राजस्थान की मूंगफली अर्थव्यवस्था को नई उड़ान देने हेतु कार्यशाला सम्पन्न
उत्पादकता बढ़ाने, प्रसंस्करण और निर्यात संभावनाओं पर विशेषज्ञों ने दिए सुझाव



बीकानेर। स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू), बीकानेर एवं भारतीय कृषि प्रसंस्करण और निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा), नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को “राजस्थान की मूंगफली अर्थव्यवस्था का संवर्धन: व्यवसायिक अवसर, प्रसंस्करण चुनौतियाँ, मूल्य संवर्धन एवं निर्यात संभावनाएँ” विषयक एक दिवसीय मंथन कार्यशाला का आयोजन किया गया।
डीएचआरडी सभागार में आयोजित कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि कार्यशाला में प्राप्त निष्कर्ष मूंगफली आधारित कृषि प्रणाली को वैज्ञानिक, लाभकारी एवं निर्यातोन्मुख बनाने में उपयोगी सिद्ध होंगे।
इस अवसर पर एपीडा के पूर्व बोर्ड सदस्य एवं साउथ एशिया बायोटेक सेंटर, जोधपुर के निदेशक डॉ. भागीरथ चौधरी, एपीडा नई दिल्ली के उप महाप्रबंधक मन प्रकाश, एसकेआरएयू के निदेशक (शोध) डॉ. विजय प्रकाश, कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. टी.के. जोशी, संयुक्त निदेशक कैलाश चौधरी सहित वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुजीत यादव, डॉ. एस.पी. सिंह, डॉ. बी.डी.एस. नाथावत एवं डॉ. नरेंद्र कुमार उपस्थित रहे।
तीन तकनीकी सत्रों में वैज्ञानिकों, कृषि अधिकारियों, उद्योग प्रतिनिधियों, निर्यातकों एवं किसानों ने मूंगफली उत्पादन, रोग प्रबंधन, एफ्लाटॉक्सिन नियंत्रण, प्रसंस्करण एवं विपणन की रणनीतियों पर गहन विचार-विमर्श किया।
डॉ. विजय प्रकाश ने बताया कि भारत में मूंगफली की औसत उत्पादकता 2.0 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि चीन में यह 4.0 टन है। इसे दोगुना करने के लिए उन्नत बीज किस्मों, संतुलित पोषण, सिंचाई प्रबंधन एवं एफ्लाटॉक्सिन-मुक्त उत्पादन तकनीकों को अपनाना होगा। उन्होंने बैग में भंडारण व नमी नियंत्रण जैसे उपायों को भी महत्वपूर्ण बताया।
एफ्लाटॉक्सिन को मूंगफली निर्यात की सबसे बड़ी बाधा बताते हुए वैज्ञानिकों ने बताया कि यूरोपीय देशों में इसकी सीमा <2 पीपीबी तथा अन्य देशों में <15 पीपीबी तय है। इस चुनौती के समाधान हेतु खेत से भंडारण तक सतर्कता बरतने और विश्वविद्यालय स्तर पर पीसीआर या ईएलआईएसए आधारित परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना की जरूरत जताई गई।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया कि उच्च ओलिक अम्ल वाली मूंगफली किस्मों के प्रोत्साहन के तहत राजस्थान में 4000 किसानों को बीज वितरित किए गए हैं। अनुबंध खेती एवं किसान-उद्योग साझेदारी को मजबूती देने पर भी चर्चा की गई।कार्यक्रम के अंत में डॉ. एच.एल. देशवाल ने सभी अतिथियों, वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया।