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गुज़र जाएगा यह दौर भी, फिर सुनहरी भोर होगी

कोरोना संक्रमण का यह काल बेहद कष्टदायी है। दुनिया भर के 40 लाख लोग इसकी चपेट में हैं। दुर्भाग्यवश ढाई लाख से अधिक लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी है। पूरी दुनिया खामोश है। सब कुछ ठहर गया है। उद्योग, धंधे, रोजगार सब ठप्प हैं। बसों के पहिए थमे हैं। रेलगाड़ियां रुकी हैं। गाड़ियां धूल-मिट्टी से भर चुकी हैं। लाॅकडाउन ने मनुष्य की गति रोक दी है। ऐसा दौर कभी नहीं आया। लेकिन यकीन मानिए, ‘गुज़र जाएगा यह दौर भी, फिर सुनहरी भोर होगी’।
परिस्थितियां बदलेंगी। दुनिया फिर वैसी ही हो जाएगी, जैसी पहले थी। सबकुछ खुला-खुला। स्वच्छंद। लेकिन इस बुरे दौर की निशानियां जरूर रहेंगी। लचर अर्थव्यवस्था के रूप में। प्रभावित रोजगार के रूप में। दुनिया के लाखों लोग, जो कोरोना काल में अपने घर-परिवार से दूर रह गए और अपनों तक पहुंचने में उन्हें कितनी मशक्कत करनी पड़ी, वे नहीं भूल पाएंगे।
लेकिन, अंधेरी रात से भोर की ओर बढ़ना समय की नियति है और कर्मण्यता की परिभाषा। निःसंदेह कोरोना काल के बाद आने वाले समय में बेहद चुनौतियां होंगी। विकास के रुके पहियों को फिर गति देनी होगी। एक बार फिर नवसृजन की ओर हाथ से हाथ मिलाकर आगे बढ़ना होगा। आज के मुश्किल दौर में परहित का जो जज़्बा दिख रहा है, इसे बरक़रार रखना होगा। परिस्थितियों के कारण पिछड़ चुके लोगों को फिर से मुख्यधारा में जोड़ने के प्रयास करने होंगे।
यह नवनिर्माण का दौर होगा। आत्मविश्वास खो चुके लोगों में विश्वास के नए प्राण फूंकने होंगे। विकराल दौर को भुलाकर आगे बढ़ना होगा। एक बार फिर देश, दुनिया और पूरी मानवजाति के विकास के लिए अपनी ऊर्जा का समुचित और सकारात्मक उपयोग करना होगा। जिन भूलों ने कोरोना जैसी परिस्थितियों को जन्म दिया, उन पर चिंतन-मनन करना होगा तथा यह प्रण भी लेना होगा कि ऐसी गलतियों की कभी पुनरावृति नहीं होगी। अगर ऐसा हो गया तो दुनिया फिर से खिलखिलाएगी, मुस्कुराएगी, खुशी के गीत गाएगी।

©हरिशंकर आचार्य, सहायक निदेशक जनसंपर्क विभाग, राजस्थान सरकार

(राजीवगांधीस्टडी_सर्किल के बीकानेर जिला समन्वयक डॉ. Bitthal Bissa जी द्वारा आयोजित परिचर्चा ‘वर्तमान परिदृश्य और भविष्य’ के तहत लिखा गया मेरा ब्लॉग, आपके अवलोकनार्थ, आभार डॉ. साहेब)

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