क्या जनता का आर्त्तनाद सुनोगे ?
✍हेम शर्मा ✍
बीकानेर । बेशक कोरोना महामारी है और मानवीकृत व्यवस्था में अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है। यह विडंबना है कि इस महामारी ने मानवता ऒर मानवीय संवेदनाओं पर भी सवाल खड़े कर दिए है। कोरोनो पीड़ितों की आर्त्तनाद सुनने की न तो व्यवस्था के जिम्मेदार लोगों में संवेदनशीलता का आभास होता हैं और न ही जनप्रतिनिधियों में किसी तरह की जिम्मेदारी दिखाई दे रही है। यह सच है वे कोरोना पीड़ितों से मिल नहीं सकते। तो क्या जो इलाज की व्यवस्था मुक़र्रर की है उसको माकूल बनाए नहीं रख सकते। जनप्रतिनिधियों की भूमिका में निगरानी नहीं रख सकते। कोरोना पीड़ितों का आर्त्तनाद नहीं सुन सकते। जनता और पीड़ितों की उम्मीदें हैं कि महामारी के संकटकाल में हमारे नेता हमारे साथ खड़े हैं ऐसा महसूस हो।। सच यह है कि न राजस्थान सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला के व्यवहार से जनता यह महसूस कर रही है और न केंद्रीय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इस तरह का अपने क्षेत्र की जनता को एहसास दे पा रहें हैं। इन मन्त्रियों से जनता अपनेपन की उम्मीद करती हैं। जिस पर ये खरे नहीं उतर पा रहे हैं। इसका प्रमाण इनके व्यवहार पर जनता की प्रतिक्रिया से मिलता है। राजस्थान के कैबिनेट मंत्री कल्ला के खिलाफ कड़े वक्तव्य का पिछले दिनों जारी वीडियो में कल्ला को आइना दिखाया गया है। मेघवाल तो चापलूसों से घिरे हैं उनके आइने पर धुंधलका छाया हुआ है। जनता इस संकट की घड़ी और मनोवैज्ञानिक तकलीफ को शायद ही भूल पाएगी। याद रखना।