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गोचर भूमि संरक्षण के लिए प्रशासन से ठोस पहल की मांग

गोचर भूमि केवल पशुओं की चराई का साधन ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और समाज के लिए जीवनदायिनी भूमिका निभाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसका संरक्षण और प्रबंधन प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।

जानकारों का कहना है कि सबसे पहले बीकानेर की गोचर भूमि का स्पष्ट सीमांकन और डिजिटल रिकॉर्डिंग अनिवार्य है। इससे अतिक्रमण पर रोक लग सकेगी और भूमि का वैज्ञानिक प्रबंधन संभव होगा। इसके बाद इन क्षेत्रों में उपयुक्त घास व वृक्षों का रोपण तथा जल संचयन के लिए तालाब और कुंड बनाने जैसे कार्य किए जाने चाहिए।

विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसके लिए प्रशासन को अलग से बजट खोजने की जरूरत नहीं है। मनरेगा, अमृत सरोवर, जल जीवन मिशन और अन्य सरकारी योजनाओं के तहत उपलब्ध फंड का उपयोग करके गोचर भूमि को संरक्षित और विकसित किया जा सकता है। पर्याप्त चारा और पानी मिलने से पशुधन सशक्त होगा, किसानों का बोझ घटेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।

लेकिन चिंता इस बात की है कि विकास परियोजनाओं और शहरीकरण के नाम पर प्रशासन स्वयं ही गोचर भूमि का अधिग्रहण कर रहा है और उन्हें कंक्रीट के जंगल में तब्दील करने पर आमादा है। स्थिति यह हो गई है कि “मांझी जो नाव डूबोए तो उसे कौन बचाए… ।” जब संरक्षण की जिम्मेदारी निभाने वाला ही विनाश का रास्ता चुने, तो फिर जैव विविधता के संरक्षण के लिए आमजन को जागरूक करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।

विशेषज्ञों का कहना है कि इसका खामियाजा अंततः पूरे समाज को चुकाना पड़ेगा। बीकानेर का आमजन भी मांग करता है कि प्रशासन एक व्यवस्थित कार्ययोजना बनाकर गोचर भूमि के संरक्षण को प्राथमिकता दे। उनका कहना है कि यदि यह कदम उठाया गया तो गोचर भूमि केवल पशुधन के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए आर्थिक और पर्यावरणीय सुरक्षा की गारंटी बन सकती है।

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