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केंद्रीय भूजल बोर्ड ने रीको लि. पर लगाया 276 करोड़ का पर्यावरणीय जुर्माना

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बीकानेर के कार्यकर्ता की याचिका पर NGT की सख्त कार्रवाई

बीकानेर । केन्द्रीय भूजल बोर्ड, जयपुर ने रीको लिमिटेड पर 276 करोड़ रुपये का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया है। यह मामला बीकानेर के सामाजिक कार्यकर्ता की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) भोपाल द्वारा उठाया गया। आरोप है कि रीको ने विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में बिना अनुमति ट्यूबवेल और बोरवेल का उपयोग करते हुए अवैध रूप से भूजल का दोहन किया।

मामले का पृष्ठभूमि:

केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की 1997 की अधिसूचना के अनुसार भूजल के दोहन के लिए अनुमति आवश्यक है। इस याचिका में दावा किया गया कि रीको ने 409 औद्योगिक क्षेत्रों में बिना अनुमति के 432 ट्यूबवेल/बोरवेल से भूजल का दोहन किया है। साथ ही, औद्योगिक इकाइयों को 15mm से लेकर 80mm की पाइप लाइनों के माध्यम से पानी की आपूर्ति की गई।

ज्वाइंट कमेटी रिपोर्ट:

10 जुलाई 2024 को पेश की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ:

रीको ने 112 क्षेत्रों में बिना एनओसी लिए ट्यूबवेल संचालित किए, जिसमें से कुछ आवेदनों को खारिज कर दिया गया है।

102 औद्योगिक क्षेत्रों में जलापूर्ति पीएचईडी द्वारा की जा रही है, जबकि 182 क्षेत्रों में किसी भी एजेंसी द्वारा पानी की सप्लाई नहीं हो रही।


इस रिपोर्ट के बाद NGT ने भूजल बोर्ड को आदेश दिया कि वह पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत रीको पर कार्रवाई करे। 19 सितंबर 2024 को केन्द्रीय भूजल बोर्ड ने रीको पर 276 करोड़ रुपये का जुर्माना और पर्यावरणीय मुआवजा आरोपित किया।

कलेक्टरों और PHED को नोटिस:

भूजल बोर्ड द्वारा सभी संबंधित जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए गए कि वे जुर्माने की वसूली सुनिश्चित करें।

खैरथल-तिजारा क्षेत्र के अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने संबंधित उपखंड अधिकारियों को निर्देश जारी किए कि रीको द्वारा औद्योगिक प्रयोजन के लिए बिना अनुमति पानी सप्लाई के मामलों में कार्यवाही की जाए।


आगे की सुनवाई और विशेष बैठक का निर्देश:

NGT की ओर से 8 नवंबर 2024 को PHED को भी मामले में पार्टी बनाया गया। अगली सुनवाई 23 जनवरी 2025 को होगी। भूजल बोर्ड ने रीको प्रबंधन और संबंधित क्षेत्रीय परियोजना प्रस्तावकों के साथ बैठक कर अवैध दोहन को रोकने के निर्देश भी दिए।

पर्यावरणीय संरक्षण का असर:

यह कार्रवाई औद्योगिक क्षेत्रों में भूजल संरक्षण के सख्त नियमों की ओर इशारा करती है। बीकानेर के सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिका से यह मामला उठाया गया, जो पर्यावरणीय नियमों के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।

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