गुरु पूर्णिमा : “जिसके अंतस का दिया जल गया है-वह गुरु है”
बीकानेर । ओशो मित्र मंडल द्वारा “गुरु पूर्णिमा” के अवसर पर होटल वृंदावन में “ओशो गुरु पूर्णिमा महोत्सव” का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारंभ “सत्संग” और “गुरु वंदना” से हुआ। सत्संग के दौरान ओशो के प्रवचनों को प्रस्तुत किया गया, जिसमें ओशो ने गुरु और शिष्य के महत्व को परिभाषित करते हुए कहा कि “गुरु” शब्द भारत की एक विशिष्ट देन है, दुनिया की किसी भी भाषा में इसके समकक्ष कोई शब्द नहीं है।
ओशो ने समझाया कि गुरु का अर्थ शिक्षक, अध्यापक या व्याख्याता नहीं है। गुरु शब्द दो अक्षरों “गु” और “रु” से बना है, जिसमें “गु” का अर्थ है अंधकार और “रु” का अर्थ है अंधकार को दूर करने वाला। गुरु वह है जिसके अंतस का दिया जल गया है, जिसके भीतर रोशनी जल गई है, जो सूरज बन गया है। गुरु ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक है, जबकि शिष्य अंधकार और अज्ञान का प्रतीक है। विद्यार्थी और शिष्य में भेद है, शिष्य वह है जो प्रेम के संबंध में नहीं, बल्कि प्रेम को जानना चाहता है; जो ईश्वर के संबंध में नहीं, बल्कि ईश्वर को जानना चाहता है; जो सत्य के लिए अपनी गर्दन भी कटवाने के लिए तैयार हो, वही शिष्य हो सकता है।
स्वामी शांति प्रेम (विजय सिंह जी राजपुरोहित) ने बताया कि यह कार्यक्रम “ओशो मित्र मंडल बीकानेर” की तरफ से आयोजित किया गया था, जिसमें सभी ओशो प्रेमी व ओशो सन्यासियों की सहभागिता रही। उन्होंने नृत्य और ध्यान का आनंद लिया।