प्राकृतिक चिकित्सा : पंच तत्वों से आरोग्यता की राह
प्राकृतिक चिकित्सा ही है सत्व चिकित्सा
7 वें राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर विशेष
✍️ डॉ. वत्सला गुप्ता ✍️
भारत वर्ष में पारम्पारिक चिकित्सा पद्धति प्राकृतिक चिकित्सा के नाम से जानी जाती है। जिसे सामान्य रूप से पंच तत्व चिकित्सा कहा जाता है- पंच तत्वों में पृथ्वी तत्व (मिट्टी), वायु तत्व (हया), अग्नि तत्य (सूर्य), जल तत्व (पानी), एवं आकाश तत्य आते है। इन सभी तत्वों द्वारा शरीर में संतुलन बनता है तथा शारीरिक, मानसिक, आध्यत्मिक व मनोवैज्ञानिक स्थिति सुव्यस्थित होती है।
7 वें राष्ट्रीय प्राकृतिक चिकित्सा दिवस की सार्थकता तभी सिद्ध होती है. जब हम प्रकृति द्वारा दी गई समस्त सामग्रियों का उपयोग कर स्वास्थ्य के लिए जागरूक हो पाते है। प्राकृतिक चिकित्सा का नाम आते ही प्रकृति की दी हुई समस्त सामग्रियों का आभास हमें होना स्वभाविक है जैसे मिट्टी प्रकृति ने दी है, हवा प्रकृति की देन है. पानी प्रकृति से प्राप्त है, आकाश प्रकृति का अहसास देता है तथा सूर्य और किरणे में भी प्रकृति के ही घोतक है।
इस प्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर हम प्रकृति द्वारा दिये गये अग्नि तत्व (सूर्य किरण चिकित्सा) की चर्चा करेगे चूकि सूर्य प्रकाश चिकित्सा जो प्राकृतिक चिकित्सा में एक अहम् स्थान रखती है, जिसके द्वारा असाध्य रोगों को साधा जा सकता है। प्रकृति ने सात अक को एक विशेष महत्व दिया है-
7 अकं अपने आप में एक सौभाग्य शाली अकं माना जाता है। सात अक के आधार पर सप्ताह के दिनों का नाम रखा गया है। जिसमें सोम् मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, रवि। इन्द्रधनुष में भी सात रंगों का समावेश रहता है, बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, लाल। सप्त ऋषियो की महत्वता अपने आप में अनुठी है। ब्रह्मांड में सात तारों की श्रृंखला को सप्त रिधि मंडल के नाम से जाना जाता है। सप्त ऋषि कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज है। शरीर में सात चक्रों की प्रधानता होती है- (मूलधारा चक्र, सविस्थान चक्र, सहसररा चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, अजना चक्र)
संसार में सात महाद्वीप है तथा सात समुद्रों का मिलाप भी प्रकृति ने हमे दिया है और संगीत में भी सात सुरो का संगम होता है। (सा. रे. ग. म. प. घ. नि.)
अतः 7 अंक की महत्वता को देखते हुए 7 वें प्राकृतिक चिकित्सा दिवस पर रंगों की विशेषता जो कि प्राकृतिक चिकित्सा में अनूठी है, को जानना और अपनाना अत्यधिक आवश्यक और अनिवार्य है। रंगों की प्राप्ति प्रकृति द्वारा सूर्य से प्राप्त हुई, जिसे सूर्य किरण चिकित्सा कहा जाता है। आज के प्रकल्प में कोमोथैरेपी के नाम से जाना जाता है। रेडियेशन थेरेपी भी किरणों द्वारा दी गयी चिकित्सा ही है जो कि कैंसर जैसे असाध्य रोग में सबसे सफल और उपयोगी मानी जा रही है। परन्तु इन सभी थैरेपी और उपचारों का आधार रंग व किरणें है जो प्राकृतिक रूप से हमे सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होती है।
सूर्य नमस्कार को योग में सर्वप्रथम स्थान दिया है तथा इसे सभी आसनों का राजा माना जाता है।
हमारी संस्कृति में आदि काल से ही सूर्य को देवता मानकर पूजा जाता है तथा ये भी माना जाता है कि सूर्य भगवान साक्षात् हमे स्वास्थ्य वर्धक, रोगनाशक शक्ति तथा ऊर्जावान बनाते है तथा सूर्य देवता एक मात्र देव है जो हम सबके मध्य विधमान है।
शरीर का दीर्घजीवी बने रहना भगवान सूर्य की कृपादृष्टि है। साथ ही प्रातः कालीन उठकर सूर्य की किरणों को ग्रहण करना या पान करना अदभुत शक्ति और प्राणवान बनाने के सहयोगी है।
