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ऑनलाइन एज्युकेशनः जहां संघर्ष से आता आटा वहां कैसे मिलेगा डाटा

बीकानेर। कोरोना महामारी के चलते सामाजिक दूरी के मद्देनजर इन दिनों ऑनलाइन एज्युकेशन की बातें हो रही हैं। यहां सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है कि जिन घरों में आटा भी बड़े संघर्ष से मिलता है वहां डाटा की बात करना बेमानी होगी। यहां ऑनलाइन एज्युकेशन के खिलाफ नहीं हूं। भविष्य के चैलेंजेज को देखते हुए यह बेहद दमदार युक्ति हैं, लेकिन हम इसके लिए कितने तैयार है ? इसका समाधान ही हमारी प्रगति की राह तय करेगा। हम आर्थिक मोर्चे पर मुकाबला करने में कामयाब हो पाएंगे। पहले जानते हैं कि ऑनलाइन एज्युकेशन की राह में किस प्रकार की व्यावहारिक दिक्कतें आ रही हैं-

प्रदेश की स्कूलों में आरटीई के तहत निशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया हुआ। स्कूलों में साइकिल व कॉलेज में स्कूटी निशुल्क दी जा रही है। वहीं प्रतिभावान बच्चों को लैपटॉप भी दिए गए। यानी यह सब निशुल्क देने के पीछे एक ही कारण समझ में आता है है कुछ अमीर बच्चों को छोड़ दें तो ये संसाधन अभिभावकों की खरीद क्षमता से बाहर है। अभिभावकों का एक ऐसा वर्ग है जो शिक्षा तो देना चाहते हैं लेकिन बच्चों की फीस वहन नहीं कर सकते इसलिए निशुल्क शिक्षा का प्रावधान रखा गया है। इससे जाहिर होता है कि जिस देश में बच्चों की शिक्षा के लिए अभिभावकों के पास पैसा नहीं है उन अभिभावकों के पास अपने बच्चों के लिए एंड्राइड मोबाइल कहां से आएगा? कैसे उनको डाटा मिलेगा और कैसे ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण करेंगे? कहीं स्कूलों में या फिर गांवों में अभी तक बिजली भी नहीं पहुंची है। वहां ऑनलाइन एजुकेशन की बात करना बेमानी होगी यदि हम शहरी क्षेत्र की बात करें तो जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे हैं उन्हें भी कईं व्यावहारिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में दूरस्थ गांवों में कैसे होंगे हालात? शहरी क्षेत्रों में ऑनलाइन एज्यूकेशन ले रहे छात्र-छात्राओं के सामने नेट की स्पीड सबसे बड़ी समस्या है। इसके बाद इनके विकल्प जो कि अंग्रेजी में है उन्हें समझने में भी परेशानी हो रही है। कहीं-कहीं तो ऑडियो, तो कहीं वीडियो की क्वालिटी को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं? कई कंपनियां 1 जीबी डाटा देती है लेकिन उनके चार्जेज बहुत ज्यादा है। एक घंटे की ऑनलाइन क्लास चलने पर 1 जीबी डाटा खत्म हो जाता है तो जाहिर सी बात है कि उन अभिभावकों के मोबाइल अन्य नेट संबंधित कार्यों को करने से वंचित हो जाएंगे। यदि अतिरिक्त डेटा लेना चाहे तो वह बजट से बाहर है। ऐसे में यदि सरकार ऑनलाइन एजुकेशन को बढ़ावा देना चाहती है तो सबसे पहले डाटा निशुल्क उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
भविष्य में ऑनलाइन शिक्षा देने से पहले बच्चों को प्रशिक्षित भी किया जाना चाहिए कि वह ऑनलाइन कैसे पढ़ सकते हैं? इससे पहले संबंधित स्कूलों के शिक्षकों को भी ऑनलाइन पढ़ाने की तकनीक से परिचय करवाना भी जरूरी है। उनके पास विषय से संबंधित ई-कंटेंट भी उपलब्ध होना चाहिए। साथ ही उसे उपयोग में लाने का ज्ञान भी होना चाहिए। यानि पहले शिक्षक डिजिटली प्रशिक्षित होना जरूरी है। इसके अलावा जो तकनीकी दिक्कतें हैं यथा ऑडियो और वीडियो की क्वालिटी, नेट की स्पीड इन सब में सुधार बेहद जरूरी है तभी इसकी सार्थकता समझ में आएगी अन्यथा पढ़ाई को रुचिकर बनाने के लिए जो प्रयास हो रहे हैं वह निरर्थक साबित होंगे। नेट की स्पीड, ऑडियो-वीडियो क्वालिटी खराब होने से छात्र छात्राओं को खींज आने लगेगी और और यहीं से उन्हें ऑनलाइन एजुकेशन के प्रति अरुचि होने लगेगी। अब यहां पर एक सवाल यह भी है कि जो बच्चे ऑनलाइन पढ़ रहे हैं उनका तो येन केन प्रकारेण कोर्स हो रहा है, लेकिन जो ऑनलाइन एजुकेशन से वंचित है उनका कोर्स कैसे होगा? क्या स्कूल खुलने के बाद जिन बच्चों के कोर्स पूरे नहीं हुए उनको उन बच्चों के साथ फिर से पढ़ाया जाएगा जिन्होंने ऑनलाइन कोर्स पूरा कर लिया है? यदि ऐसा होता है तो ऑन और ऑफ लाइन पढ़ने वाले दोनों बच्चों के साथ अन्याय होगा। कारण ऑनलाइन वाले बच्चों को जो समय आगे के कोर्स के लिए देना था वह उसे उपलब्ध ही नहीं हो पाएगा। वहीं ऑफलाइन वाला बच्चा ऑनलाइन वाले बच्चे से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है क्योंकि उनको रिविजन का मौका नहीं मिल पाएगा। इसके अलावा एक और बिंदु पर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा कि कई घरों में एक ही मोबाइल है, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने वाले एक से अधिक बच्चे हैं और उनका एक ही समय है तो एक को तो मोबाइल दिया जा सकता है लेकिन दूसरा बच्चा कैसे ऑनलाइन पढ़ेगा? हमारी सरकार को ऐसे ही अनेक बिंदुओं पर विचार कर ऑनलाइन एजुकेशन में सुधार की ओर बढ़ना होगा ताकि भविष्य में लाॅक डाउन जैसी परिस्थितियों आने पर ऐसी कोई दिक्कत आए तो हम उनका सामना अच्छी तरह से कर सकें। हमारे बच्चों के समय का सदुपयोग हो सके।

