पत्रकारों के मुद्दों पर संगठनों के बीच सहयोग, एकजुटता की जरूरत: एनयूजे, डब्लयूजेआई वेबीनार
नई दिल्ली।
देश के दो शीर्ष पत्रकार संगठनों नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) और वर्किंग जर्नलिस्ट्स आफ इंडिया (डब्ल्यूजेआई) की ओर से शनिवार छह जून को आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार में पत्रकारों और पत्रकारिता के अहम मुद्दों पर सभी संगठनों के बीच सहयोग और एकजुटता की जरूरत पर बल दिया गया। चर्चा में कोविड19 महामारी के दौरान जन समस्याओं को उजागर करने में मीडियाकर्मियों की भूमिका की सराहना की गयी और लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में पत्रकारों के विशेष स्थान को रेखांकित किया गया। यूनियनों के नेताओं ने अखबारों और चैनलों में पत्रकारों की छंटनी पर गहरा रोष व्यक्त किया। "श्रम संहिताएं एवं श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955" विषय पर आयोजित इस सेमीनार में मुख्य वक्ता देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के क्षेत्रीय संगठन मंत्री (दिल्ली क्षेत्र) पवन कुमार थे। एनयूजे (आई) अध्यक्ष मनोज मिश्रा, महासचिव सुरेश शर्मा, डब्यूजेआई के अध्यक्ष अनूप चौधरी, महासचिव नरेंद्र भंडारी, दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष मनोहर सिंह, महासचिव अमलेश राजू, एनयूजेआई के पूर्व अध्यक्ष अशोक मलिक और डीजेए के पूर्व महासचिव डा प्रमोद कुमार ने विचार रखे। दो घंटे चली परिचर्चा में देशभर से दोनों संगठनों से जुड़े मीडियाकर्मी शामिल थे।


इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया संगठनों पर भी लागू होगी नई संहिताएं
बीएमएस के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमार ने कहा, "सरकार ने श्रम संबंधी 44 कानूनों की जगह चार श्रम संहिताएं बनाने की कवायद शुरू की है। जिसमें पारिश्रमिक पर संहिता को संसद और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है। बाकी संहिताओं को पारित कराने का काम चल रहा है।’ पवन कुमार ने कहा कि इन संहिताओं से श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य जांच, सामाजिक सुरक्षा, वेतन के रूप में एकरूपता जैसे कई लाभ होंगे। नयी सहिताएं इलेक्ट्रानिक मीडिया और डिजिटल मीडिया संगठनों के कर्मचारियों पर भी लागू होंगी लेकिन इसके साथ ही श्रमिकों के सामने कई चुनौतियां भी आएंगी।’ उन्होंने कहा कि नयी संहिताओं के बाद ‘श्रमजीवी पत्रकार एक सीधा कर्मचारी माना जाएगा।' उन्होंने कहा कि "इसमें कोड आन आकूपेशनल हेल्थ, सेफ्टी एवं वर्किंग कंडीशन्स 2019 (पेशे से जुड़ी स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्यस्थल की दशाओं संबंधी संहिता-2019) के लागू होने पर वर्किग जर्नलिस्ट्स एंड अदर न्यूजपेपर इम्लाईज (कंडीशन्स आफ सर्विसेज) एंड मिसलीनियस प्रावीजन एक्ट 1955 और वर्किंग जर्नलिस्ट्स (फिक्सेशन और रेट्स आफ वेजेज) एक्ट 1958 और विभिन्न 13 उद्योगों का कानून उसमें समाहित हो जाएगी। इससे समाचार पत्र उद्योग के पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों के वेजबोर्ड का भविष्य संदिग्ध हो गया है।’ पवन कुमार ने कहा, ‘मंत्री कह रहे हैं कि हम नियमों में वेजबोर्ड की व्यवस्था कर देंगे। पर बाद में अधिकारी कहेंगे कि जो बात अधिनियम में नहीं है उसके लिए नियम कैसे हो सकता है।’ बीएमएस नेता ने कहा कि "कोई भी अधिकार बगैर संघर्ष के नहीं मिलता। पत्रकारों को अपने अधिकारों के लिए एकजुट होकर संघर्ष करना होगा
।’’
कमजोर होते जा रहे हैं पत्रकारों के हक
एनयूजे (आई) अध्यक्ष मनोज मिश्रा ने तीसरे मीडिया आयोग के गठन की संगठन की मांग को रखते हुए कहा, "पत्रकारिता की चुनौतियां बढ़ रही हैं, पत्रकारों के हक कमजोर होते जा रहे हैं। वर्किंग जर्नलिस्ट्स अधिनियम को कमजोर करने का जो काम पिछली सरकार के समय शुरू हुआ था उसे यह सरकार भी आगे बढ़ा रही है।" एनयूजे अध्यक्ष ने कहा, "संगठनों को मिल कर चलना होगा तभी उसका असर होगा। समाज को आज भी पत्रकारों से बड़ी अपेक्षाएं हैं।" डब्यूजेआई के अध्यक्ष अनूप चौधरी ने कहा, ‘पत्रकार की गिनती न मालिकों में है, न मजदूरों में, 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में पत्रकारों के लिए एक रुपया भी नहीं है।’ चौधरी ने भी पत्रकारों और पत्रकारिता के हित में सभी संगठनों के बीच एकजुटता की जरूरत पर बल दिया।
इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया कर्मियों को भी लाया जाए
एनयूजे (आई) महासचिव सुरेश शर्मा ने कहा श्रमजीवी पत्रकार कानून को बचाना पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है। इसमें इलेक्ट्रानिक और डिजिटल मीडिया के कर्मियों को भी लाया जाए। उन्होंने एनयूजे (आई) आई द्वारा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को दिए गए ज्ञापन का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें श्रमजीवी पत्रकारों, मीडिया संगठनों और संवादसमितियों के लिए विशेष पैकेज की मांग की गयी है।
पत्रकारों के सामने आजीविका का बड़ा संकट
डब्ल्यूजेआई के महासचिव नरेंद्र भंडारी ने कहा, ‘आजादी के बाद भारत में पत्रकारों के लिए कोविड19 सबसे बड़ा संकट लेकर आया है। लोगों की मीडिया हाउसेज में नौकरियां जा रही हैं। पत्रकारों के सामने आजीविका का बड़ा संकट खड़ा है। इसका मुकाबला मिल कर करने की जरूरत है।’ एनयूजे के पूर्व अध्यक्ष अशोक मलिक ने ठेका व्यवस्था को पत्रकारों बड़ा खतरा बताते हुए कहा, "कानून में यह स्पष्ट व्यवस्था हो कि मीडियाकर्मी पर ठेका मजदूर व्यस्था लागू नहीं होगी।’’
मीडिया ट्रेड यूनियनों में बिखराव पर चिंता
डीजेए के पूर्व महासचिव डा प्रमोद कुमार ने ट्रेड यूनियनों को मजबूत करने और अच्छा काडर तैयार करने की जरूरत पर बल दिया।
डीजेए अध्यक्ष मनोहर सिंह ने श्रमजीवी पत्रकारों को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने का आह्वान किया। उन्होंने मीडिया ट्रेड यूनियनों में बिखराव की प्रवृत्ति पर चिंता जताई।
परिचर्चा का संचालन डब्ल्यूजेआई के वरिष्ठ नेता संजय उपाध्याय ने किया।
इन संगठनों के नेताओं ने आने वाले दिनों में अन्य संगठनों साथ मिल कर मीडियाकर्मियों के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है।