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राजस्थान में इस मक्खी के पालन की असीम संभावनाएं: पेमासर में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित

बीकानेर। विश्व मधुमक्खी दिवस के अवसर पर स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू) से संबद्ध कृषि महाविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग तथा मधुमक्खी पालन बोर्ड, भारत सरकार के संयुक्त तत्वावधान में पेमासर गांव में एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों व विद्यार्थियों को मधुमक्खी पालन के लाभों और संभावनाओं से अवगत कराना था।इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. विजय प्रकाश ने कहा कि राजस्थान में मधुमक्खी पालन की अपार संभावनाएं हैं। यह कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला व्यवसाय है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर भी सृजित करता है। उन्होंने बताया कि शहद उत्पादन में भारत का विश्व में सातवां स्थान है, लेकिन देश में शहद का उपभोग अपेक्षाकृत कम है, जबकि इसके सेवन से शरीर को सूक्ष्म पोषक तत्व मिलते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. पी.के. यादव ने बताया कि पश्चिमी राजस्थान में स्थानांतरण प्रकार के मधुमक्खी पालन की अच्छी संभावनाएं हैं। उन्होंने जानकारी दी कि राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड द्वारा विश्वविद्यालय में 2 मीट्रिक टन क्षमता की “शहद एवं मधुमक्खी छत्ते से प्राप्त उत्पादों की प्रोसेसिंग यूनिट” स्थापित की जा रही है। साथ ही मिनी शहद परीक्षण प्रयोगशाला एवं मधुमक्खी पादप उद्यान का भी विकास किया जा रहा है।प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. नीना सरीन ने किसानों से अपील की कि वे इस तकनीक को अपनाकर आय के नए स्रोत विकसित करें। विश्वविद्यालय किसानों को पूर्ण सहयोग देने के लिए तत्पर है।कीट विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. एच.एल. देशवाल ने बताया कि विभाग को राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन एवं शहद मिशन (एनबीएचएम) के तहत 83.75 लाख रुपये का प्रोजेक्ट स्वीकृत हुआ है। इस परियोजना के माध्यम से उद्यमिता विकास, उत्पाद गुणवत्ता सुधार और मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे वैज्ञानिकों से परामर्श एवं प्रशिक्षण प्राप्त कर योजनाओं का लाभ उठाएं।कार्यक्रम में किसान रामकुमार ने विश्वविद्यालय द्वारा पेमासर में चलाए जा रहे प्रयासों की सराहना की और कहा कि विश्वविद्यालय किसानों और सरकार के बीच मजबूत संयोजक की भूमिका निभा रहा है। इस मौके पर बड़ी संख्या में किसान व विद्यार्थी उपस्थित रहे। वैज्ञानिकों ने किसानों से संवाद करते हुए उनकी शंकाओं का समाधान भी किया। कार्यक्रम का संचालन शंकरलाल खीचड़ ने किया।

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