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1 रुपये में जमीन मिले तो भारत बन सकता है “मैन्युफैक्चरिंग हब”

स्वदेशी को बढ़ावा देने की मुहिम: बीकानेर के उद्योगपतियों ने सुझाए ज़मीन सस्ती देने, टैक्स छूट और प्रक्रियाएं आसान बनाने जैसे उपाय

✍️ राजेश रतन व्यास

बीकानेर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेशी उत्पादों के बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को लेकर की गई अपील को बीकानेर के उद्योगपतियों और कारोबारियों ने हाथोंहाथ लिया है। उनका मानना है कि यदि सरकार उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जमीनी स्तर पर ठोस और व्यावहारिक नीतियाँ लागू करे—जैसे महज़ प्रतीकात्मक मूल्य पर औद्योगिक भूखंड देना, टैक्स में छूट और कागज़ी कार्यवाही को सरल बनाना—तो भारत न केवल आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि ‘ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब’ के रूप में उभर सकता है।

बीकानेर के उद्योग जगत की साझा राय साफ है कि सरकार यदि ज़मीन, टैक्स और प्रक्रियाओं को लेकर बड़ा निर्णय लेती है तो भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में असली क्रांति आएगी। स्वदेशी को सिर्फ नारा नहीं, नीतिगत समर्थन बनाना होगा।

बीकानेर जिला उद्योग संघ के अध्यक्ष डी. पी. पचीसिया ने कहा कि प्रधानमंत्री की यह पहल न केवल स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करेगी, बल्कि देश की आर्थिक नींव को भी मजबूत बनाएगी। उन्होंने कहा, “स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और बेरोजगारी दर में गिरावट आएगी। भारतीय उत्पादों की गुणवत्ता अब किसी परिचय की मोहताज नहीं है—इन्हें आज वैश्विक बाजारों में पहचान मिल रही है। “उन्होंने यह भी जोड़ा कि यदि सरकार नए स्टार्टअप्स के साथ-साथ वर्षों से चल रहे परंपरागत उद्योगों को भी समर्थन दे, तो भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिकाऊ साबित होगा। वर्तमान में अधिकतर नीतियाँ केवल नए उद्योगों को लक्षित करती हैं, जबकि पुराने, अनुभवी कारोबार भी समर्थन के योग्य हैं।

नगद नारायण एग्रो फूड्स प्रा. लि. के निदेशक नारायण दास तुलसानी ने रियासतकाल की मिसाल दी, जब टोकन मनी पर उद्योगों को ज़मीन दी जाती थी, जिसे बेचा नहीं जा सकता था। “आज थाईलैंड में सरकार उद्योग लगाने वालों को सिर्फ ₹1.25 में ज़मीन देती है, लेकिन शर्त होती है – ‘नो रिसेल’। उन्होंने कहा इसी मॉडल को भारत में अपनाने की जरूरत है,” । उन्होंने ग्लोबल प्रतिस्पर्धा पर भी चिंता जताई: “इंडोनेशिया और थाईलैंड में सस्ते ग्लूकोज प्लांट्स की वजह से हमारी स्टार्च इंडस्ट्री संघर्ष कर रही है। एक समय में भारत एक लाख टन स्टार्च एक्सपोर्ट करता था, जो अब घटकर सिर्फ 25 हजार टन रह गया है।”

बंसल ग्रुप के डायरेक्टर सुशील बंसल ने ज़मीनी वास्तविकता पर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि पहले हमें यह विश्लेषण करना होगा कि कौन-कौन से विदेशी उत्पाद हमारी तुलना में सस्ते और गुणवत्तापूर्ण हैं। विशेषकर चीनी उत्पादों की लागत संरचना, उत्पादन नीति और सरकारी सहयोग की गहराई से समीक्षा करनी होगी। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि सरकार इम्पोर्टेड कच्चे माल (Raw Material) पर सब्सिडी दे, तो भारतीय निर्माता भी कम लागत में गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बनाकर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सामना कर सकते हैं।

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