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भाग -2 : एक गोली बदल देगी दुनिया Part-2: One pill will change the world

प्रिय पाठकों
आपने कल साइंस फिक्शन पर आधारित मेरी स्टोरी ‘एक गोली बदल देगी दुनिया’ का पहला भाग पढ़ा। इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। यहां बताना चाहता हूँ कि यह स्टोरी जून 2019 में साइंस मीडिया वर्कशाप में मशहूर साइंस फिक्शन राइटर हरिश गोयल के मार्गदर्शन में लिखी थी। फिक्शन लिखने की प्रेरणा वैज्ञानिक दृष्टिकोण पाक्षिक के संपादक तरूण के जैन से मिली। स्टोरी को फाइनल टच देने में परम मित्र डी पी जोशी का महत्वपूर्ण सहयोग रहा। इस स्टोरी में यह बताया गया है कि धरती पर आबादी बढ़ने से दुनिया की कितनी भयावह तस्वीर सामने आएगी और इस आपदा से कैसे दुनियाभर के वैज्ञानिक निपटेंगे और समाधान के बाद किस तरह के बदलाव आएंगे आदि घटनाओं का समावेश किया गया है।
आज कोरोना संक्रमण से जो हालात बने हैं करीब करीब ऐसे ही हालातों का जिक्र जून 2019 में लिखी अपनी इस स्टोरी में कर चुका हूं। इस स्टोरी की एक प्रति आयोजकों के पास सुरक्षित है। आप से आग्रह है कि स्टोरी के प्रत्येक भाग को पूरा पढ़ें और अंत में अपने विचारों से जरूर अवगत कराएं।
मेरा ई-मेल आईडी है rrvyas17@gmail.com राजेश रतन व्यास
एडिटर एंड मैनेजिंग डायरेक्टर द इंडियन डेली (TID NEWS)
theindiandaily.in

अब आगे

मैं घर पहुंचा और सोने के लिए पलंग पर लेटा, लेकिन नींद नहीं आ रही थी। तब टीवी चलाई और न्यूज चैनल देखने बैठ गया। न्यूज में भी यही बताया जा रहा था कि धरती पर भोजन के लिए संघर्ष चरम पर है। इतना सुना और मैंने टीवी बंद कर दिया। इस बीच कब नींद लगी पता ही नहीं चला। सुबह देर से नींद टूटी तो वही रात वाली चर्चा परेशान कर रही थीं। क्योंकि हमारे शहर के भी यही हालात थे। खैर दैनिक कार्यों से निवृत होकर किचन में गया तो पत्नी रेखा बोली आटा आज आज का ही है और बाजार में भी उपलब्ध नहीं है। इसलिए खाने के लिए जो भी मिले आते हुए ले आना। पत्नी ने पोहा बनाया, लेकिन आधे भूखे पेट ही ऑफिस निकल गया। पत्नी की आंखे छलछला गई और कहने लगी कि पैसे है, लेकिन बाजार में राशन का अभाव है और आप भूखे जा रहे हैं। मैने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा चिंता मत करो मैं ठीक हूं और तेजी से आगे निकल गया। आॅफिस जाते ही जरूरी काम पूरे किए तब तक लंच का समय हो गया। हम आॅफिस में एक ही जगह बैठकर लंच करते हैं। इसलिए सीट से उठा और लंच वाले स्थान की ओर बढ़ गया।
यह क्या, जहां मेरे सहकर्मी लंच करते हैं वहां कोई भी नजर नहीं आया।
तो मैने जूनियर साथी राकेश से पूछा कि क्या बात है आज सारे भूख हड़ताल पर है क्या?
उदास से मुंह लटकाए राकेश ने कहा शहर में खाद्य सामग्री की आपूर्ति एक सप्ताह बाद होगी। इसलिए सभी ने अन्न का स्टोरेज करना शुरू कर दिया है और भूख से बहुत कम खा रहे हैं। आज कोई भी लंच नहीं लाया। सिर नीचे झुकाए राकेश ने बताया कि बिहार में मेरे गांव में एक दर्जन लोग भूख से मर गए हैं। सर, पता नहीं क्या होगा सरकारें कुछ नहीं कर रही। इसके बाद हम दोनों चुपचाप कुछ सोचने लगें तभी मेरी नजर आॅफिस में टेबल पर पड़े अखबारों पर पड़ी तो सभी अखबार खाद्य सामग्री के अभावों एवं इनसे दुनियाभर में हो रही मौतों के आंकड़ों से भरे पड़े थे। इस बीच घड़ी पर नजर पड़ी तो याद आया कि लंच टाइम खत्म हो चुका है, फिर बुझे मन से मैं और राकेश ऑफिस कार्य में व्यस्त हो गए। दोपहर ढलने लगी। आॅफिस का काम करते करते घर जाने का समय हो जाता है।
मैं आॅफिस से घर के लिए निकला ही था कि अचानक पत्नी रेखा की बात याद आ गई। मुझे डिनर के लिए कुछ लेकर घर जाना है। पर यह क्या बाजार सूने है, जहां दुकानें खुली थी वहां दुकानदार मनमाने दाम पर बेहद कम मात्रा में खाद्य सामग्री दे रहे थे। काफी ढूढ़ने के बाद एक पुरानी से दुकान नजर आई। लेकिन वहां 30 से 40 गुना महंगे दाम पर खाद्य सामग्री मिल रही थीं। कुछ सोचने के बाद आलू व ब्रेड लेकर घर पहुंचा। रेखा ने दरवाजा खोला तो हाथ में खाने की सामग्री देखकर वह मुस्कराई। मैंने जैसे ही रेखा को सामान दिया तो बोली बस, इतने ही। मैंने कहा शुक्र समझो मिल तो गया, वरना बहुत से लोगों को ये भी नहीं मिल रहे।
इस बीच मेरे मोबाइल की घंटी ……. लगातार ….. शेष भाग कल ……

#science fiction

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