‘शिक्षा से गायब होते संस्कारों पर मंथन की जरूरत’
👉 *सफल रहा एडिटर एसोसिएशन ऑफ न्यूज पोर्टल्स एवं रोटरी क्लब ऑफ बीकानेर रॉयल्स का एज्युकेशन कॉन्क्लेव*
👉 *शिक्षकों ने गंभीरता से रखे विचार*
बीकानेर। शिक्षा की बेहतरी के लिए क्या प्रयास किए जा सकते हैं? यह प्रश्न शनिवार को बीकानेर जिला उद्योग संघ के सभागार में एडिटर एसोसिएशन ऑफ न्यूज पोर्टल्स एवं रोटरी क्लब ऑफ बीकानेर रॉयल्स के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एज्युकेशन कॉन्क्लेव में चर्चा का विषय बना। संयुक्त प्रयासों से शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने और संस्कारों को फिर से स्थापित करने की दिशा में इस कॉन्क्लेव में महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा हुई। इस कॉन्क्लेव में पधारे शिक्षकों ने बेहद गंभीरता से विचार रखे। प्रस्तुत है उनके विचारों के संपादित अंश :👇
कार्यक्रम का संचालन कर रहे मेहाई स्कूल के प्रमुख किशोर सिंह राजपुरोहित ने कहा कि शिक्षा से संस्कार धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं, और इस पर मंथन की जरूरत है। उन्होंने शिक्षकों और शिक्षार्थियों से अपने दायित्वों को समझने और शिक्षा की दिशा पर चर्चा करने का आह्वान किया।
शांति विद्या निकेतन के रमेश कुमार मोदी ने सुझाव दिया कि शिक्षा को भावना से जोड़कर ही बच्चों के ज्ञान की पूर्ति की जा सकती है।
नालन्दा पब्लिक सीनियर सैकेण्डरी स्कूल के संचालक राजेश रंगा ने कहा कि हम विद्यार्थी को राह दिखाते हैं और उनका जीवन बनाते हैं, लेकिन वर्तमान में सरकारी नीतियां शिक्षा में बाधक बन रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार बदलने पर नीतियां, किताबें और शिक्षा का पैटर्न बदल जाता है, जिसे सही किया जाना चाहिए। उन्होंने निजी स्कूलों के उजले पक्ष को भी उजागर करने की बात कही।
प्रिंसिपल मनोज चुग का मानना है कि पत्रकारिता शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकती है। वे हर साल एक शिक्षक को विशेष रूप से सम्मानित करते हैं, और इस सम्मान का निर्धारण छात्रों की रेटिंग के आधार पर किया जाता है। इसका उद्देश्य शिक्षकों को प्रोत्साहित करना और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना है।
चौधरी सर ने कहा कि उनका उद्देश्य एकलव्य जैसे छात्रों की स्थिति पर चर्चा करना है। उन्होंने सवाल उठाया कि बारहवीं के बाद ऐसे बच्चों के लिए क्या किया जा सकता है और सरकार की अनुप्रति योजना की प्रभावशीलता पर विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि बीकानेर की शिक्षा को विकसित करने के लिए आर्थिक रूप से पिछड़े बच्चों की शिक्षा पर ध्यान देना आवश्यक है।
आईसीएआई बीकानेर ब्रांच के चेयरमैन, सीए जसवंत सिंह बैद ने एडिटर एसोसिएशन ऑफ न्यूज पोर्टल्स के ऐतिहासिक आयोजन के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि आज शिक्षा और धन तो प्राप्त हो रहे हैं, लेकिन इनके साथ आवश्यक संस्कार और सेहत की कमी नजर आ रही है। इसे दूर करने के लिए मोटिवेशनल स्पीकर्स की व्यवस्था की जानी चाहिए और शिक्षा को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखना चाहिए।
अहर्म स्कूल के प्रमुख सुरेंद्र डागा ने कहा कि आज के समय में छात्रों के कौशल विकास पर काम करना आवश्यक है। उन्होंने यह भी बताया कि उनका स्कूल इस प्रकार के नवाचारों के लिए पूरी तरह तैयार है।
शिक्षक गिरिराज खैरीवाल ने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों का शिक्षा जगत में बड़ा सामाजिक सहयोग है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि कुछ लोग कोचिंग के नाम पर स्कूल खोल रहे हैं और नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने ‘स्वच्छ शिक्षा’ नाम से एक अभियान शुरू किया है और चाहते हैं कि मीडिया भी इस मुद्दे को समझे। उन्होंने सरकारी स्कूलों में किताबों की कमी की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि इसके विपरीत, निजी स्कूल समय पर किताबें उपलब्ध करवाती हैं।
