युवा संकल्प से 200 साल पुराने मंदिर का हो गया कायाकल्प
*होली की गोठ पर आया विचार, श्रमदान के संकल्प से संभव कर दिखाया*
*नवरात्रा पर कर दी घट स्थापना, अब गूंज रहे हैं मंत्र भजन*
✍️श्री गोपाल व्यास ✍️
जैसलमेर । कला, साहित्य और सांस्कृतिक परिवेश का अद्वितीय स्थान जैसलमेर रहा है। मरू संस्कृति की विशिष्ट छवि के प्रति अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने सैलानी ही नहीं यहां के निवासी भी इतराते से महसूस होते थे । उनके दिल में यहां की संस्कृति हिलोरे रहती थी । धीरे धीरे संस्कृति का वास्तविक स्वरूप नष्ट हुआ धार्मिक और सनातनी परंपराएं लुप्त हुई। इस वर्ष होली की गोठ पर धार्मिक आस्था रखने वाले कुछ युवाओं के मन में विचार आया कि व्यास बगेची में स्थित 200 साल पुराना राम मंदिर है जो काफी वर्षो से अपूज्य तथा बंद है, क्यों न इसका पुनरुत्थान कर चैत्र नवरात्र पर इसे पूजन योग्य बनाया जाए ।
रमेशचंद्र व्यास के संयोजन ने युवाओं में ऊर्जा और जोश पैदा किया। दो दिन में ही श्रमदान, लिपाई पुताई कर धर्म ध्वजाओं से मंदिर को सजाया गया। कहा भी गया है कि सच्चे दिल से श्रद्धा के साथ जो भगवान की पूजा, अर्चना करता है वहां एक अच्छा वातावरण पैदा होता है।
अति प्राचीन राम सीता की मूर्तियों के साथ अनेक अष्ट धातुओं की मूर्तियों और पंचमुखी महादेव का श्रृंगार कर पं. अजय कुमार बिस्सा, आंबा महाराज के सानिध्य में नवरात्रि स्थापना के दिन सुबह 8 बजे शुभ मुहूर्त में घट स्थापना किया गया । घट यानि कलश को सुख, ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है। नवरात्र के समय आकाश में उपस्थित शक्तियों का घर मे, मंदिर में आह्वान किया जाता है। घर, मंदिर में सभी विपदादायक तरंगे नश्वर हो जाती है तथा सुख, शांति बनी रहती है । नवरात्र अनुष्ठान में भाव रखते हुए कुछ जोड़ो ने पहले दिन पूजा अर्चना की ।
अनुष्ठान में नई पीढ़ी के भाव, श्रद्धा और ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा देखते ही बनती थी । कहा भी गया है कि हनुमान जी जल्द प्रसन्न होने वाले देवता है । नवरात्र के चतुर्थ दिवस पर बल, बुद्धि प्रदान करने वाले हनुमान जी का संगीतमय सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया। इस पाठ से हनुमत कृपा शीघ्र बरसती है, सुंदर काण्ड में भगवान राम के गुणों की नहीं बल्कि उनके भक्त के गुणों और विजय की बात बताई गई है । युवाओं का उत्साह प्रसंशनीय था। मन में नया कुछ करने के भाव जागृत हो रहे थे तभी पंचम दिवस पर छप्पन भोग की झांकी सजा कर भगवान को भोग लगाया गया । छप्पन भोग में कड़वा, तीखा, कसैला, अम्लीय, नमकीन और मीठा ये छह रस या स्वाद होते है, इन छह रसों के मेल से 56 प्रकार के व्यंजन बना कर भगवान को अर्पित किए जाते हैं ।
परिवारिक परंपरा के अनुसार पितरों, पूज्य देवताओं तथा ग्राम, नगर देवताओं को दीपक जलाकर प्रसन्न किया जाता है। छठे दिन दीपमालिका कर दीपों की पंक्ति से राम मंदिर को सजाया गया तथा प्रार्थना की गई की हे दीप । आप अंधकार का नाश करने वाले ब्रह्म स्वरूप हो, हमारे द्वारा की गई पूजा को ग्रहण करे और ओज एवम् तेज की वर्द्धि करे । दीपदान में एक दीया प्रभु राम के नाम का लगाने के संकल्प लिया गया ।
नवरात्र के अंतिम दिन रामनवमी को पंच हवन कुण्ड तैयार कर एक ऐसे अनुष्ठान यज्ञ का आयोजन हुआ जो जीवन में बहुत कम देखने को मिलता है, अग्नि देवता का आह्वान करते हुए अरणी मंथन के माध्यम से अग्नि प्रज्वलित कर पंच कुंडीय यज्ञ हवन संपन्न हुआ। राम जी की इच्छा से, भगवत कृपा से तथा पूर्वजों द्वारा इस मन्दिर में किए तप के प्रभाव से 25 जोड़ो ने यज्ञ में आहुतियां दी । इस अवसर पर पित्तर देवता और भगवान प्रसन्न होकर बरसात के द्वारा अमृत बरसा रहे थे ।
सपना सार्थक हुआ। अपनो से जुड़ाव और मेहनत से व्यास बगेची में चार चांद लगे देखकर सभी का मन आनंदित हुआ। समाज में ब्रह्नत्व, और आध्यात्मिक वृद्धि का यह प्रयास प्रसंशनीय, अनुकरणीय तथा वंदनीय रहा ।