BikanerExclusiveHealth

वैश्विक स्तर पर अस्थमा से होने वाली 46 फीसदी मौतें भारत में हो रही हैं

*क्या होता है अस्थमा में, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर*

बीकानेर। अस्थमा फेफड़ों में होने वाली गंभीर बीमारी है, जिसका खतरा लगभग सभी उम्र के लोगों में देखा जा रहा है। अस्थमा के रोगियों को वायुमार्ग के आसपास सूजन और मांसपेशियों की जकडऩ के दिक्कत होने लगती है जिसके कारण उनके लिए सांस लेना कठिन हो जाता है। ये कहना था सी के बिरला हॉस्पीटल के चिकित्सक डॉ हर्षिल अलवानी का। वे आज होटल राजमहल में अस्थमा पर आयोजित जागरूकता सेमीनार में बोल रहे थे।

उन्होंने बताया वातावरण की कई परिस्थितियां अस्थमा रोगियों के लिए समस्याओं को बढ़ाने वाली मानी जाती हैं, इसलिए जरूरी है कि इस बीमारी के शिकार लोगों को निरंतर सावधानी बरतते रहना चाहिए। वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट की जाने वाली इस बीमारी को लेकर लोगों को जागरूक करने और अस्थमा से बचाव को लेकर उपायों के बारे में शिक्षित करने के उद्देश्य से यह सेमीनार रखा गया है।

डॉ अलवानी ने बताया कि हालांकि भारत में पूरी दुनिया के 13 फीसदी अस्थमा रोगी हैं,लेकिन चिंता का विषय यह है कि देश जागरूकता के अभाव में अस्थमा रोगियों की मौतों के मामले में सबसे आगे है। वैश्विक स्तर पर अस्थमा से होने वाली 46 फीसदी मौतें भारत में हो रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह उपचार को लेकर जागरूकता का अभाव है। कम उम्र के लोग यहां तक कि बच्चों को भी ये बीमारी अपना शिकार बना रही है।

उन्होंने बताया कि अस्थमा रोगी की श्वास नली में सूजन आ जाती है। इसे नियंत्रित करने के लिए खांसी दवाई या सामान्य उपचार कारगर नहीं होते है,जिसके कारण उनके लिए सांस लेना कठिन हो जाता है। ऐसे में गंभीर मरीज को इन्हेलर दिया जाता है,लेकिन लोगों में इनहेलर नहीं लेने की भ्रांतियां आज भी मौजूद है। जिसके चलते परेशानी बढ़ जाती है. इसके अलावा जिन्हें इन्हेलर दिया जाता है,वो लगातार डॉक्टर के संपर्क में रहे बगैर एक ही तरह के इन्हेलर का प्रयोग करते रहते हैं. जबकि यह दो प्रकार के होते है, जिन्हे अलग-अलग स्थिति में डॉक्टर के निर्देश पर उपयोग में लिया जाता है।

डॉ. अलवानी के मुताबिक हर व्यक्ति में अस्थमा के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं. सामान्यत: एलर्जी से ही अस्थमा का पता चलता है, जिसकी शुरुआत धूल-पराग के कणों के संपर्क में आने से होती है। 80 फीसदी मामलों में यह बाल्य अवस्था में होता है,लेकिन उसे पहचान नहीं पाने से उपचार शुरू नहीं होता है। बड़े होने तक परेशानी बढ़ जाती है,जिसमें सांस लेने में कठिनाई, सीने में जकडऩ या दर्द,सांस छोड़ते समय घरघराहट होना होता है। बच्चों में सांस लेने में तकलीफ के साथ खांसी या घरघराहट के कारण सोने में परेशानी होना लक्षण है. ऐसी स्थिति में अभिभावकों को तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

इसके अलावा घर के पालतू पशु-पक्षियों से,घर की धूल से,वायु प्रदूषण से,धूम्रपान से,सीलन व फफूंद से,मौसम का बदलाव भी अस्थमा का प्रमुख कारण होता है। इस मौके पर उन्होंने बचाव के उपाय भी बताएं तथा उपस्थित लोगों के प्रश्नों का जबाब देकर उनकी जिज्ञासाओं को शांत किया। इस दौरान सी के बिरला हॉस्पिटल के वाईस प्रेसिडेन्ट अनुभव सुखवानी, डिप्टी मैनेजर सेल्स संजीव कुमार जाजोरिया, मार्केटिंग हैड सचिन सिंह भी मौजूद रहे। संचालन ज्योति प्रकाश रंगा ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *