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ऐसे तो कभी सफल नहीं हो पाएगा नशामुक्ति अभियान

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बीकानेर। सरकारों का दोगलापन अब उजागर हो रहा है। एक ओर जहां सरकारें नशामुक्ति अभियान चला रही हैं, वहीं दूसरी ओर शहर में तेजी से शराब की दुकानें खुल रही हैं। यह विरोधाभास समाज में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है और सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े कर रहा है। गली मोहल्लों में खुल चुके शराब के ठेकों के खिलाफ आमजन द्वारा आए दिन प्रदर्शन किए जा रहे हैं, लेकिन सरकारें ठेकेदारों के साथ खड़ी नजर आती हैं। सूरतगढ़ के पूर्व विधायक रहे स्वर्गीय गुरुशरण छाबड़ा प्रदेश में शराबबंदी के लिए प्राण त्याग चुके हैं और अब उनकी पुत्र वधु पूजा छाबड़ा शराबबंदी आंदोलन की अगुवाई कर रही हैं। सरकार के नशामुक्ति आंदोलन को आइना दिखाने के लिए ये उदाहरण पर्याप्त हैं। यहां सवाल खड़ा होता है कि नशामुक्ति आंदोलन के आयोजन करवा रही सरकारें आखिर क्यों इन आंदोलनकारियों के साथ खड़ी होती नजर नहीं आ रही हैं। नशामुक्ति अभियान में कहीं भी शराब की दुकानें बंद करने का कार्यक्रम शामिल नहीं हैं। क्या सरकारें शराब को नशा मानतीं नहीं हैं?

### नशामुक्ति अभियान का असली मकसद

सरकारें नशामुक्ति अभियान के माध्यम से लोगों को नशे की लत से मुक्त करने का प्रयास कर रही हैं। यह अभियान स्कूलों, कॉलेजों और ग्रामीण क्षेत्रों में जोर-शोर से चलाया जा रहा है। जागरूकता रैलियों, कार्यशालाओं और प्रचार सामग्री के माध्यम से लोगों को नशे के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

### शराब की दुकानों की बाढ़

लेकिन इसके विपरीत, शहर में शराब की दुकानों की संख्या में वृद्धि हो रही है। नए लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं और मौजूदा दुकानों का विस्तार हो रहा है। यह स्थिति सरकार की नीतियों की गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। आखिरकार, यदि नशामुक्ति अभियान को सफल बनाना है तो शराब की दुकानों की संख्या में कमी होनी चाहिए, न कि वृद्धि।

### विरोधाभासी नीतियों का परिणाम

इस तरह की विरोधाभासी नीतियों का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि समाज में गलत संदेश जाता है। सरकार का यह दोहरा रवैया लोगों के बीच भ्रम और असमंजस की स्थिति पैदा करता है। एक ओर वे नशामुक्ति की बातें सुनते हैं और दूसरी ओर शराब की दुकानें उनके सामने खुलती रहती हैं। इससे नशामुक्ति अभियान की विश्वसनीयता पर आंच आती है।

### समाधान की दिशा में कदम

सरकार को चाहिए कि वह नशामुक्ति अभियान को सही दिशा में ले जाने के लिए ठोस कदम उठाए। शराब की दुकानों के लाइसेंस की संख्या में कटौती की जाए और नई दुकानों के खुलने पर रोक लगाई जाए। इसके साथ ही नशामुक्ति अभियान को और प्रभावी बनाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर काम किया जाए।

### निष्कर्ष

सरकारों का दोगलापन अगर जारी रहा तो नशामुक्ति अभियान कभी भी सफल नहीं हो पाएगा। जरूरत है कि सरकार अपनी नीतियों में स्पष्टता और सख्ती लाए ताकि समाज नशे की बुराइयों से मुक्त हो सके और स्वस्थ एवं सुरक्षित जीवन जी सके।

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