सूर्य रश्मियों के दैनिक प्रयोग से व्यक्ति को वात्-पित्-कफ संबंधि रोगों से निजात मिलती है।
सूर्य किरण चिकित्सा में प्रत्येक रंग का अपना एक महत्व होता है, जैसे:-
लाल रंगः सूर्य रश्मिपुंज में 80 प्रतिशत केवल लाल किरणे और तीव्र लाल किरणे होती है, जिन्हे (Infra Red Rays) कहते है। स्नायु मण्डल को उतेजित करना इसका विशेष कार्य होता है। लाल रंग गर्मी बढ़ाता है। यह रंग वायु से जोड़ों का दर्द, सर्दी का दर्द सूजन मोच, लकवा तथा मालिश हेतु उपयोग में लाया जाता है।
नारंगी रंगः यह रंग भी गर्मी बढ़ाता है। ये पुराने रोगों के लिये, नसों की बीमारी और लकवा आदि वात-व्याधियों के लिए एक औषधि है।
पीला रंगः सूर्य प्रकाश चिकित्सा में वात का रंग पीला माना जाता है, यह रंग-पेट, जिगर, तिल्ली, फेफड़ो, हदय रोगों में पीले रंग की बोतल में तप्तजल थोड़ा-थोड़ा कुछ दिनों तक पीने से लाभ मिलता है।
हरी किरणेः– हरा रंग स्वभाव से मध्यम है। आंख, त्वचा के रोगों में विशेष उपयोगी है। यह रंग भूख बढ़ाने, चर्म रोगों के लिए, कटि व मरूदण्ड के निचले भाग के कष्टो को दूर करने वाला होता है।
आसमानी रंगः– यह रंग ठंडक और शान्तिदायक होता है। गर्मी की अधिकता वाले रोगों जैसे ज्वर, अतिसार, संग्रहणी, मस्तिष्क रोग, पथरी, मूत्र विकार आदि में यह रंग लाभकारी होता है। यह रंग सब रोगों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। यही कारण है कि समस्त आकाश का रंग प्राकृतिक रूप से नीला-आसमानी दिखाई देता है. इस रंग से जीवनी शक्ति प्राप्त होती है। आसमानी किरण तप्तजल पौष्टिक है और ताकत प्रदान करता है।
नीला रंगः यह रंग पेट संबंधि रोग और ज्वर (बुखार) रोग को ठीक करने में सहायक होता है। ताकत पहुंचाने वाला किटाणु नाशक, गले के रोग, मुंह के छाले आदि में उपयोगी है।
बैंगनी किरणें- यह नीले रंग की तरह शीतल है, तडक प्रदान करता है, यह रंग भी ताप को कम करने में गुणकारी है, हदय की धड़कन, मस्तिष्क दौर्बल्यता आदि में बैंगनी तत्पजल लाभ करता है।
सफेद किरणें:- ये सात रंगों का मिश्रण है। सूर्य तथा सफेद किरणे साधारण पानी की तरह हर समय लिया जा सकता है। यह किटाणु विहिन होता है, इसमें कैल्शियम और पौष्टिक तत्वों की विधमानता होती है। हड्डी टूटने पर जुड़ने में सहायक सिद्ध होता है।
इस प्रकार यह कहा जाता है कि शरीर के प्रत्येक अंग पर अलग-अलग रंगों का प्रभाव पड़ना स्वाभिविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया जो कि सूर्य प्रकाश चिकित्सा में हमें प्राप्त होती है यह है “सूर्य स्नान (Sun Bath)” जिसमें सम्पूर्ण शरीर पर सूर्य के प्रकाश व किरणों का सेवन दिया जाता है तथा शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स एवं मिनरल (लवण) का समावेश होना अत्यधिक स्वस्थ्य वर्धक एवं रोग नाशक होता है।
सूर्य प्रकाश चिकित्सा द्वारा स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि आप हर समय धूप या किरणों का सेवन ही करो वरन् प्रतिदिन प्रातः काल 10-20 मिनट बदन पर सूर्य का प्रकाश लेना अति लाभप्रद और प्रभावशाली है।
सूर्य की धूप में विटामिन ‘डी’ भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है जिससे हड्डियों से संबंधित रोगों का निवारण, चर्म रोगों से निजात् नैसर्गिक सौन्दर्य कांतिमय त्वचा तथा आरोग्यता प्रदान होती है।
हमें प्रकृति ने अद्भुत, अलौकिक और असीमित स्त्रोत सूर्य प्रकाश से सुसज्जित किया है, अतः प्राकृतिक चिकित्सा विधियों और उपचारों द्वारा शरीर को आरोग्यता देना, ऊर्जावान बनाना, बलवर्धक और पूर्ण स्वस्थ्यता देना हमारा परम कर्तव्य है।
(लेखिका : डॉ वत्सला गुप्ता, चिकित्सा अधिकारी राजस्थान प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र, गंगाशहर, बीकानेर)