देश में एक खामोश गाँव जिसे साइलेन्ट विलेज के नाम से जाना जाता है
बीकानेर । मीसो (महावीर इंटरकॉन्टिनेंटल सर्विस ऑर्गेनाइजेशन ) के अंतरराष्ट्रीय महासचिव वीर लोकेश कावड़िया और राजकुमार गोस्वामी द्वारा इस गाँव में जा कर मुखिया मोहम्मद हनीफ जो पूर्व सरपंच और ब्लॉक डेवलपमेंट चेयरमैन भी रह चुके हैं से भेंट की।
जम्मू से 260 किलोमीटर दूर डोडा जिले के धड़कई गाँव को ‘शांत गाँव’ के रूप में भी जाना जाता है। यह आदिवासी गाँव अलग- अलग पहाड़ियों पर बसा होने के कारण इनके घर दूरियों पर स्थित हैं। इन सभी परिवारों में कम से कम एक या अधिक सदस्य ऐसे हैं जो न तो सुन सकते हैं और न बोल सकते हैं।
गाँव के मुखिया मोहम्मद हनीफ के अनुसार, धड़कई गाँव में यह समस्या पहली बार 1901 में देखी गई थी, जब यहाँ मूक-बधिर व्यक्ति का पहला मामला सामने आया था। मोहम्मद हनीफ ने कहा, यहाँ माता-पिता इस बात से चिंतित नहीं हैं कि वे लड़का पैदा करेंगे या लड़की। उन्हें बस यही डर है कि उनका बच्चा बहरा और गूंगा न हो।
गाँव वालों के पास जन्म के समय बीमारी का पता लगाने का एक अचूक तरीका है। हनीफ ने कहा, जब एक सामान्य बच्चा पैदा होता है और नहाता है, तो वह पतली आवाज में रोता है, तीन या छह घंटे बाद अपनी आँखें खोलता है, जबकि एक बहरा और गूंगा बच्चा ‘मोटी आवाज’ में रोता है और दो दिनों तक अपनी आँखें नहीं खोलता। स्वाभाविक रूप से यह गाँव बाकी दुनिया से काफी अलग तरीके से काम करता है। गाँव वालों की पहचान उनके नाम से नहीं बल्कि उनके शरीर पर मौजूद निशानों से होती है।