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बड़े संकट में बीकानेर की पैकेजिंग इंडस्ट्रीज

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राजेश रतन व्यास
बीकानेर। कोरोना महामारी से देश दुनिया के उद्योग धंधे बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। इससे बीकानेर की पैकेजिंग इंडस्ट्रीज भी अछूती नहीं रही। बीकानेर में कोरोगेटेड बाॅक्स बनाने का काम बड़े स्तर पर होता हैं। यहां ऐसी करीब एक दर्जन इंडस्ट्रीज है। इनमें से एक तो बंद भी हो चुकी है। पिछले कुछ समय से क्राफ्ट पेपर और कच्चे माल के भावों में 30 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। इससे यहां की इकाइयों के सामने बड़ा वित्तीय संकट खड़ा हो गया है। इतना ही नहीं इन इकाइयों में लेबर की संख्या भी लगातार कम हो रही है। कारोबारियों के अनुसार यहां राॅ मैटेरियल उपलब्ध नहीं है। इन हालातों में पार्टियों के आॅर्डर पूरे करने भी मुश्किल हो रहे हैं। यदि ऐसी ही स्थितियां रही तो बीकानेर में इन उद्योगों के बंद होने से इनकार नहीं किया जा सकता। बताया जा रहा है कि यूरोप एवं अमेरिका में लाॅकडाउन के चलते पेपर मिलों को पर्याप्त स्क्रेप उपलब्ध नहीं हो रहा है। कारोबारियों का कहना है कि हमने रेटों में महज 13 से 14 प्रतिशत बढ़ोतरी की उतने में ही बाजार में आग लग गई। इतनी रेटें एक साथ कैसे बढ़ा दी? ऐसा क्या हो गया? ऐसी बाते होने लगी हैं। इन सवालों के बीच सरवाइव कर पाना बेहद मुश्किल हो रहा हैं। इसलिए सरकार को एक्सपोर्ट पर रोक लगानी होगी। तभी भावों पर लगाम लग सकेगी।  
फैक्ट फाइल
बीकानेर में कुल फैक्ट्री 11
बंद हुई यूनिट 1
कुल लेबर 300 से 400
लेबर में कमी 20 से 25 फीसदी
पेपर की प्रति माह खपत 700 टन

इनका कहना है-
बीछवाल औद्योगिक क्षेत्र स्थित गौरव पैकेज के डायरेक्टर उमाशंकर माथुर कहते है कि कोरोना के चलते यूरोप में लाॅकडाउन है। इससे हमारे यहां रद्दी आना बंद हो गई। इससे रेटें बढ़ गई और मार्केट में पेपर की शाॅर्टेज हो गई। यह हाल लम्बा चला तो बिल्कुल भी पार नहीं पड़ेगी। इधर सरकार भी कुछ कर नहीं रही। लाॅकडाउन में जो लेबर गई वह वापस नहीं आ रही। जो किसी कारण से नहीं जा पाई वह लेबर अब गई है। लाॅकडाउन में जितनी प्रोबल्म नहीं थी उतनी अब आ रही है। इससे सब जगह 20 से 25 फीसदी लेबर कम हो गई। पैकेजिंग इंडस्ट्री को उबारने के लिए पेपर का एक्सपोर्ट कम करें सरकार।

करणी इंडस्ट्रीयल एरिया स्थित अग्रवाल पैकेजिंग के डायरेक्टर विजय जैन का कहना है कि पैकेजिंग इंडस्ट्री का काम तो महज 70 से 80 फीसदी कम हो गया। चाइना ने इंडिया से पेपर इम्पोर्ट करने से 30 से 40 फीसदी रद्दी को महंगा कर दिया। पेपर के रेट एक माह में 30 से 40 फीसदी महंगा  हो गया। इससे माल की शाॅर्टेज हो गई। इंडिया की पेपर मिल इंडिया वालों को माल की आपूर्ति नहीं कर रही है। उनका ध्यान एक्सपोर्ट पर ज्यादा है। इस वजह से छोटी पैकजिंग यूनिट्स की कमर टूट गई है। उनकों अपनी इंडस्ट्री चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। कोरोना के कारण छोटे उद्योग बंद हो गए हैं। उससे पैकेजिंग इंडस्ट्री का माल भी कम बिक रहा है। पैकेजिंग इंडस्ट्री बहुत ही बुरे दौर से गु जर रही है।

करणी औद्योगिक क्षेत्र स्थित प्रिंस पैकेजर्स के मनोज दस्साणी बताते हैं कि अभी माल आ नहीं रहा। मिले मनमानी कर रही हैं। चाइना एक्सपोर्ट हो रहा है। इससे स्थिति बहुत ज्यादा नाजुक हो गई है। कोरोगेटेड कारोबार बहुत ज्यादा दिक्कत में है। हमें बस माल मिलता रहे, रेट तो कुछ नहीं बढ़ती रहती है, लेकिन 40-40 फीसदी तेजी हम कहां लेकर जाएं। स्थिति यह है कि पेपर बढ़ गया 40 प्रतिशत और हम रेट 15 फीसदी भी नहीं बढ़ा पा रहे हैं। कोरोना की वजह से रोजगार का भी नुकसान हुआ है उस पर यह जो नुकसान हुआ है वह बहुत भारी हो गया है। दोहरी मार हो गई है। यह स्थिति ऑल इंडिया स्तर पर खराब हुई है। मिल वाले केवल एक्सपोर्ट में लगे हुए हैं और हमें रद्दी उपलब्ध नहीं करवा रहे हैं। इन वजहों से बीकानेर में एक फैक्ट्री भी बंद हो चुकी है और हम समझो जूझ रहे हैं। इन परिस्थितियों में जो एक्सपोर्ट चाइना से आ रहा है उसे तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए। इससे बाहर माल जाना रूकेगा तब मिल वाले भावों में कमी लाएंगे। एक्सपोर्ट से हमें बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है।

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