44 दिन की निराहार तपस्या: लाभचंद आंचलिया की विलक्षण साधना बना तपोमय प्रेरणा स्रोत
बीकानेर। गंगाशहर के पुरानी लाइन निवासी तपस्वी लाभचंद आंचलिया की चवालीस दिनों से निरंतर चल रही निराहार तपस्या आध्यात्मिक साधना का बेजोड़ उदाहरण बन चुकी है। इस भौतिकवादी युग में जहाँ एक दिन उपवास करना भी कठिन माना जाता है, वहीं 63 वर्षीय लाभचंद आंचलिया ने केवल उबला हुआ जल वह भी सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच लेकर 44 दिन से बिना अन्न-जल ग्रहण किए तपस्या कर समाज को चमत्कृत कर दिया है।



तपस्वी भाई के स्वास्थ्य में अनुकूलता बनी हुई है और वे आगे भी तपस्या जारी रखने के भाव में हैं। उनका यह कठिन व्रत मन की दृढ़ता, आत्मबल, और संयम का जीवंत प्रतीक बन चुका है।
तपस्या को धर्मशास्त्रों में मोक्ष मार्ग का चौथा पथ बताया गया है और कहा गया है कि पूर्व संचित कर्मों का क्षय तपस्या से ही संभव है। रसनेन्द्रिय पर विजय पाकर भोजन की उपस्थिति में भी उससे आसक्ति हटाकर निराहार रहना अद्वितीय और अत्यंत दुर्लभ तप है।
इस विलक्षण साधना में उन्हें परम पूज्य आचार्य महाश्रमण के मंगल आशीर्वाद के साथ-साथ गंगाशहर में विराजित मुनि कमलकुमार, मुनि श्रेयांसकुमार, साध्वी विशदप्रज्ञा, साध्वी लब्धियशा सहित सभी संतों का मार्गदर्शन व प्रेरणा प्राप्त हो रही है।
धर्मेंद्र डाकलिया ने जानकारी देते हुए बताया कि गंगाशहर के सभी संतजन नियमित रूप से तपस्वी के निवास पर पहुंचकर दर्शन और सेवा का लाभ उन्हें प्रदान कर रहे हैं। वहीं श्रद्धालुजन भी प्रतिदिन उनके घर जाकर तप अनुमोदना करते हुए अपने भीतर भी कर्म निर्जरा का भाव जगा रहे हैं। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण क्षेत्र में एक तपोमय वातावरण बना हुआ है।
यह उल्लेखनीय है कि लाभचंद आंचलिया तेरापंथ धर्मसंघ के मुनि सुमति कुमार और मुनि रश्मि कुमार के संसार पक्षीय बड़े भाई हैं, तथा मुनि आदित्य कुमार उनके ससुराल पक्ष से संबंध रखते हैं।
यह तपस्वी जीवन न केवल समाज के लिए प्रेरणा है बल्कि साधना, संयम और आत्मशुद्धि का जीवंत उदाहरण भी बन चुका है।