गोलियों से बचते बचाते पहुंच गए रामलला की भूमि अयोध्या
✍राजेश अग्रवाल, नोखा
5 अगस्त का दिन मेरे लिए बहुत ही यादगार रहेगा। क्योंकि 30 साल पूर्व 2 नवंबर 1990 जब हम सरयू तट पर थे तब मस्जिद का ढांचा गिरा था। वह सफर वह याद मेरी जिंदगी को नया रूप दे गए। उस यात्रा में हमने बहुत कुछ सीखा मैं 20 साल का था जब मैं उस समय बजरंग दल का तहसील संयोजक भी था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नियमित स्वयंसेवक था। और सूचना मिली कि अयोध्या में कारसेवा के लिए चलना है ।बाबा छोटू नाथ स्कूल के पास बगीची में दंडी महाराज रहते थे। उन्होंने मोटिवेट किया कि सब को चलना है घर पर आकर जब बताया कि मैं अयोध्या जाऊंगा तो घर वालों ने बहुत मना किया परंतु मेरे पड़ोसी ओमप्रकाशजी तिवारी, मेरा मित्र श्याम खत्री, छगन प्रजापत, प्रभुजी भार्गव, पहलाद जी,मोहता सहित करीब 25..30 व्यक्ति तैयार हो गए। हम 30अक्टूबर की रात को नोखा से बस द्वारा बीकानेर पहुंचे वहां शकुंतला भवन में हमने खाना खाया। हमें वहां सारी चीजें बताइ के सफर में हमें कैसे क्या करना है। ट्रेन द्वारा हमें दिल्ली पहुंचाया गया। दिल्ली से हम लखनऊ की ट्रेन से रवाना हुए। पूरी ट्रेन में कारसेवक ही कारसेवक थे बहुत आनंद आ रहा था। सब अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए थे। परंतु हमें लखनऊ से पहले ही उतरने की सूचना मिली। क्योंकि लखनऊ में अर्ध सैनिक बलों ने रेलवे स्टेशन को घेर रखा था हमने रास्ते में ही ट्रेनों को रोक रोक कर खेतों में उतरे खेतों में गन्ने, चावल की बिजाई हो रखी थी। हम खाकी वर्दी से बचते बचते खेतों में से गलियों में से निकलते गए ।सुखद अनुभव यह था कि हर कोई हमारा सहयोग कर रहा था। हमारे पास सिर्फ एक जोड़ी कपड़े थे ।उसके अलावा कुछ भी नहीं था। हमें कहीं खाने को मिल जाता कभी नहीं मिलता फिर भी हमारे मन में एक जुनून था कि हम यह कार्य करके ही रहेंगे। मुश्किल भरा सफर था परंतु हमारे हौसले बुलंद हैं। स्कूलों में गांव वाले महिलाएं बच्चे सेवा के लिए तैयार खड़े थे । रास्ते भी वही बताते थे जो हमारे बुजुर्ग कार सेवक थे उन्हें तो मोटरसाइकिल पर छोड़कर आते थे। पुलिस की शक्ति थी और ।हम किसी तरह लखनऊ पहुंचे वहां एक धर्मशाला में हम ठहरे चारों तरफ कर्फ्यू लगा हुआ था ।सड़कों पर सिर्फ अर्धसैनिक बल के जवान थे निर्देश था कारसेवकों को देखते ही गोली मार दो । परिंदा भी पर नहीं मार सकता फिर भी हम लोग किसी तरह उनकी आंखों से बचते हुए बच्चे बचाते गलियों में घरों में से होते हुए सरयू की तरफ रवाना हुए परंतु हमारे हौसले बुलंद हैं। एक बार तो एक दिन तो ऐसा भी था कि हमें दिन भर खाने को कुछ नहीं मिला हालांकि हमें भोजन के पैकेट हर जगह मिलते थे ग्रामीणों ने चारों तरफ व्यवस्था कर रखी थी शाम को हम एक बगेची में पहुंचे तो वहां अंधेरा ही अंधेरा था एक बाबा जी बैठे थे उन्होंने कहा बेटा मेरे पास कुछ नहीं है। मैं तुम लोगों की क्या सहायता कर सकूं तब हमने कहा कि कुछ तो मिलेगा और बाबा जी ने कहा कुछ नहीं मिलेगा हम निराश हो गए क्योंकि हमें जबरदस्त भूख लगी थी सुबह से कुछ खाया हुआ नहीं था पुलिस की शक्ति थी और हम जंगलों में थे तो हमने कहीं से आटे का जुगाड़ किया और इंटों का चुल्हा बनाकर उस पर रोटियां सेकी और वहीं पर एक मिर्ची का पेड़ लगा हुआ था ।वह छोटी-छोटी तीखी मिर्ची तोड़कर हमने खाना खाया व स्वादिष्ट खाना आज भी मुझे याद है ।वह रात और वह खाना कभी भी जिंदगी में नहीं भूल सकते ।हम किसी तरह सरयु नदी तक पहुंच गए सरयू नदी के पास एक पेड़ के नीचे बैठे थे वहां चारों तरफ पुलिस की पुलिस थी या कारसेवक थे हम आगे जाने की योजना बना रहे थे कि हमारे पास गोलियों की बौछार हुई। हमने पेड़ से चिपक कर अपने आप को बचाया ।हमें सूचना मिली कि ढांचा गिरा दिया गया हम बहुत खुश हुए ।हमने चलो एक काम तो हुआ अब भूमि पूजन और रामलला का मंदिर ही बनना रहेगा ।परंतु कानूनी दांव पेच के चलते 30 साल लग गए फिर भी आज इस बात की बहुत खुशी है कि भारत के प्रधानमंत्री रामलला के मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखेंगे हमने जो संकल्प लिया था की सौगंध राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे वह सौगंध पूरी हो रही है। राजेश अग्रवाल नोखा
You have very hard guts sa ☺☺☺
Very hard guts to do this ☺☺☺
ypu have very hard guts sa☺☺☺☺☺☺
👍