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वेद से विजन तक — राष्ट्र के उत्थान पर चिंतन

दो दिवसीय विद्वत् विचार गोष्ठी में वेद, राष्ट्रवाद और स्वभाषा के महत्व पर मंथन

बीकानेर। स्थानीय होटल पाणिग्रहण में दो दिवसीय परिचर्चा एवं विद्वत विचार गोष्ठी का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र का संचालन हैदराबाद से पधारे आचार्य हरीप्रसाद ने किया। आर्ष न्यास अजमेर, पर्यावरण पोषण समिति बीकानेर एवं आर्य समाज के पदाधिकारियों ने विभिन्न क्षेत्रों से आए विद्वानों का स्वागत किया।

पहले सत्र की अध्यक्षता डॉ. नरेश धीमान ने की और संचालन डॉ. दीपक आर्य ने किया। प्रयागराज से पधारे डॉ. प्राचेतस ने अपने उद्बोधन में स्वभाषा और राष्ट्रभाषा के उपयोग पर बल देते हुए कहा कि महर्षि दयानंद ने सदैव हिंदी भाषा को बढ़ावा दिया और समाज को वेदों की ओर लौटने का संदेश दिया। अहमदाबाद से आए आचार्य अजय ने राष्ट्र के उत्थान के लिए सकारात्मक विचारों की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि जातिवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद वेदों से विमुख होने के परिणाम हैं।

स्वामी सत्येंद्र ने कहा कि किसी राष्ट्र को कमजोर करने का सबसे सरल तरीका उसकी शिक्षा, संस्कृति, सभ्यता और भाषा में परिवर्तन करना है। उन्होंने कहा कि युवाओं को महर्षि के विचारों से परिचित करवाना ही सच्चे राष्ट्रवाद की दिशा है। साहित्यकार मनीषा आर्या सोनी ने अपने वक्तव्य में वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को राष्ट्रवाद की आधारशिला बताते हुए कहा कि स्त्री की शिक्षा, सुरक्षा और समानता पर बल देना राष्ट्र सुधार की पहली शर्त है।

रुड़की से पधारी पद्मश्री आचार्या सुकामा ने कहा कि वेद हमें सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हैं। यदि राष्ट्र के नागरिकों में सत्यनिष्ठा, समृद्धि, न्यायप्रियता, अन्याय विरोध, कर्तव्यनिष्ठा, सहिष्णुता, ज्ञान, श्रेष्ठ जीवन और त्याग के गुण हों, तो राष्ट्र निश्चित रूप से समृद्ध होगा।

द्वितीय सत्र में रोजड के डॉ. दीपक आर्य, अजमेर के स्वामी श्रेयस्पति, डॉ. नरेश धीमान, लालेश्वर महादेव मंदिर के अधिष्ठाता विमर्शानंद महाराज, हैदराबाद के आचार्य हरीप्रसाद एवं रोहतक के प्रोफेसर रवि प्रकाश ने अपने ओजस्वी विचार रखे। अंत में दर्शकों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया तथा उपस्थित जनों ने सत्संग का लाभ उठाया।

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