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राजनीतिक दलों और संगठनों की भूमिका: नीति से क्रियान्वयन तक

गोचर यात्रा – 5

गोचर भूमि केवल चरागाह भर नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन, पशुपालन और पर्यावरण का आधार स्तंभ है। गांवों में खेती की उत्पादकता, दुग्ध उत्पादन और जैव विविधता प्रत्यक्ष रूप से गोचर भूमि से जुड़ी होती है। यही कारण है कि गोचर भूमि संरक्षण केवल ग्रामीण समाज की प्राथमिकता नहीं बल्कि राजनीति का भी मूल एजेंडा होना चाहिए। आज बीडीए जिस तरह से बीकानेर के गोचर का अधिग्रहण कर जैव विविधता की कीमत पर विकास की तस्वीर दिखाना चाहता है, वह केवल जमीन हड़पने की नीति नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से खिलवाड़ है। यही राजनीति की असली परीक्षा है कि क्या जनप्रतिनिधि और दल वोट बैंक की खातिर चुप रहेंगे या फिर साहस दिखाकर गोचर, गाय और गांव की रक्षा के लिए खड़े होंगे।

आज स्थिति यह है कि चुनावी घोषणापत्रों में किसान और पशुपालन के नाम पर वायदे तो किए जाते हैं, लेकिन गोचर भूमि संरक्षण पर ठोस नीतिगत कदम अक्सर गायब रहते हैं। यदि राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने प्रमुख एजेंडे में शामिल करें, तो न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी सुरक्षित रहेगा।

स्थानीय जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी

गांव और नगर स्तर पर चुने गए जनप्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्हें चाहिए कि:

  • पंचायत बजट में गोचर भूमि संरक्षण के लिए विशेष मद (फंड) सुनिश्चित हो।
  • अतिक्रमण हटाने और भूमि के पुनरुद्धार के लिए ठोस कार्ययोजना बने।
  • राजस्व अभिलेखों में गोचर भूमि की सही पहचान और सीमांकन कराया जाए।

केवल कागजों पर घोषणा से समाधान नहीं होगा, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस पहल करनी होगी।

राज्य और केंद्र सरकार की नीतियां

सरकारी स्तर पर विशेष योजनाएं और कानून बनाए जा सकते हैं, जैसे:

  • गोचर भूमि संरक्षण हेतु राज्य स्तरीय प्राधिकरण का गठन।
  • प्रत्येक जिले में गोचर भूमि पुनरुत्थान अभियान चलाना।
  • चारागाह विकास हेतु मनरेगा जैसी योजनाओं से बजट जोड़ना।
  • केंद्र स्तर पर ‘राष्ट्रीय गोचर भूमि संरक्षण मिशन’ की शुरुआत करना।

NGOs और सामाजिक संगठनों की भागीदारी

गैर-सरकारी संगठन और सामाजिक आंदोलन इस मुद्दे की जनजागरूकता बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। गांव-गांव जाकर लोगों को बता सकते हैं कि कैसे गोचर भूमि का क्षरण भविष्य की पीढ़ियों के लिए खतरा बनेगा। साथ ही, ये संगठन सरकार और राजनीतिक दलों पर दबाव बना सकते हैं कि वे घोषणाओं से आगे बढ़कर ठोस कार्रवाई करें।

निगरानी और पारदर्शिता

राजनीतिक इच्छाशक्ति हो तो पंचायत स्तर पर गोचर भूमि निगरानी समितियां गठित की जा सकती हैं, जिनमें स्थानीय किसान, महिलाएं और युवाओं की भागीदारी हो। इससे अतिक्रमण और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और विकास कार्य पारदर्शी ढंग से हो सकेंगे।

दीर्घकालिक दृष्टि

गोचर भूमि केवल आज की समस्या नहीं है, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के भोजन, पशुपालन और पर्यावरण की जीवनरेखा है। यदि राजनीतिक दल वास्तव में समाज की दीर्घकालिक भलाई चाहते हैं, तो उन्हें गोचर भूमि को संरक्षित करने को लेकर ठोस और कड़े कानून बनाने होंगे।

वोट बैंक की बजाय….

कहने का तात्पर्य है कि जब तक राजनीतिक दल और संगठन इस समस्या को वोट बैंक से जुड़े मुद्दे के बजाय जीवन और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे की तरह नहीं देखेंगे, तब तक परिवर्तन संभव नहीं। यदि नीतियों में गोचर भूमि को प्राथमिकता दी जाए और क्रियान्वयन स्तर पर सख्ती से काम हो, तो भविष्य की पीढ़ियों को सुरक्षित, हरित और समृद्ध ग्रामीण भारत सौंपा जा सकता है।

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