बीकानेर की चित्कारती जख्मी सड़कें किसे बयां करें अपना दर्द
बीकानेर । पिछले दो-तीन सालों में बीकानेर शहर की सड़कों के जख्म इतने गहरे हो गए हैं कि अब उनकी चित्कार चारों ओर सुनाई दे रही हैं। अफसोस इस बात का है कि यह चित्कार न तो संबंधित एजेंसियों और न ही इस शहर के चुने हुए जन प्रतिनिधियों को सुनाई दे रही हैं। जस्सूसर गेट से लेकर एम एम ग्राउंड तक, एम एम ग्राउंड से पूरे जवाहर नगर और पूगल फाटे करणी औद्योगिक क्षेत्र की ओर जाने वाली सड़क और आगे ओवर ब्रिज तक की सड़कें बुरी तरह से जख्मी हो चुकी हैं। चौखुंटी पुलिये की सड़क के भी यही हालात हैं। इन जर्जर जख्मी सड़कों पर से जब वाहन गुजरते हैं तो ये सड़कें भंयकर दर्द से चीख उठती हैं। इतना ही नहीं इन पर से गुजरने वाले वाहन और चालकों को दोनों की अस्थियां बुरी तरह से हिल जाती हैं। शहर के एक फिजियोथेरेपिस्ट की माने तो बीकानेर में 90 प्रतिशत कमर दर्द के मामले में टूटी सड़कें जिम्मेदार हैं। वहीं वाहन रिपेयर करने वाले मिस्त्रियों की मानें तो लाख लाख रुपये खर्च कर नये वाहन लाने वाले मालिक बड़े तनावग्रस्त नजर आते हैं। क्योंकि मेहनत की कमाई से जोड़ तोड़ कर लाई गई गाड़ियों के नट बोल्ट बहुत जल्दी ढीले हो जाते हैं। कुछ पार्ट्स खुलकर सड़क के गड्ढों में गिरकर टूट जाते हैं या फिर कहीं गुम हो जाते हैं। नये पार्ट्स बेहद महंगे होते हैं, लेकिन मजबूरी में उन्हें लगवाने ही पड़ते हैं।
टैक्स भी लेते हैं और दंड भी भुगतना पड़ता है वाहन मालिकों का कहना है कि वाहन खरीदते हैं तो परिवहन विभाग को लाखों रुपये का टैक्स जनता भरती है और बदले में गड्ढों वाली जर्जर सड़कें मिलती हैं। यानि यह दंड भी वाहन मालिकों को ही भुगतना पड़ रहा है। होना तो यह चाहिए कि यह दंड संबंधित निजी एवं सरकारी एजेंसियों पर लगना चाहिए। यहां उपभोक्ता अधिकारों का हनन का मामला भी बनता है। क्योंकि भारी-भरकम टैक्स चुकाने के बाद भी जनता को मोटरेबल यानि वाहन चलाने योग्य सड़कें भी नहीं मिलती।
दुर्घटना का एक कारण जर्जर सड़कें भी हैं बगैर हेलमेट वाले वाहन चालकों का चालान काटने में हर समय व्यस्त रहने वाले यातायात पुलिस प्रशासन को दुर्घटना के एक कारण सड़कों के ये गड्ढे नजर क्यों नहीं आते। सरकार का यह महकमा इन गड्ढों से होने वाली दुर्घटनाओं से तो अवगत करवा सकता है। हैरत की बात यह है कि रोड सेफ्टी सप्ताह चलाने वाले जिम्मेदार इन गड्ढों को कभी गंभीरता से नहीं लेते हैं। जिस सड़क पर एक हिस्से में गड्ढा होता है तो बचे हुए हिस्से पर से वाहन निकलते हैं। ऐसे में कई बार वाहन आमने-सामने हो जाते हैं। तब कई वाहन चालक संतुलन बिगड़ने से गिरकर चोटिल हो जाते हैं। कई बार गंभीर चोटें भी लग जाती हैं। साथ ही वाहन को नुकसान पहुंचता है वो दर्द अलग से मिलता है। ऐसी सड़क पर रास्ता पार करने की होड़ में अक्सर वाहन चालक आपस में भिड़ पड़ते हैं। बरसात के दिनों में इन गड्ढों में पानी भर जाने से वाहन चालकों को इनकी गहराई चौड़ाई का अंदाजा नहीं होता है तो संतुलन खोकर गिर जाते हैं। यहां सवाल उठता है कि ये सामान्य सी बातें प्रशासन को नजर क्यों नहीं आती। बाद में ये सामान्य बातें ही आमजन को गंभीर दर्द झेलने को विवश कर देती हैं।
जरा इन पर भी करें गौर सड़क बनाने में इस्तेमाल होने वाले रॉ मैटेरियल की गुणवत्ता की सख्ती से जांच हो। फिर सड़क बनने की प्रक्रिया की गुणवत्ता पर निगरानी होनी चाहिए। जिस इलाके में सड़क बने वहां एक सूचना पट्ट पर संबंधित एजेंसी, ठेकेदार व अधिकारी का नाम और मोबाइल नंबर हो। साथ ही सड़क की एक्सपायरी डेट भी हो। ताकि समय से पहले सड़क टूटने की शिकायत की जा सकें। साथ ही पेयजल लाइन, सीवरेज, टेलीफोन व विद्युत केबल बिछाने वाली एजेंसियों से तालमेल रखें और यदि वे सड़क तोड़ते हैं तो उचित मापदण्डों के साथ नयी सड़क बनाने की जिम्मेदारी तय हो। इनकी पालना नहीं करने की शिकायत की तत्काल तेज गति से कार्रवाई हो। सड़क टूटने और उसके ठीक होने में केवल 24 घंटों का अंतर हो। निर्माणाधीन सड़क के दौरान ही उसी सड़क के आगामी टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर ली जाए ताकि आम पब्लिक को ज्यादा दिन जर्जर सड़क को झेलना नहीं पड़े। ऐसे टेंडर में चाहे तो आगामी महंगाई के मद्देनजर बजट के प्लस माइनस के प्रतिशत को पहले से तैयार रखें। कुल मिलाकर टैक्स पेयर जनता को परेशानी न हो ऐसा विजन लेकर ही योजनाएं बनाएं।