गोचर भूमि संरक्षण : धर्म, विज्ञान और राजस्थान के प्रेरणादायक उदाहरण
गोचर यात्रा – 6
गोचर भूमि हमारे देश के ग्रामीण समाज, पारंपरिक आस्था और प्राकृतिक संसाधनों की वह संरचना है, जो न केवल पशु-पालन के लिए, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक उत्तराधिकार के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। जब-जब गोचर भूमि पर संकट आया है, धार्मिक संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों ने मिलकर जन-अभियान की ताकत दिखाई है। बीकानेर, जिसे छोटी काशी के नाम से जाना जाता है, यहां मंदिरों, पंडितों, पुजारियों और ज्योतिषाचार्यों की बड़ी संख्या है। ऐसे में गोचर की रक्षा के लिए इन सभी की भूमिका निर्णायक बन जाती है। इनमें से कई महापुरुष मार्गदर्शन और नेतृत्व की अद्भुत क्षमता रखते हैं, जिनका एक आह्वान जन आंदोलन को अपने परिणाम तक पहुँचाने का सामर्थ्य रखता है।

राजस्थान में गोचर भूमि की स्थिति
राजस्थान पशुपालन और ग्रामीण संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन हाल के वर्षों में गोचर भूमि का अतिक्रमण और अवैध भूमि उपयोग बढ़ गया है। भूमि माफिया, बढ़ती आबादी और भूमि रिकॉर्ड की लचरता ने इस समस्या को और गहरा किया है। बीकानेर और राज्य के अन्य जिलों में हजारों हेक्टेयर गोचर भूमि का आवासीय और व्यावसायिक उपयोग के लिए परिवर्तन भारी चिंता का विषय बना हुआ है।
धार्मिक और सामाजिक आंदोलन : बीकानेर उदाहरण
बीकानेर के शरह नथानिया, गंगाशहर, भीनासर सहित 188 गांवों की ऐतिहासिक गौचर भूमि को मास्टर प्लान 2043 में आवासीय/वाणिज्यिक उपयोग के लिए दिखाए जाने पर आम जनता और धार्मिक संगठनों ने जबरदस्त विरोध दर्ज कराया। 2025 में गोशाला ओरण संरक्षण संघ, साधु-संत, ग्रामीण महिलाएं और किसान हजारों की तादाद में प्रदर्शन-धरनों के लिए सड़कों पर उतरे।
- इस आंदोलन ने स्थानीय प्रशासन और राज्य सरकार तक संदेश पहुंचाया कि गोचर भूमि की अनदेखी सामाजिक और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाती है।
- बीकानेर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी समय-समय पर गोचर भूमि के संरक्षण संबंधित जनहित याचिकाओं पर सख्त निर्देश जारी कर चुके हैं।
- संगठन के अनुसार, महाराजाओं द्वारा संरक्षित किए गए शरह नथानिया जैसी भूमि पर न केवल पाठ्यक्रम और मंदिर-आश्रम का सीधा प्रभाव है, बल्कि हजारों जातीय जंगली जानवर और पक्षियों का आवास भी इन्हीं क्षेत्रों में बना रहता है।
पर्यावरण कार्य और वैज्ञानिक पहल
राजस्थान के बालोतरा जैसे जिलों में जिला प्रशासन ने 11,000 सीड बॉल्स (बीज गोले) से हरियाली बढ़ाने का अभियान चलाया है, जिसमें स्कूल के बच्चे और स्थानीय समाज शामिल हुए। यह न केवल भूमि की उर्वरा क्षमता बढ़ाता है, बल्कि कार्बन अवशोषण, जल संरक्षण और जैव विविधता को भी सुरक्षित करता है।
कानूनी प्रयास और नीतिगत पहल
- सरकारी स्तर पर राजस्थान सरकार ने भूमि अतिक्रमण हटाने, विशेष न्यायालयों और पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल (PLPC) जैसी व्यवस्था बनाई है, लेकिन व्यवहार में निष्पक्ष क्रियान्वयन की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- 1956 के राजस्थान भू राजस्व अधिनियम और 1955 के टीनेंसी एक्ट में गोचर भूमि की सुरक्षा स्पष्ट रूप से दर्ज है। बीकानेर की शरह नथानिया गोचर जैसी संपत्तियों पर उच्च न्यायालय की निषेधाज्ञाएं भी लागू हैं।
स्थानीय केस स्टडी: शरह नथानिया गोचर, बीकानेर
- महाराजा करण सिंह (1676) और महाराजा गंगा सिंह (1909) द्वारा यह भूमि गोवंश के लिए सुरक्षित की गई थी।
- वर्तमान में यहाँ हजारों जंगली जानवर, पक्षियों की अनेक प्रजातियां, और दुर्लभ जैव विविधता संरक्षित है।
- मास्टर प्लान 2043 में जब इसे आवासीय उपयोग हेतु दिखाया गया, तो जिला प्रशासन के कार्यालय के बाहर हजारों ग्रामीणों ने विशाल धरना दिया और आंदोलन ने राज्य भर में जनचेतना फैलाई।
- संरक्षण समिति द्वारा घास-धामण संर्वद्धन, अकाल में आश्रय और जल सरंचना जैसे कार्य किए जा रहे हैं।
समन्वय से सुरक्षा
राजस्थान और विशेषकर बीकानेर के ये उदाहरण दिखाते हैं कि जब धर्म, समाज व विज्ञान एक मंच पर आते हैं, तो गोचर भूमि का संरक्षण केवल ऐतिहासिक जिम्मेदारी नहीं, भविष्य की पीढ़ियों को एक समृद्ध और संतुलित समाज देने का जरिया भी बन जाता है। सिर्फ प्रतीकात्मक आंदोलन नहीं, बल्कि जागरूकता, कानूनी लड़ाई, वैज्ञानिक तकनीक व धार्मिक आस्था—इन सभी के समन्वय से गोचर भूमि का भविष्य सुरक्षित हो सकता है।