मोटिवेशनल स्पीकर चक्रवर्ती नारायण श्रीमाली ने कहा कि “कॉन्क्लेव” एक बहुत गहरा शब्द है और किसी विषय पर गहन अध्ययन किए बिना राय नहीं बनानी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमें व्यक्ति, विचार, व्यवहार और संस्कार को समझने की आवश्यकता है। साथ ही, सकारात्मकता को महत्व देने की बात कही। श्रीमाली ने सुझाव दिया कि समाज में स्थापित धारणाओं को बदलने का प्रयास करना चाहिए।
फिजिक्स टीचर जगदीश सेवग ने कहा कि आज के समय में प्रतियोगिता बहुत बढ़ गई है। उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों के लिए एक संगठित स्कूलिंग प्रोग्राम तैयार किया जाए ताकि वे भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकें। यदि बच्चों को छोटे स्तर पर ही सही तरीके से तैयार किया जाएगा, तो वे आगे जाकर अच्छे परिणाम दे सकेंगे और प्रतियोगिता में सफल हो सकेंगे। इसके अलावा, उन्होंने बच्चों को वैचारिक प्रदूषण से बचाने पर भी जोर दिया।
जॉनी सर ने कहा कि हमें बच्चों की क्षमताओं को समझने की जरूरत है और उन पर अत्यधिक अपेक्षाएं न रखें। समाज में उस प्रकार की शिक्षा आवश्यक है जो बच्चों को उनकी सामर्थ्यों और रुचियों के अनुसार सही दिशा में प्रेरित कर सके। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि हमें शिक्षा और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में बदलाव करने की आवश्यकता है, ताकि सोच में भी परिवर्तन आ सके।
शांतनु सर ने कहा है कि समाज में बच्चों पर अधिक दबाव डाला जा रहा है, जिससे उनकी स्वतंत्रता और स्वयं निर्णय पर प्रतिबंधित हो रहा है। बच्चों को अपने पसंदीदा क्षेत्र में अपनी पसंदीदा गतिविधियाँ चुनने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। वह उदाहरण देते हैं कि जापान में बच्चों को उम्र के हिसाब से उचित काम सिखाया जाता है, जिससे उनकी स्वावलंबना और कौशल विकसित होते हैं। इसलिए, हमें बच्चों को प्रेरित करना चाहिए कि वे अपनी प्राथमिकताओं और रुचियों के अनुसार अपने रूचिकर्म चुनें और इनमें उन्हें समर्थित करें।
एन्ग्रामर्स इंस्टिट्यूट के हिमांशु व्यास ने कहा कि आजकल व्यक्तियों में सोचने की क्षमता कमजोर हो रही है और अधिकांश लोग सोच के बिना ही काम करने को प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने बच्चों में सोचने की क्षमता को विकसित करने की आवश्यकता बताई है। साथ ही, उन्होंने यह भी उजागर किया कि स्किल विकास बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सिर्फ शिक्षा ही काफी नहीं है, वरन् व्यक्ति को व्यावसायिक और व्यक्तिगत स्तर पर तैयार करने के लिए स्किल्स की भी आवश्यकता होती है। इसलिए, उन्होंने व्यक्तिगतता विकास कार्यक्रम भी आयोजित करने की बात की है, ताकि बच्चे न केवल स्किल्ड बल्कि अपनी व्यक्तित्व को भी समृद्ध कर सकें।
एन्ग्रामर्स इंस्टिट्यूट के प्रमुख पुखराज प्रजापत ने कहा कि हमें स्टूडेंट्स के सॉफ्ट स्किल्स के विकास पर जोर देना चाहिए। उन्होंने इस बात को उजागर किया कि स्टूडेंट्स को इंडस्ट्री के साथ कनेक्ट करने की आवश्यकता है, ताकि उन्हें वास्तविक काम के माध्यम से सीखने का अवसर मिल सके। वह यह भी बताते हैं कि नई नौकरी में आने वाले फ्रेशर्स को ट्रेंड्स और प्रक्रियाओं को समझने में वक्त लगता है, जो कि उनकी पेशेवर विकास में विलंब का कारण बन सकता है।
गांव से आए शिक्षक हरिश गोस्वामी ने कहा कि छोटे बच्चों का बैग हल्का होना चाहिए यानि शिक्षा एक्टिविटी बेस्ड होनी चाहिए। बच्चों में रूचि पैदा करने वाली टीचिंग होनी चाहिए।
