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सेवा, श्रद्धा और समर्पण का अद्भुत संगम: इस मेले में हर भक्त को मिलता है निशुल्क भोग का अवसर

बीकानेर।
राजस्थान की भूमि पर मेले सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं होते, वे आस्था और सेवा की जीवंत मिसाल होते हैं। बीकानेर जिले की श्री डूंगरगढ़ तहसील के निकटवर्ती गांव पूनरासर में लगने वाला हनुमान जी का भाद्रपद मेला ऐसा ही एक आयोजन है, जहां भक्ति के साथ निस्वार्थ सेवा की परंपरा वर्षों से जीवित है।

हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष के आसपास तीन दिवसीय यह मेला लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। इस बार 28 से 30 अगस्त तक आयोजित होने वाले इस मेले की खासियत सिर्फ दर्शन नहीं, बल्कि वह भोग सेवा है, जो इसे राजस्थान के दूसरे मेलों से अलग बनाती है।


निशुल्क भोग सामग्री: हर भक्त के लिए सम्मान और सेवा का भाव

मेले में पहुंचने वाले प्रत्येक श्रद्धालु को चूरमा और बाटी के भोग हेतु सामग्री निशुल्क वितरित की जाती है। मंदिर के वर्तमान बारीदार पुजारी डालचन्द बोथरा बताते हैं कि मेले में करीब 80 क्विंटल आटा, 7 क्विंटल घी और इतनी ही शक्कर का वितरण हो जाता है । यह सारा सामान भक्तों को बिना किसी शुल्क के प्रदान किया जाता है।

विशेष बात यह है कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए कूपन प्रणाली अपनाई जाती है। भक्त अपने कूपन के माध्यम से यह सामग्री प्राप्त कर पूनरासर हनुमान जी को सद्भावना और आस्था से भोग अर्पित करते हैं।


भक्तों की सेवा में समर्पित पुजारी परिवार

डालचन्द बोथरा और उनका परिवार अपनी बारी के चलते यह सेवा परंपरा निभा रहा है। 30 अगस्त तक वे मंदिर सेवा में संलग्न रहेंगे। यह सेवा केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि समाज के प्रति एक निस्वार्थ दायित्व है, जिसे बोथरा परिवार पूरी श्रद्धा से निभा रहा है।


मानव श्रृंखला और भक्ति की झलक

इस दौरान बीकानेर से पूनरासर तक का रास्ता भक्तों की लम्बी कतारों से सजीव हो उठता है। ऊंट गाड़ियों, पैदल यात्रियों और भजनों के स्वर से गूंजता यह रास्ता एक भक्ति भरा कारवां बन जाता है। बाबै के जयकारों से गूंजता नेशनल हाईवे, श्रद्धा के इस महासागर की गवाही देता है।

शहर के बाजार और गलियां मानो खाली हो जाती हैं — क्योंकि बीकानेरवासी बाबै के दरबार में हाजिरी लगाने निकल पड़ते हैं।


प्रशासनिक व्यवस्थाएं और सामाजिक सहभागिता

प्रशासन की ओर से पानी, चिकित्सा, सुरक्षा और ट्रैफिक नियंत्रण की विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं। लेकिन असली सहयोग स्थानीय लोगों, सेवाभावी संस्थाओं और स्वयंसेवकों से मिलता है, जो इस आयोजन को सफल बनाने में नींव की तरह कार्य करते हैं।


मेले का सार: सिर्फ आस्था नहीं, अपनापन भी

पूनरासर हनुमान मेला न सिर्फ भक्ति का पर्व है, बल्कि यह राजस्थान की सेवा संस्कृति का प्रतीक भी है। यहां न कोई अमीर होता है, न गरीब—हर भक्त को समान भाव से भोग सामग्री दी जाती है, सेवा का अवसर मिलता है और पुण्य का भागी बनता है।

यह मेला हमें यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है, जो सेवा से जुड़ी हो और जिसमें सभी के लिए समान सम्मान और स्नेह हो।



पूनरासर हनुमान मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सेवा, समर्पण और सामूहिक सहयोग की मिसाल है — जहां हर भक्त को ससम्मान भोग सामग्री मिलती है और हर कदम पर भक्ति का अनुभव होता है।

– रिपोर्ट: द इंडियन डेली

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