मानवीय चेतना का पैरोकार है ’बाबोसा रो छत्तो’-डॉ. ओळा
*जीवन का साक्षात्कार है ’बाबोसा रो छत्तो’-कमल रंगा*
बीकानेर। प्रज्ञालय संस्थान द्वारा पुस्तक संस्कृति के संवर्द्धन हेतु नवाचार के तहत हिन्दी- राजस्थानी के महान् पुरोधा कीर्तिशेष लक्ष्मीनारायण रंगा को समर्पित
‘दो दिवस-दो पुस्तक लोकार्पण‘ के तहत दूसरे दिन हिन्दी-राजस्थानी एवं उर्दू के शायर कथाकार एवं अनुवादक कासिम बीकानेरी के नये लघुकथा संगह ‘बाबोसा रो छत्तो‘ का भव्य लोकार्पण समारोह स्थानीय नागरी भण्डार के नरेन्द्र सिंह ऑडिटोरियम में संपन्न हुआ।
लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भरत ओळा ने कहा कि ’बाबोसा रो छत्तो’ मानवीय संवेदना, सामाजिक विडंम्बनाओं, त्रासदियों के साथ-साथ आमजन की पीड़ा को उकेरने का सकारात्मक प्रयास है, तभी तो संग्रह मानवीय चेतना की पैरोकारी करता है। लघुकथाकार कासिम बीकानेरी अपनी लघुकथाओं के कई रंगों के शब्द चितराम अपनी सरल भाषा भाव से पाठकों तक सम्प्रेषित कर उन्हें सोचने के लिए मजबूर करते है।
डॉ. भरत ओळा ने आगे कहा कि आज के वैश्विक दौर और जटिल मानवीय जीवन स्थितियों में समाज में घट रही घटना और प्रतिघटना को लघुआकार में पाठक तक सम्प्रेषित करने की आज जरूरत है।
समारोह के मुख्य अतिथि राजस्थानी के वरिष्ठ कवि-कथाकार एवं आलोचक कमल रंगा ने कहा की लघुकथा जीवन का साक्षात्कार है वहीं समाज की विसंगतियों की वीडियोग्राफी है, जिसके माध्यम से रचनाकार अपने समय के सच को अपने मुहावरे में ढालता है, इस बाबत कासिम बीकानेरी ने सकारात्मक उपक्रम करते हुए राजस्थानी लघुकथा यात्रा में अपनी सशक्त रचनात्मक उपस्थिति दर्ज कराई है।
रंगा ने इस अवसर पर लघुकथा के भारतीय संदर्भ बाबत कहा कि लघुकथाओ का भंडार ’उपनिषद’ में है और उसका मूल वेदों में है, ऐसे में समकालीन दौर में लघुकथाकारों को अपनी इस साहित्यिक विरासत को नव प्रयोग एवं नई अर्थवता के साथ आगे ले जाने कि चुनौती है।
समारोह के मुख्य वक्ता हिन्दी राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार सुजानगढ से आए डॉ. घनश्यामनाथ कच्छावा ने कहा कि कासिम बीकानेरी की लघुकथाएं विधागत स्तर पर अपनी एक अलग पहचान रखती है जो चिंतन, मनन एवं दर्शन की त्रिवेणी है। संग्रह की सभी 51 लघुकथाएं कई तरह की भाव भूमि के साथ पाठकों से अपना रागात्मक रिश्ता बना लेती है। इसके लिए कासिम बीकानेरी साधुवाद के पात्र है।
समारोह में बतौर अतिथि डूंगरगढ़ के वरिष्ठ आलोचक डॉ मदन सैनी ने कहा कि बाबोसा रे छत्ते में उम्दा लघुकथा अपनी सजह भाषा प्रवाह के कारण पाठकों से अपना रिश्ता जोड़ती है। इसी क्रम में चुरू के वरिष्ठ कवि गौरी शंकर भावुक ने लघुकथाओं को समय की मांग बताया।
प्रारंभ में वरिष्ठ शिक्षाविद् संजय सांखला ने सभी का स्वागत करते हुए लघुकथा को चिंतन मनन की विधा बताते हुए सभी का स्वागत किया।
लोकार्पित कृति के रचनाकार के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए युवा कवि गिरिराज पारीक ने कहा कि कासिम बीकानेरी हिन्दी उर्दू और राजस्थानी में समान रूप से सृजनरत हैं आपकी कई पुस्तकें चर्चा में रही है।
लोकार्पण समारोह में प्रज्ञालय ंसंस्थान एवं सहयोगी संस्था स्व. नरपतसिंह सांखला स्मृति संस्थान द्वारा रचनाकार एवं अतिथियों का माला, शॉल, प्रतिक चिन्ह, साफा आदि अर्पित कर सम्मान किया गया।
कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ कवयित्री मनीषा आर्य सोनी ने राजस्थानी लघुकथा के संदर्भ में अपनी बात रखी। वहीं सभी का आभार ज्ञापित करते हुए युवा कवि एंव कथाकार संजय पुरोहित ने राजस्थानी लिखने एवं पढने का अनुरोध किया।
भव्य लोकार्पण समारोह में नंदकिशोर सोलंकी, दीपचंद सांखला, डॅा अरूणा भार्गव, डॅा अजय जोशी, इन्द्रा व्यास, आशा शर्मा, मधु शर्मा, सरोज भाटी, डॉ गौरीशंकर प्रजापत, शकुर बीकाणवी, डॉ चंचला पाठक, योगेन्द्र पुरोहित, वली गोरी, गोविन्द जोशी, मुकेश पोपली, जुगल किशोर पुरोहित, सीमा भाटी, रवी शुक्ल, प्रशांत राजस्थानी, गंगा बिशन बिश्नोई, गोपाल गोतम, नंद किशोर आचार्य, छगनसिंह परिहार, गुलफाम हुसैन, सरदार अली, प्रेम नारायण व्यास, राजाराम स्वर्णकार, कपिला पालीवाल, हरिकिशन व्यास, हरिनारायण आचार्य, राजेश रंगा, नंदकिशोर मुंड सहित कई गणमान्यों की गरिमामय साक्षी रही।