नौरंगदेसर की सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल सविता अग्रवाल ने कहा है कि आजकल बच्चों में दो प्रकार की समस्याएं दिखाई दे रही हैं – एक ओर अत्यधिक आत्मविश्वास और दूसरी ओर आत्मविश्वास की कमी। उनका मानना है कि दोनों ही स्थितियां नकारात्मक हैं। अत्यधिक आत्मविश्वास वाले बच्चे अक्सर असली योग्यताओं को समझने में विफल हो सकते हैं, जबकि आत्मविश्वास की कमी वाले बच्चे अपनी सीमाओं में रहकर विकास के अवसरों से वंचित रह सकते हैं।
उन्होंने सरकारी नीतियों की भी समीक्षा की है और कहा है कि सरकारी नीतियां हर स्थिति में गलत नहीं होतीं, लेकिन उनमें सुधार की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि वे सरकारी नीतियों के साथ जुड़े हुए हैं, लेकिन उन्हें यह भी महसूस होता है कि कुछ नीतियां बदलने की आवश्यकता है ताकि वे समाज के विभिन्न पहलुओं में समर्थ हो सकें।
गांव जयसिंहदेसर के सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल संज्ञा मैडम ने कहा कि हमारी कर्मठता में कुछ कमी है। सरकारी स्कूल में बच्चों के स्कूल बैग हल्के हैं। टीचर्स सही ढंग से यूटीलाइज नहीं करते हैं और जबकि निजी स्कूल टीचर्स सही ढंग से करते हैं अभिभावकों की अपेक्षाएं हैं तो बहुत सारे मल्टीस्पेशल्टी सब्जेक्ट हैं उन पर विचार कर सकते हैं। करियर काउंसलिंग सही तरीके से हो तो ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिभाएं भी निकलेगी।
कॉन्सेप्ट इंस्टिट्यूट के प्रमुख भूपेन्द्र मिढ्ढा ने इस बात पर जोर दिया कि आजकल बच्चे इंटरनेट पर बहुत कुछ सर्च करते हैं और तेजी से काम करना चाहते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में वे सीखने का आनंद नहीं ले पाते। उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों की मानसिकता को सही तरीके से समझा नहीं जा रहा है और केवल अंकों पर ध्यान दिया जा रहा है। बच्चों को तनाव प्रबंधन सिखाना आवश्यक है और उन्हें इंटरनेट से दूर रखना चाहिए। इसके अलावा, अगर शिक्षकों का माता-पिता के साथ अच्छा संबंध हो जाए, तो बच्चों के विकास में आने वाली रुकावटें कम हो सकती हैं और बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
श्री डूंगरगढ़ से आए शिक्षक शहजाद अली कादरी ने शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी स्कूल में अकेले शिक्षक हैं और उन्हें 219 बच्चों की शिक्षा का जिम्मा संभालना पड़ता है। इसके बावजूद उन्हें केवल 16,200 रुपए का मानदेय मिलता है। कादरी ने सरकार से इस स्थिति पर ध्यान देने और सुधार करने की अपील की है।
शारीरिक शिक्षक ज्योति प्रकाश रंगा ने कहा कि बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षक और अभिभावकों को मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीविकोपार्जन (कमाने) और शिक्षा को अलग-अलग रखना जरूरी है। आजकल बच्चों के अंक तो बढ़ रहे हैं, लेकिन उनका व्यवहारिक विकास कम हो रहा है। इस पर विचार करना जरूरी है। हर बच्चा अपने आप में अनूठा और सर्वश्रेष्ठ होता है, इसलिए बच्चों से संवाद और संचार करना महत्वपूर्ण है।
होटल वृंदावन रेजीडेंसी के प्रमुख गोपाल अग्रवाल ने एडिटर एसोसिएशन ऑफ न्यूज पोर्टल्स के कार्यक्रम की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि शिक्षा के बिना विकास और चिकित्सा के बिना जीवन अधूरा है। मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है और सरकार भी जागरूक हो रही है। अभिभावकों को भी जागरूक होना चाहिए और शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए। इसके साथ ही, शिक्षकों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि शिक्षार्थी और शिक्षक का अनुपात सही हो।
यह रहें मुख्य सहयोगी
एज्युकेशन कॉन्क्लेव के मुख्य सहयोगी के तौर पर रोटरी क्लब ऑफ बीकानेर रॉयल्स, कॉन्सेप्ट इंस्टिट्यूट, प्रेम मिष्ठान भंडार, एलिक्जर कैरियर इंस्टिट्यूट, जिला उद्योग संघ, लघु उद्योग भारती बीकानेर इकाई, एनग्रामर्स इंस्टिट्यूट और जूही फ्लॉवर्स, जॉनी साधवानी सर, शांतनु सर एवं जगदीश सेवग सर, समाज सेवी महावीर रांका, एम्पोरियो-द यूनिट ऑफ बेबी हट की भूमिका रही।