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शिक्षा संस्थानों की भूमिका: नई पीढ़ी से गोचर भूमि का संबंध

गोचर भूमि केवल पशुपालकों का सहारा नहीं है, बल्कि यह हमारी आगामी पीढ़ियों की अमूल्य धरोहर भी है। इसे संरक्षित करना तभी संभव है, जब युवा वर्ग इसके महत्व को समझे और इससे भावनात्मक रूप से जुड़ सके। इस दिशा में शिक्षा संस्थान सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर विशेष अभियान चलाकर विद्यार्थियों को गोचर भूमि की पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक उपयोगिता समझाई जा सकती है। यदि छात्र-छात्राओं को सीधे गाँव की गोचर भूमि पर ले जाकर वहां की वास्तविक परिस्थितियों से अवगत कराया जाए, तो वे न सिर्फ अपनी जड़ों से जुड़ेंगे बल्कि जिम्मेदारी भी महसूस करेंगे। यही युवा जब भविष्य में प्रशासनिक या सामाजिक नेतृत्व की भूमिका निभाएंगे, तो गोचर भूमि संरक्षण के लिए ठोस निर्णय लेने में सक्षम होंगे।

एनएसएस, एनसीसी और स्काउट-गाइड जैसे मंचों के माध्यम से वृक्षारोपण, सफाई अभियान और जल-संरक्षण जैसी गतिविधियों को गोचर भूमि से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ा जा सकता है। वहीं विश्वविद्यालय स्तर पर रिसर्च प्रोजेक्ट्स शुरू किए जाएं, तो यह स्पष्ट किया जा सकेगा कि गोचर भूमि ग्रामीण अर्थव्यवस्था, जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है।

यदि शिक्षण संस्थान गाँवों में समय-समय पर ‘गोचर जागरूकता शिविर’ आयोजित करें, तो ग्रामीण समाज भी इस आंदोलन से मजबूती से जुड़ेगा। जब नई पीढ़ी गोचर को अपने पूर्वजों की धरोहर मानकर उसकी रक्षा को जीवन का संकल्प बनाएगी, तभी इस भूमि का वास्तविक और स्थायी संरक्षण संभव होगा।

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