पिछले दिनों एक समाचार पत्र में चौकाने वाले तथ्य सामने आए। समाचार में बताया गया कि लॉक डाउन अवधि में देश में करोड़ों की संख्या में मोबाइल बैटरी खराब होने, चार्जर की समस्या या अन्य किसी तकनीकी गड़बड़ी के चलते इस्तेमाल योग्य नहीं रहेंगे। उपभोक्ता लॉक डाउन की बंदिशों के कारण उन्हें ठीक भी नहीं करा पा रहे हैं या आय के स्रोत बंद होने से उनके पास इतना भी पैसा नहीं होगा जिससे वे अपने मोबाइल को रिपेयर करवा सके। ऐसे में ऑनलाइन एजुकेशन का फायदा उन बच्चों को कैसे मिलेगा? भविष्य के मद्देनजर ये विचारणीय बिंदु हैं।

ऑनलाइन एज्युकेशन को लेकर कुछ अभिभावकों से बात की तो उन्होंने जो बताया वह इस प्रकार है।

बीकानेर के लालीबाई पार्क के पास रहने वाली चन्द्रकला व्यास कहती है कि ऑनलाइन शिक्षण का आइडिया अच्छा लगा, लेकिन मेरी समस्या यह है कि दोनों बच्चे ऑनलाइन पढ़ना चाहते हैं, जबकि मेरे पास एंड्रोइड मोबाइल एक ही है तो दोनों को कैसे पढ़ाएं? दूसरी बात यह भी है कि उसी मोबाइल पर जरूरी फोन आ जाए तो बातचीत चलने के दौरान बच्चा ऑनलाइन क्लास से वंचित हो जाता है। वहीं गोकुल सर्किल के पास रहने वाली चन्द्रमुखी व्यास कहती है कि बच्ची को मोबाइल कम से कम देना चाहती हूं लेकिन ऑनलाइन क्लास के चलते उसे यह देना पड़ता है। इस प्रक्रिया में उसके होम वर्क करने तक कम से कम तीन चार घंटे लग जाते हैं। तब उसकी आंखे खराब होने की चिंता होती है। डागा चौक निवासी जयश्री जोशी कहती है कि मेरी बेटी को ऑनलाइन पढ़ने में बहुत इंटरेस्ट आता है, लेकिन नेट की स्पीड इतनी कम मिलती है कि बच्ची चिड़ने लगती है। उसका पूरा मूड खराब हो जाता है। कई बार नेट ही खत्म हो जाता है तो उस दिन की क्लास से वंचित रहना पड़ता है। रोज रोज अतिरिक्त डेटा लेना बजट से बाहर है।

ऑनलाइन एज्युकेशन को लेकर बीकानेर सिटीजन एसोसिएशन के व्हाट्सअप पर आए विचार एक ग्रुप से लिए हैं। इसमें कहा गया है कि कहीं ऑनलाइन शिक्षा के चक्कर में छह से 12 वर्ष के इन मासूमों को दिन में 4 घंटे ऑनलाइन क्लास के लिए कान में ईयर फोन लगाकर मोबाइल में आंखें गढ़ाकर क्यों बैठना पड़ रहा है। फिर 3 घंटे व्हाट्सएप पर होम वर्क करना पड़ रहा है। यह सब करने के बाद अब निजी स्कूलों ने फीस जमा कराने के मैसेज भी भेजने शुरू कर दिए हैं। अपने बच्चों को बचाइए – कोरोना लॉक डाउन के चलते इन दिनों एक माह से हर घर में स्कूली बच्चे 3 से 4 घंटे मोबाइल ऑनलाइन क्लासेज और 2 से 3 घंटे मोबाइल के जरिए होमवर्क करने में गुजार रहे हैं। यदि यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब बच्चे नेत्र, कर्ण, शारीरिक एवं मनोरोगों का जबरदस्त तरीके से शिकार हो जाएंगे। फिर लेकर घूमते रहना बच्चों को चिकित्सकों के पास।

इन सब बातों सहित इससे जुड़ी अन्य समस्याओं को आधार बनाकर हमें ऑनलाइन एज्युकेशन की बेहतरी की ओर बढ़ना होगा तभी डिजिटल इंडिया का सपना साकार होगा और कोरोना जैसी आपदाओं से जंग लड़ने में सफल हो पाएंगे।

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