर्म, हमारी साधना मजबूत नहीं होती है। एक अन्य प्रसंग के माध्यम से आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि जब आपका पुण्य उदय होता है तब आपका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है। इसलिए पुण्य का बैलेंस बढ़ाओ, धन का बैलेंस आप चाहे जितना भी कर लो, यह यहीं का यहीं पर रहेगा लेकिन पुण्य का बैलेंस बढ़ाओगे उतनी ही साता बढ़ती जाती है। जितना पुण्य बढ़ेगा उतना ही साता वेदनीय  कर्म का उदय होगा।
 

सुलभ बोधी कक्षा ढढ्ढा कोटड़ी में प्रातः 6.30 बजे से निरन्तर चल रही है। जिसमें महासती सौम्य श्री जी म.सा. अपने ज्ञानदर्शन का लाभ दे रही है। श्रावक-श्राविकाओं में तपस्या, तेला, उपवास, एकासन व आयम्बिल की लड़ी चल रही है। इसके अलावा जिज्ञासा समाधान कक्षा भी आयोजित की गई। प्रचार मंत्री विकास सुखाणी ने बताया कि 24 जुलाई को सामूहिक दया व्रत का कार्यक्रम आयोजित होगा। प्रवचन के बाद मंगलिक एवं णमोकार महामंत्र का पाठ हुआ। नव दीक्षित विशाल मुनि म. सा. ने  विनय सूत्रम के बारे में श्रावक- श्राविकाओं को व्याख्यान दिया। अंत में सामूहिक वंदना, प्रेरक भजन उम्र थोड़ी सी हमको मिली थी मगर का सामूहिक संगान हुआ।

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