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शिक्षा मंत्री द्वारा स्कूलों को धंधा बताना शिक्षा जगत का अपमान,  शीघ्र माफी नहीं मांगी तो गैर सरकारी शिक्षण संस्थाएं करेगी मानहानि का मुकदमा

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बीकानेर। शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा द्वारा स्कूलों को धंधा कहने को लेकर पूरे राज्य में उनकी किरकिरी तो हो ही रही है, इस बयान को लेकर उनका जबर्दस्त विरोध भी शुरू हो गया है। शनिवार को राजधानी जयपुर सहित राज्य के लगभग हर जिले में शिक्षा मंत्री के पुतले फूंके गए और इस बयान को लेकर उनसे माफी मांगने और इस्तीफे देने की मांग की गई। शिक्षा बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति के मुख्य संयोजक गिरिराज खैरीवाल ने प्रेस बयान जारी कर कहा कि शिक्षा मंत्री द्वारा शिक्षा जैसे नोबल प्रोफ़ेशन को धंधा कहना समस्त शिक्षा जगत का सरासर अपमान है। उन्होंने शिक्षा मंत्री को सवाल किया है कि अगर स्कूलें व शिक्षा धंधा है तो क्या ख़ुद मंत्री भी धंधा मंत्री है? खैरीवाल ने कहा कि शिक्षा मंत्री को अपने इस बयान के संबंध में तुरंत प्रभाव से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगनी चाहिए। उन्होंने बताया कि यदि शिक्षा मंत्री ने अपने इस बयान के संबंध में माफी नहीं मांगी तो राज्य के गैर सरकारी शिक्षण संस्थाओं द्वारा उनके विरुद्ध मानहानि का दावा किया जाएगा। 
 बोर्ड फार्म भरने में असमर्थ हैं गैर सरकारी शिक्षण संस्थान, बोर्ड को इस बार परीक्षा शुल्क माफ करना चाहिए
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा जारी तुगलकी विज्ञप्ति के संबंध में खैरीवाल ने कहा कि प्राइवेट स्कूलें अभी बोर्ड का फार्म भरने में असमर्थ है। उन्होंने कहा कि जब तक फ़ीस के मुद्दे का समाधान नही हो जाता जिसमें विगत सत्र के बकाया का भुगतान, आरटीई के पिछले 3 वर्षों का बकाया भुगतान व इस सत्र की फ़ीस का समाधान एवं कक्षा 1 से 12वीं तक कि क्लासेज़ का फिज़िकल संचालन नही हो जाता तब तक स्कूलें बोर्ड के फार्म्स भरने में असमर्थ हैं।उन्होंने कहा कि विगत 8 महीनों से प्राइवेट स्कूलों में कार्यरत 11 लाख कर्मचारियों के जीवन यापन की समस्या आ गई है। अब तक स्कूलों नेअपने सामर्थ्य के अनुसार वेतन देकर या आगे मिलने का आश्वासन देकर 90 लाख बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई को निरंतर जारी रखा व स्कूल के अन्य समस्त खर्चे जिसमे सभी प्रकार के टेक्स,लोन की किस्तें, वाहनों का इंश्योरेंस, बिजली पानी का कॉमर्शियल बिल व कर्मचारियों का वेतन देकर कार्य किया। जिसके चलते स्कूलें कर्जे में आ गई हैं। और इसी कारण आर्थिक तंगी के चलते राज्य के अनेक शिक्षण संस्थाओं के संचालकों ने आत्महत्या तक कर ली। खैरीवाल ने स्पष्ट किया है कि स्कूलों के आर्थिक हालात बेहद नाज़ुक हैं, वेतन के अभाव में शिक्षकों व अन्य कर्मचारियों ने स्कूलों में आने से साफ़ मना कर दिया है और बिना कर्मचारियों के फार्म भरने का कार्य किया जाना कैसे संभव है? खैरीवाल ने कहा कि अभिभावक भी इस समय आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं अतः बोर्ड भी अपनी नैतिकता दिखाते हुए  विद्यार्थियों द्वारा लिए जाने वाली बोर्ड परीक्षा शुल्क माफ़ करें ताकि अभिभावकों को भी राहत मिल सके। उन्होंने कहा कि बोर्ड प्रति वर्ष गैर सरकारी शिक्षण संस्थाओं से संबद्धता शुल्क के नाम पर दो हजार रुपये लेता है, यह संबद्धता शुल्क बोर्ड बेवजह लेता है और बोर्ड को इस वर्ष यह शुल्क भी माफ करना चाहिए। 

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